ADVERTISEMENTREMOVE AD

राहुल गांधी, प्रियंका, अखिलेश को लखीमपुर जाने से कानूनन रोक सकती है यूपी सरकार?

धारा 144 किस आधार पर लगाई जा सकती है, क्या पांच से कम लोगों के जमा होने पर भी रोक लगा सकती है पुलिस?

Published
भारत
7 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

लखीमपुर खीरी पूरे भारत से करीब-करीब काट दिया गया है.

बीती 3 अक्टूबर की रात को, एक वीडियो खूब चला. कांग्रेस पार्टी की नेता प्रियंका गांधी को उत्तर पुलिस ने हिरासत में ले लिया. वह उन मृतकों के परिवारों से मिलने जा रही थीं, जिन पर BJP नेता ने अपनी गाड़ी चढ़ा दी थी. किसान प्रदर्शन कर रहे थे और BJP नेता के काफिले ने उन पर चढ़ाई कर दी.

इसके अगली सुबह पुलिस अधिकारियों की फौज समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के घर पहुंची और उन्हें लखीमपुर खीरी जाने से रोक दिया. जब उन्होंने इसके खिलाफ धरना प्रदर्शन किया तो उन्हें हाउस अरेस्ट कर दिया गया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ और कांग्रेसी नेताओं को भी उस जगह जाने और किसानों से मिलने से रोका. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पंजाब के उप मुख्यमंत्री एस.एस.रंधावा को लखनऊ में लैंड भी नहीं होने दिया गया. पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को वहां हेलीकॉप्टर उतारने की इजाजत नहीं दी गई.

नवजोत सिंह सिद्धू को चंडीगढ़ पुलिस ने चंडीगढ़ में हिरासत में ले लिया, जहां वह पंजाब के गवर्नर हाउस के बाहर किसानों के साथ होने वाली हिंसा का विरोध जता रहे थे (याद रहे कि चंडीगढ़ पुलिस, पंजाब या हरियाणा सरकार के मातहत नहीं आती, बल्कि चंडीगढ़ केंद्र शासित सरकार के तहत आती है).

लखीमपुर खीरी में उत्तर प्रदेश प्रशासन ने सीआरपीसी की धारा 144 लगाने का व्यापक आदेश, यानी ब्लैंकेट ऑर्डर दिया है. वहां किसी को दाखिल नहीं होने दिया जा रहा.

धारा 144 के आधार पर उत्तर प्रदेश के गृह सचिव ने पंजाब के मुख्य सचिव को यह लिखकर भेजा है कि पंजाब से किसी को भी लखीमपुरी खीरी आने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इसके अलावा वहां इंटरनेट भी काट दिया गया है. लखनऊ में तो 8 नवंबर तक धारा 144 लागू कर दी गई है.

लेकिन यह लीगल कैसे है? क्या उत्तर प्रदेश सरकार वाकई राजनैतिक नेताओं को किसी ऐसी जगह जाने से रोक सकती है जहां कोई हिंसा नहीं हो रही या जहां सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है? क्या किसी जिले को देश के बाकी के हिस्से से काटने के लिए धारा 144 का व्यापक आदेश दिया जा सकता है?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

उत्तर प्रदेश प्रशासन प्रतिबंधों को कैसे जायज ठहरा रहा है?

प्रियंका गांधी ने गिरफ्तारी के बाद एनडीटीवी को बताया कि पुलिस ने पहले कहा, वे उन्हें धारा 144 की वजह से रोक रहे हैं.

उनके मुताबिक, जब उन्होंने कहा कि वह पांच से भी कम लोगों के साथ वहां जाएंगी ताकि यह धारा लागू ही न हो तो उन्होंने कहा कि उन्हें सीआरपीसी की धारा 151 के तहत गिरफ्तार किया गया है, इस आधार पर कि वह ‘भविष्य में अपराध कर सकती हैं.’

यहां ध्यान दिया जाना चाहिए कि धारा 144 के तहत प्रियंका का तर्क एकदम गलत है. सीआरपीसी की धारा 144 जिला मजिस्ट्रेट को इस बात की इजाजत देती है कि वह किसी खास इलाके में निषेधाज्ञा के रूप में प्रतिबंध लगाए ताकि उपद्रव या खतरे की आशंका वाले तत्काल मामलों पर रोक लगाई जा सके.

