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शहनाई सम्राट बिस्‍मिल्‍लाह खान के अवॉर्ड में लगा दीमक

शहनाई के जादूगर बिस्मिल्लाह खां के पद्म विभूषण अवॉर्ड को खा गया दीमक

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शहनाई के सम्राट उस्ताद बिस्म्मिल्लाह खां, जिनकी शहनाई से निकले सुरों का जादू ऐसा था कि लोग दिल थाम लेते थे. कला के कद्रदानों ने उनके हुनर को सराहा और बुलंदियां उनके कदम चूमती रहीं. देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से उन्हें नवाजा गया. पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे अवॉर्ड्स ने उनका मान बढ़ाया. लेकिन अब उनके इन्हीं अवॉर्ड्स को दीमक खा रहा है.

मुफलिसी में जन्में और पले-बढ़े खां साहब साल 2006 में दुनिया को अलविदा कह गए. उनके इंतकाल के बाद से ही उनकी याद में संग्रहालय बनाने की मांग होती रही लेकिन अब तक कोई संग्रहालय नहीं बन सका है.

बिस्मिल्लाह खान को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न के अलावा पद्म भूषण, पद्म विभूषण, पद्म श्री जैसे तमाम सम्मानों से नवाजा गया.

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पुण्यतिथि पर पहुंचे प्रशंसकों को मिले दीमक लगे अवॉर्ड

बीती 21 अगस्त को बिस्म्मिल्लाह खां की 11वीं पुण्यतिथि थी. इस मौके पर उनके चाहने वालों ने उन्हें याद किया. याद की तासीर को ताजा करने के लिये जब उनके घर पर लोगों ने उनके सम्मान में मिले पुरस्कारों को देखने के लिये निकाला तो 1980 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ नीलम संजीवा रेड्डी के हाथों मिला पद्म भूषण अवॉर्ड उनकी गरीबी की हकीकत को बयां करता नजर आया. इस अवॉर्ड को काफी हद तक दीमक चट कर चुका है.

बनारस शहर के बीच हड़हासराय में बिस्म्मिल्लाह खां का मकान है, जहां आज भी उनका जूता, छाता, टेलीफोन, कुर्सी, लैम्प, चारपाई और अंतिम समय तक उपयोग आने वाले बर्तन रखे हुए हैं. इन्हीं सामानों में उनके जीवन भर के अवॉर्ड भी पड़े हुए हैं. इन अवॉर्ड्स की बेकदरी इतनी है कि उन्हें दीमक खा रहे हैं.

धरोहर को सहेजने की जिम्मेदारी किसकी?

उस्ताद के सामानों की इस बेकदरी पर उनके चाहने वाले बेहद दुखी हैं. लेकिन इस बेकदरी के लिये किसे जिम्मेदार ठहराया जाए, सरकार को, घर वालों को या उस तंगहाली को जिसे उस्ताद ने पूरे जीवन भोगा.

तंगहाली ने तो पूरे जीवन उस्ताद के परिवार पर अपना कहर बरपाया. लेकिन जब तक उस्ताद जिन्दा थे उन्होंने इसे पनपने नहीं दिया. लेकिन उनके जाने के बाद परिवार तंगहाली की मार झेल नहीं पा रहा है. लिहाजा, उनकी जितनी ताकत थी उससे खां साहब के सामानों को सहेजने की कोशिश नाकाफी रही. लेकिन अपने मुल्क के इस कोहिनूर की धरोहर को सहेजने के लिए सरकार की भी जिम्मेदारी बनती है.

ये जिम्मेदारी इसलिए भी बनती है क्योंकि डेढ़ साल पहले यूनेस्को ने क्रिएटिव सिटीज ऑफ नेटवर्क के तहत बनारस को सिटी ऑफ म्यूजिक का खिताब दिया. इसमें वादा किया गया था कि बनारस के संगीत और इससे जुड़े फनकारों की यादों को समृद्ध किया जाएगा. उनकी यादों में उत्सव होंगे, लेकिन बिस्म्मिल्लाह की याद उसी खामोशी से गुजर गई, जिस फकीरी में उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी गुजार दी.

बदहाली में जीवन गुजार रहा है परिवार

किसी परिवार के लिये इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि जिस शहनाई से साधारण बिस्म्मिल्लाह, भारत रत्न बिस्म्मिल्लाह खां बने, वही उपहार में मिली चांदी की शहनाई उनके मरने के बाद घर से चोरी हो गई. इसका आरोप उनके घर वालों पर ही लगा. अगर ये आरोप गलत है तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर सही है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि बिस्म्मिल्लाह खां का परिवार आज किस हालत में है.

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