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RTI: सालाना रिपोर्ट देने में UP जीरो, बिहार के पास वेबसाइट ही नहीं

14 साल में महज 2.5% लोगों ने किया आरटीआई का इस्तेमाल

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सूचना का अधिकार यानी RTI कानून को साल 2005 में भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत हथियार के रूप में लागू किया गया था. इस कानून को लागू हुए 14 साल बीत चुके हैं लेकिन इन सालों में RTI कानून का इस्तेमाल सिर्फ 2.5 फीसदी लोगों ने किया है.

हैरानी की बात ये है कि उत्तर प्रदेश ने 14 साल में एक भी वार्षिक रिपोर्ट पेश नहीं की है, जबकि बिहार सूचना आयोग तो अब तक अपनी वेबसाइट भी नहीं बना पाया है. छत्तीसगढ़ ही एकमात्र राज्य है जिसने अपनी सभी वार्षिक रिपोर्टें निकाली हैं.

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RTI दिवस की पूर्व संध्या पर गैरसरकारी शोध संस्था ‘‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया’’ ने एक रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. रिपोर्ट में देश के 28 राज्य सूचना आयोगों के कामकाज का विश्लेषण किया गया है.

सालाना रिपोर्ट प्रकाशित करने वाला छत्तीसगढ़ इकलौता राज्य

रिपोर्ट के मुताबिक, "छत्तीसगढ़ एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसने साल 2005 से 2018 तक वार्षिक रिपोर्ट (वेबसाइट पर उपलब्ध) प्रकाशित की है. इसके अलावा 28 राज्यों में से केवल 9 (जम्मू - कश्मीर को छोड़कर) ने 2017-18 तक वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की है.”

RTI एक्ट 2005 के मुताबिक, वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करना अनिवार्य है. RTI एक्ट के सेक्शन 25 (1) के मुताबिक, केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों के लिए सालाना रिपोर्ट तैयार करना अनिवार्य है.

यूपी ने 14 सालों में नहीं छापी एक भी रिपोर्ट

‘‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया’’ (TII) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि छत्तीसगढ़ ने RTI कानून के प्रावधानों का कड़ाई से पालन किया है, जबकि उत्तर प्रदेश एकमात्र राज्य है जिसने पिछले 14 सालों में एक भी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है.

सूचना आयोगों में खाली पड़े पद

सूचना आयुक्तों के रूप में महिलाओं का प्रतिनिधित्व भी राज्य के पैनलों में निराशाजनक है. सूचना आयोगों में केवल सात महिला सदस्य हैं, जो कुल स्वीकृत पदों का लगभग 4.5 प्रतिशत है. एक सूचना आयोग में 10 सूचना आयुक्त और एक मुख्य सूचना आयुक्त होना चाहिए.

TII की रिपोर्ट से पता चलता है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के 155 में से 24 पद केंद्रीय और राज्य पैनल में खाली हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल से रिक्तियों की संख्या आधी हो गई है.

बिहार के पास वेबसाइट ही नहीं

रिपोर्ट में कहा गया है, "हालांकि, सभी राज्यों (बिहार को छोड़कर) के पास एक फंक्शनल वेबसाइट है. लेकिन केंद्रीय सूचना आयोग, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों को छोड़कर सभी वेबसाइटें केवल बुनियादी जानकारी देने वाली हैं. यानी कि इन वेबसाइटों पर सूचना आयोगों के काम करने के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है."

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RTI एक्ट पालन में गिरी रैंकिंग

रिपोर्ट के अनुसार, RTI के पालन को लेकर जारी वैश्विक रैकिंग में भारत की रैकिंग दूसरे स्थान से गिरकर अब 7वें पायदान पर पहुंच गई हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक रैंकिंग में जिन देशों को भारत से ऊपर स्थान मिला हैं, उनमें ज्यादातर देशों में भारत के बाद आरटीआई कानून लागू हुआ है.

बता दें, देश में 12 अक्टूबर 2005 को RTI एक्ट लागू हुआ था. इसके बाद से हर साल इस दिन RTI दिवस मनाया जाता है. यह कानून केंद्र सरकार, सभी राज्य सरकारों, स्थानीय शहरी निकायों और पंचायती-राज संस्थाओं में लागू है.

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आवेदन के मामले में महाराष्ट्र अव्वल

RTI के कुल आवेदनों की संख्या के आधार पर पांच अग्रणी राज्यों में महाराष्ट्र (61,80,069 आवेदन) पहले स्थान पर, तमिलनाडु (26,91,396 आवेदन) दूसरे और कर्नाटक (22,78,082 आवेदन) तीसरे स्थान पर है, जबकि केरल चौथे और गुजरात पांचवें पायदान पर हैं.

वहीं, RTI के सबसे कम इस्तेमाल वाले राज्यों में मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम, मेघालय और अरूणाचल प्रदेश हैं. रिपोर्ट में सूचना आयोगों में पदों की रिक्ति को भी आरटीआई की सक्रियता के लिए बाधक बताया गया है.

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