जैसा कि लोग सोचते हैं, उससे एकदम उलट, सीआरपीसी की धारा 144 एक अकेले शख्स पर भी लगाई जा सकती है, इसे प्रदर्शनों को बैन करने, सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध लगाने और किन्हीं जगहों पर लोगों को पहुंचने से रोकने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
लोगों की राय है कि यह पांच से ज्यादा लोगों के जमा होने पर लागू होती है, तो इसकी वजह यह है कि इस आदेश में आम तौर पर ‘गैर कानूनी जमघट’ पर पाबंदी का जिक्र होता है. इंडियन पीनल कोड की धारा 141 के तहत गैर कानूनी जमघट उसे कहते हैं जब पांच या उससे ज्यादा लोग अपराध करने के इरादे से जमा होते हैं.

हालांकि सीआरपीसी की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा सिर्फ पांच लोगों के गैर कानूनी जमघट तक सीमित नहीं होती है, और इसे सिर्फ एक शख्स को दूर रखने के लिए, या किसी किस्म के जमघट पर पाबंदी लगाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक और कानूनी प्रावधान का जिक्र किया था- सीआरपीसी की धारा 151. यह पुलिसवालों को बिना वॉरंट किसी शख्स को गिरफ्तार करने की इजाजत देती है, अगर उन्हें ‘संज्ञेय अपराध करने की साजिश’ के बारे में पता चलता है और उस शख्स को गिरफ्तार करना ही अपराध को रोकने का एकमात्र तरीका होता है. इस अधिकार का इस्तेमाल करके किसी व्यक्ति को 24 घंटे कस्टडी में रखा जा सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
यह पहली बार नहीं है जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक पूरे जिले की तालाबंदी की है और लोगों को किसी ऐसी जगह जाने से रोका है जहां कोई विवाद खड़ा हुआ है.

हाथरस मे ऐसी ही पाबंदी सितंबर और अक्टूबर 2020 में लगाई गई थी. एक दलित लड़की के कथित गैंग रेप और हत्या के बाद ऐसा किया गया था. तब उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्रियंका और राहुल गांधी को गांव जाने से रोका था. पुलिस ने धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा की दुहाई दी थी. इसी तरह प्रेस वालों को गांव तक पहुंचने और मामले पर रिपोर्ट करने से रोकने के लिए भी ऐसे ही प्रतिबंधों का शुरुआत में इस्तेमाल किया गया था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा कब जारी की जा सकती है?

जिला मेजिस्ट्रेट (या इस उद्देश्य के लिए सरकार द्वारा अधिकृत एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट) धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा जारी कर सकता है, अगर उसे लगता है कि ऐसा करना निम्नलिखित को रोकने के लिए जरूरी है:

  • कानूनी तरीके से नियुक्त किए गए किसी व्यक्ति को रोकना, या

  • मानव जीवन या स्वास्थ्य या सुरक्षा को खतरा, या

  • सार्वजनिक शांति में खलल, या दंगा, या बलवा.

जैसा कि धारा 144 के मूल पाठ में कहा गया है, निषेधाज्ञा लिखित में जारी करनी होगी, और इसका कारण भी बताना होगा कि मेजिस्ट्रेट को क्यों ऐसा लगता है कि सार्वजनिक व्यवस्था को खतरा है.

इस सिलसिले में कारण बताना कितना अहम है, और वह भी लिखित में, इसे सुप्रीम कोर्ट जनवरी 2020 में अनुराधा भसीन फैसले में दोहरा चुका है.

"राज्य सार्वजनिक शांति या कानून और व्यवस्था पर खतरे का आकलन करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है. हालांकि, कानून उनसे यह अपेक्षा करता है कि इस शक्ति को इस्तेमाल करने के लिए वह भौतिक तथ्य देगा. इससे इसकी न्यायिक जांच की जा सकेगी और यह सत्यापित हो सकेगा कि क्या इस शक्ति के इस्तेमाल के लिए पर्याप्त तथ्य हैं."
सुप्रीम कोर्ट
ADVERTISEMENTREMOVE AD

जब पुलिस सीआरपीसी की धारा 144 के तहत आदेश देती है तो सुप्रीम कोर्ट ने इस सिलसिले में कई सिद्धांतों को पेश किया. निम्नलिखित कुछ सिद्धांत इस मामले में मुफीद हैं:

  1. धारा 144 के तहत शक्ति का प्रयोग न केवल मौजूदा खतरा होने पर, बल्कि खतरे की आशंका होने पर भी किया जा सकता है. हालांकि, जिस खतरे पर विचार किया जा रहा है, उसकी प्रकृति 'इमरजेंसी' जैसी होनी चाहिए.

  2. धारा 144 के तहत मिली शक्ति का इस्तेमाल विचारों की वैध अभिव्यक्ति या शिकायत या लोकतांत्रिक अधिकार के उपयोग के दमन के लिए नहीं किया जा सकता है.

