उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के तकरीबन आधा दर्जन से अधिक शहरों में बीजेपी (BJP) नेता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) और नवीन जिंदल (Naveen Jindal) के विवादित बयान को लेकर आंदोलन और हिंसा की खबरें सुर्खियों में हैं. पिछले हफ्ते जुमे की नमाज के बाद कानपुर में हुए दंगे के बाद उत्तर प्रदेश शासन दावा कर रहा था कि हर जिले में पुलिस प्रशासन मुस्तैद है और विभिन्न धर्म गुरुओं से बात कर हालात पर काबू पाने की कोशिश की जा रही है.
कानपुर घटना के ठीक 1 हफ्ते बाद उत्तर प्रदेश प्रशासन की सारी व्यवस्था को धता बताते हुए 10 जून को सहारनपुर, मुरादाबाद अमरोहा, प्रयागराज और फिरोजाबाद में जुमे की नमाज के बाद आंदोलन और हिंसा की घटनाएं होती रही.
प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो प्रयागराज (Prayagraj) में आंदोलन के हिंसक रूप लेने के तकरीबन 3 घंटे तक पुलिस और भीड़ के बीच 'गुरिल्ला युद्ध' होता रहा. लगातार चल रहे पथराव के बीच हिंसा और आगजनी की तस्वीरें भी सामने आने लगीं, जिसमें पुलिस और आम नागरिकों की कई गाड़ियां क्षतिग्रस्त हुईं.
इस हिंसा के दौरान कई पुलिस और पैरा मिलिट्री के जवानों को भी चोटें आई हैं और उनका इलाज स्थानीय अस्पतालों में चल रहा है. शाम को हालात पर काबू पाया जा सका और उसके बाद शुरू हुई पुलिस की दबिश.
उत्तर प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार के मुताबिक
"प्रदेश के विभिन्न जिलों से 237 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी हैं. इन पर सख्त से सख्त कार्रवाई के निर्देश आला अधिकारियों द्वारा जारी हो चुके हैं. इसी क्रम में प्रयागराज, सहारनपुर और कानपुर जैसे जिलों में हिंसा में लिप्त लोगों की अवैध संपत्तियों को चिन्हित कर उन्हें ढहाने का काम शुरू हो चुका है."
सबसे ताबड़तोड़ कार्रवाई प्रयागराज में हुई जहां पर अभी तक 70 से ज्यादा लोग गिरफ्तार हो चुके हैं.
प्रयागराज के पुलिस कप्तान अजय कुमार के अनुसार घटना के मुख्य आरोपियों में से एक जावेद मोहम्मद को भी गिरफ्तार कर लिया गया है तथा उनके परिवार के दो अन्य सदस्यों को भी पूछताछ के लिए बुलाया गया है.
वहीं कानपुर दंगों के मुख्य आरोपी हयात जफर हाशमी के ऊपर भी पुलिस अपना फंदा मजबूत करते हुए नजर आ रही है. हयात की करीबी रिश्तेदार का एक अवैध निर्माण वहां के स्थानीय प्रशासन द्वारा शनिवार को ढहा दिया गया है. सूत्रों की मानें तो आने वाले समय में एक्शन तेज हो सकता है.
घटना के बाद विपक्षी राजनीतिक पार्टियां कुछ भी बोलने से बच रही हैं. उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी या उसके मुखिया अखिलेश यादव ने अभी तक इस घटना पर कोई भी आधिकारिक वक्तव्य नहीं दिया है.
यही हाल बाकी विपक्षी पार्टियों का भी है जो इस मुद्दे पर खुलकर कुछ भी बोलने से बच रही हैं.
सूत्रों की मानें तो पुलिस अभी दंगाइयों को वीडियो फुटेज के सहारे पहचानने और उनकी धरपकड़ में लगी हुई है.
पुलिस के इन कार्रवाइयों की धार आने वाले समय में और पैनी हो सकती है. कई जिलों के पुलिस कप्तानों ने हिंसा करने वालों के खिलाफ नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) लगाने की बात तक कर दी है. सरकार की मंशा साफ है कि किसी भी कीमत पर बवाल और हिंसा के आरोपियों को बख्शा नहीं जायेगा.
इन घटनाओं के पीछे PFI और AIMIM जैसे संगठनों का भी नाम आ रहा है लेकिन इनकी भूमिका को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पाई है.
कानपुर में पीएफआई से संबंधित 3 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है, वही प्रयागराज में भी AIMIM के पदाधिकारी जांच के घेरे में हैं. एक जांच का विषय यह भी है कि शासन और स्थानीय प्रशासन द्वारा इतनी तैयारी के बावजूद भारी संख्या में हिंसक भीड़ सड़कों पर कैसे आ गई? अगर इसकी जानकारी स्थानीय प्रशासन को पहले से थी तो उसकी मुकम्मल तैयारी क्यों नहीं की गई?
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