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10% आरक्षण: अखबारों में कुछ इस तरह के छपे लेख, सब का अलग-अलग मत 

सवर्ण आरक्षण फैसला: कहीं पर इसे मोदी का सियासी दांव बताया गया तो कहीं पर इस फैसले की टाइमिंग पर सवाल उठा.

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सोमवार को एक ऐसी खबर आई जिसने सभी को हैरान कर दिया. मोदी सरकार की कैबिनेट ने देश में गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला कर लिया है. 2019 के आम चुनाव से पहले मोदी सरकार ने ये बड़ा दांव खेला है. अब इस फैसले को लागू करने के लिए सरकार को संसद से संविधान संशोधन बिल पास करवाना होगा, उसके बाद ही तस्वीर साफ हो पाएगी कि आरक्षण लागू होगा या नहीं.

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ऐसे में मोदी कैबिनेट के इस फैसले पर देश के तमाम बड़े अखबारों में कई लेख लिखे गए. सवर्णों को आरक्षण के इस मुद्दे पर अलग-अलग अखबारों के संपादकीय में अलग-अलग राय देखने को मिली. कहीं पर इसे मोदी का सियासी दांव बताया गया तो कहीं पर इस फैसले की टाइमिंग पर सवाल उठा. कुछ अखबारों में इसे अच्छा फैसला बताया गया है तो कहीं लेखक का मानना है कि इससे गरीब सवर्णों की दिक्कतों का हल नहीं निकलेगा.

आरक्षण एक जुमला: इंडियन एक्सप्रेस

इंडियन एक्सप्रेस पर छपे लेख में नरेंद्र मोदी सरकार के इस फैसले को चुनावी जुमला करार दिया गया है. लेखक प्रताप भानु मेहता का मानना है कि नौकरियों और उच्च शिक्षा में गरीब सवर्णों को आरक्षण का फैसला गंभीर सवाल खड़े करता है. साफ है कि मोदी सरकार देश में नौकरियां पैदा करने में नाकाम रही है इसलिए इस तरह का चुनावी जुमला फेंक रही है. भारत को खासतर दलितों के लिए आरक्षण और सकारात्मक कदम पर ध्यान देना चाहिए. लेकिन मंडल के बाद से हमारी आरक्षण नीतियां सिर्फ बहुसंख्यक राजनीति के आस-पास घूमती रहीं, जहां नैतिक जिम्मेदारियों और जरूरतों की बजाय पावर और राजनीति को ज्यादा तरहीज दी गई.

संपादकीय में लिखा है कि, ''विशेष रूप से ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था में तेजी नहीं है, प्राइवेट सेक्टर में भी अपेक्षित गति से नौकरियां नहीं बढ़ रही हैं और सरकारी क्षेत्र भी सिकुड़ रहा है. सवर्णों के लिए कोटा अपने उद्देश्य को पूरा करने के बजाए सिर्फ नाराजगी को और गहरा करेगा.'

सवर्णों को आरक्षण लाएगा राजनीतिक भूचाल : हिंदुस्तान

दैनिक हिंदुस्तान हिंदी अखबार अपने संपादकीय में कहा है कि आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को आरक्षण देने का फैसला राजनीतिक भूचाल का कारण बन सकता है, शायद यही इसका मकसद भी है. अखबार लिखता है, ''यह मानने का कोई कारण नहीं है कि सवर्णों में जो भी गरीब हैं उन सबकी सारी समस्याओं का समाधान इस दस फीसदी आरक्षण से हो जाएगा. वह भी तब, जब सरकारी नौकरियां लगातार कम हो रही हो रही हैं. यह उम्मीद भी व्यर्थ है कि ऊंची जाति के जो लोग अभी तक आरक्षण का विरोध करते थे, वो इस फैसले से संतुष्ट हो जाएंगे. आरक्षण की मांग और उसके विरोध के लगातार उग्र होते जाने का एक बड़ा कारण यह भी है कि हम अभी तक ऐसी अर्थ व्यवस्था नहीं बना पाए हैं, जो सभी को रोजगार देने का सामर्थ्य रखती हो.'' अखबार कहता है कि संयोग से आरक्षण का फैसला उस दिन हुआ है, जब सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने बेरोजगारी संख्या काफी तेजी से बढ़ने के आंकड़े सार्वजनिक किए हैं.''

फैसले की टाइमिंग पर सवाल: टाइम्स ऑफ इंडिया

अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने संपादकीय में फैसले को अच्छा प्रोजेक्ट बताया है लेकिन फैसले की टाइमिंग और जल्दबाजी पर सवाल उठाए गए हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकीय में लिखा है कि, ''आर्थिक पिछड़ेपन को आरक्षण का मुख्य बिंदु बनाना एक अच्छा फैसला है लेकिन इसके पीछे की जल्दबाजी पर सवाल खड़े होते हैं. संसद सत्र के आखिरी दिन सरकार संविधान संशोधन विधेयक पास करवाने की योजना बना रही है, यह उनती राजनैतिक हताशा और छटपटाहट को दिखाता है. अब जबकि सिर्फ बजट सत्र बचा है और संविधान संशोधन विधेयक को दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत चाहिए और 50% राज्यों की सहमति चाहिए. वास्तव में मोदी सरकार के पास अपने कोटे के वादे को साकार करने का कोई समय नहीं है. अगर सरकार गंभीर थी तो इसे अपने कार्यकाल के शुरुआत में ही इसकी पहल करनी चाहिए थी.''

गरीबों के लिए बड़ा तोहफा: दैनिक जागरण

हिंदी अखबार दैनिक जागरण ने सरकार के इस फैसले की प्रशंसा की है. अपने संपादकीय में दैनिक जागरण ने मोदी सरकार के फैसले को गरीबों के लिए बड़ा तोहफा बताया है. संपादकीय में कहा गया है कि यह फैसला आर्थिक समानता के साथ ही जातीय वैमनस्य दूर करने की दिशा में ठोस कदम है. इसका स्वागत इसलिए होना चाहिए क्योंकि यह उन सवर्णों के लिए एक बड़ा सहारा है जो आर्थिक रूप से विपन्न होने के बावजूद आरक्षित वर्ग सरीखी सुविधा पाने से वंचित रहे हैं.

संपादकीय कहता है, "आर्थिक आधार पर आरक्षण का फैसला सबका साथ सबका विकास की अवधारणा के अनुकूल है. इस फैसले को लेकर ऐसे तर्कों का कोई मूल्य नहीं कि मोदी सरकार ने अपने राजनीतिक हित को ध्यान में रखकर ये फैसला लिया. सामाजिक न्याय के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत का फैसला एक राजनीतिक फैसला ही था. सच तो यह है कि जनहित के सारे फैसले कहीं ना कहीं राजनीतिक हित को ध्यान में रखकर ही लिए जाते हैं.''

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विपक्षी दलों के लिए असहज स्थिति: अमर उजाला

अखबार अमर उजाला सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक को मौजूदा सत्र में पारित करना आसान नहीं होगा. इसके बावजूद सरकार ने विपक्षी दलों के लिए असहज स्थिति जरूर पैदा कर दी है. विपक्षी दलों के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण का विरोध करना काफी मुश्किल होगा. संपादकीय में लिखा गया है कि, “इसके जरिए सरकार सवर्णों का भरोसा जीतना चाहती है खासकर इसलिए क्योंकि मध्यप्रदेश और राजस्थान में जहां हाल के चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, वहां सवर्ण खासतौर से एससी/एसटी उत्पीड़न एक्ट को लेकर भाजपा से खासे नाराज थे.”

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