  3. धारा 144 के तहत दिए गए आदेश में भौतिक तथ्यों का उल्लेख होना चाहिए ताकि उसकी न्यायिक समीक्षा की जा सके. शक्ति का प्रयोग प्रामाणिक और उचित तरीके से किया जाना चाहिए, और भौतिक तथ्यों पर भरोसा करते हुए यह आदेश दिया जाना चाहिए, जिसमें दिमाग के इस्तेमाल का भी संकेत हो.

  4. धारा 144 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए मेजिस्ट्रेट आनुपातिकता के सिद्धांतों के आधार पर अधिकारों और प्रतिबंधों को संतुलित करने को मजबूर है, और इस प्रकार उसे कम से कम दखल देने वाले उपाय लागू करना होता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लखीमपुर खीरी में उत्तर प्रदेश पुलिस के प्रतिबंध आनुपातिक नहीं, यानी हालात से हिसाब से नहीं

यह समझना मुश्किल है कि लखीमपुर खीरी में दाखिल होने पर लगे व्यापक प्रतिबंध, या जिले में राजनीतिक नेताओं को जाने से रोकना, इन सिद्धांतों के हिसाब से कैसे वैध होगा.

उस इलाके में फिलहाल कोई हिंसा या दंगा नहीं हो रहा, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि वहां कोई इमरजेंसी है. आदेशों के व्यापक होने का मतलब यह है कि इससे पीड़ित के परिवार की शिकायत दर्ज कराने की कोशिश पर साफ तौर पर असर हो सकता है.

आदेश साफ तौर से हालात के हिसाब से नहीं दिए गए हैं, क्योंकि हिंसा को रोकने के लिए इससे कम कड़े उपाय भी किए जा सकते थे. जैसे पुलिस को बड़ी संख्या में तैनात करना या किसी एक जगह पर बड़े जमावड़े पर पाबंदी लगाना.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
यह साफ नहीं है कि राजनैतिक और संवैधानिक नेताओं को उस इलाके में जाने और हिंसा के पीड़ितों से मिलने से रोकने के असल कारण क्या हो सकते हैं. ऐसा करके भारतीय लोकतंत्र की नई व्याख्या की जा रही है जिसमें विपक्ष के नेताओं को किसी जगह पर पहुंचने से सिर्फ इसलिए रोका जाए क्योंकि सरकार उन्हें वहां नहीं देखना चाहती.

ऐसी कोई कानूनी मिसाल नहीं, जब ऐसा किया गया हो. बल्कि, जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब वह 26/11 हमले के कुछ ही दिन बाद मुंबई गए थे और वहां उनके राजनैतिक भाषणों पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई थी.

इसके अलावा धारा 144 के आदेश को लोगों के लिए स्पष्ट रूप से प्रकाशित भी नहीं किया गया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अनुराधा भसीन मामले में यह कहा था कि सभी राज्यों के लिए ऐसा करना जरूरी है.

राजनैतिक नेताओं को गिरफ्तार करने के लिए सीआरपीसी की धारा 151 का इस्तेमाल भी काफी शको-शुबहा पैदा करता है. पुलिस किस आधार पर यह दावा कर सकती है कि कोई नेता लखीमपुर खीरी जैसी जगह पर सिर्फ अपराध करने के लिए जा रहा है? क्या उत्तर प्रदेश पुलिस के पास कार्रवाई करने लायक ऐसी कोई खुफिया जानकारी है कि प्रियंका गांधी वाड्रा वहां दंगा भड़काने वाली थीं?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

या वे लोग सिर्फ यह कह रहे थे कि वह धारा 144 के आदेश का उल्लंघन कर सकती थीं (जोकि तकनीकी रूप से एक क्रिमिनल अपराध है)? अगर ऐसा है तो धारा 144 के आदेशों में वैधता न होने पर, धारा 151 के इस्तेमाल भी गलत हो जाता है.

इलाके में इंटरनेट बंद करने पर भी सवाल खड़े होते हैं.

अनुराधा भसीन फैसले में शीर्ष अदालत ने साफ किया था कि ऐसे आदेश भी हालात के हिसाब से दिए जाने चाहिए- मतलब, आनुपातिक होने चाहिए और संविधान के अनुच्छेद 19 (2) और 19 (6) में निर्दिष्ट

उपयुक्त प्रतिबंधों के दायरे में आने चाहिए- चूंकि इंटरनेट अभिव्यक्ति और पेशे की आजादी का मुख्य मंच है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×