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केजरीवाल: आंदोलनकारी कार्यकर्ता से चुनावी खिलाड़ी बनने तक का सफर

अरविंद केजरीवाल आरटीआई कैंपेन से चर्चा में आए थे

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वीडियो प्रोड्यूसर: देबायन दत्ता

अरविंद केजरीवाल तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं. इस चुनाव में बंपर जीत के साथ केजरीवाल ने लोकसभा चुनावों में पार्टी की करारी हार का बदला लिया है.

लेकिन केजरीवाल का इरादा एक वक्त सक्रिय राजनीति का नहीं था. 2011 में अन्ना आंदोलन के वक्त सरकार से जनलोकपाल पर सहमति न बन पाने के चलते उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई थी. जानते हैं आईआईटी से अन्ना आंदोलन तक केजरीवाल का सफर:

हरियाणा के भिवानी जिले में इंजीनियर पिता गोबिंद राम केजरीवाल और ग्रहणी मां गीता देवी के बेटे अरविंद केजरीवाल का जन्म 16 अगस्त 1968 को हुआ. पिता का तबादला अकसर दूसरे शहरों में होता रहता था. इसके चलते अरविंद की परवरिश कई शहरों में हुई.

मसलन उनहोंने सोनीपत, गाजियाबाद और हिसार में अपना शुरूआती वक्त गुजारा. हिसार में उन्होंने कैंपस स्कूल में दाखिला लिया. वहीं सोनीपत में क्रिश्चियन मिशनरी होली चाइल्ड स्कूल में केजरीवाल ने पढ़ाई की.

IIT में दाखिला, फिर सिविल सर्विस के साथ एक्टिविज्म

1985 में 17 साल की उम्र में केजरीवाल ने आईआईटी की परीक्षा पास कर ली. उनकी 563 वीं रैंक आई और कॉलेज मिला- आईआईटी खड़गपुर. यहां वे मैक्नीकल इंजीनयरिंग के छात्र थे. 1989 में यहां से पासआउट होने के बाद केजरीवाल को टाटा स्टील में नौकरी मिल गई. पोस्टिंग मिली जमशेदपुर.

अरविंद केजरीवाल आरटीआई कैंपेन से चर्चा में आए थे
नौकरी के दौरान एक्टिविज्म के दिनों से ही मनीष सिसोदिया, अरविंद केजरीवाल के साथ हैं.
फोटो: https://aamaadmiparty.org/

केजरीवाल ने यह नौकरी तीन साल तक की. इसके बाद उन्होंने सिविल एक्जाम की तरफ ध्यान लगाने के लिए 1992 में नौकरी छोड़ दी.

तैयारी के दौरान वे कोलकाता भी गए. यहां वे मदर टेरेसा से मिले. अलग-अलग ब्योरों में केजरीवल बताते हैं कि इसका उनके जीवन पर गहरा असर हुआ. केजरीवाल ने मिशनरीज़ ऑफ चेरिटी, रामकृष्ण मिशन में बतौर वॉलेंटियर अपनी सेवाएं दी. वे नेहरू युवा केंद्र से भी जुड़े रहे. इस बीच 1993 में केजरीवाल ने सिविल सेवा भी पास कर ली. उन्हें इंडियन रिवेन्यू सर्विस में नौकरी मिली.

‘परिवर्तन’, रेमन मैग्सेसे...फिर ‘कबीर’

अगले पांच साल तक केजरीवाल ने दिल्ली में अलग-अलग पदों पर नौकरी की. नौकरी में ही रहते हुए उन्होंने मनीष सिसोदिया के साथ ''परिवर्तन'' एनजीओ का गठन किया. यह एनजीओ दिल्ली के सुंदर नगर इलाके में काम करता था.

परिवर्तन लोगों की टैक्स फाइलिंग, पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम से जुड़ी दिक्कतों में मदद करता था और भ्रष्टाचार के खिलाफ कैंपेन में भूमिका निभा रहा था. इसे बनाने के कुछ समय बाद केजरीवाल ने दो साल के लिए पढ़ाई करने के लिए नौकरी से छुट्टी ले ली. उन्हें इस शर्त पर छुट्टी दी गई कि वे लौटकर कम से कम तीन साल तक सरकारी सेवा करेंगे या फिर इस बीच मिली हुई सैलरी लौटाएंगे.

परिवर्तन ने पीआईएल का जबरदस्त इस्तेमाल किया. सन् 2000 में एनजीओ ने एक पीआईएल दाखिल कर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाने की अपील की. इसके सदस्यों ने चीफ इनकम टैक्स कमिश्नर के दफ्तर के सामने धरना भी दिया.

2001 में दिल्ली सरकार द्वारा पारित किए गए राज्य स्तरीय राइट टू इंफॉर्मेशन का भी एनजीओ ने बखूबी इस्तेमाल किया. इसके जरिए लोगों के सरकारी दफ्तरों में काम करवाए जाते और उनसे रिश्वत न देने की अपील की जाती.

अरविंद केजरीवाल आरटीआई कैंपेन से चर्चा में आए थे
गांधी टोपी, आज आम आदमी पार्टी का अभिन्न हिस्सा है, जिस पर एक स्लोगन लिखा होता है. इसी टोपी में केजरीवाल का एक पुराना फोटो
फोटो: https://aamaadmiparty.org/

दो साल बाद, नवंबर 2002 में केजरीवाल ने दोबारा सर्विस ज्वाइन कर ली. केजरीवाल का कहना है कि अगले 18 महीने तक उन्हें कोई पद ही नहीं दिया गया. बस वे कहने को नौकरी में थे. इसके बाद उन्होंने ''लीव विदॉउट पे'' के लिए आवेदन कर दिया. अगले 18 महीनों तक उन्होंने इसी तरह काम किया. इस बीच वे अपने एनजीओ से जुड़े कामों में लगे रहे. आखिरकार फरवरी 2006 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया.

लेकिन इसके पहले 2005 के आखिर में वे मनीष सिसोदिया के साथ मिलकर ''कबीर'' नाम का एनजीओ लॉन्च कर चुके थे. यह संगठन भी आरटीआई और प्रशासन में जनभागीदारी के क्षेत्र में काम करता था.

इस वक्त तक राष्ट्रीय स्तर पर आरटीआई एक्ट के लिए चलाए जा रहे कैंपेन में अरूणा रॉय और शेखर सिंह के साथ अरविंद केजरीवाल का नाम प्रमुखता से आने लगा था. आखिर कार 2005 में सरकार आरटीआई एक्ट पास भी कर दिया.

2006 में एमर्जेंट लीडरशिप के लिए अरविंद केजरीवाल को रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया. हालांकि 2012 आते-आते परिवर्तन पस्त पड़ गया. जिस सुंदर नगरी के इलाके में यह एनजीओ काम करता था, वहां पुरानी समस्याएं ज्यों के त्यों हो गईं. अरविंद केजरीवाल ने भी माना कि परिवर्तन की पहुंच सीमित थी.

अरविंद केजरीवाल आरटीआई कैंपेन से चर्चा में आए थे
अरविंद केजरीवाल के खास सिपहसालार हैं संजय सिंह
फोटो: https://aamaadmiparty.org/

2005 में केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया और अभिनंदन शेखरी के साथ मिलकर पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन का गठन किया. उन्होंने मैग्सेसे पुरस्कार में मिले पैसे को इस संगठन का आधार बनाया. इस फाउंडेशन के ट्रस्टी के तौर पर प्रशांत भूषण और किरण बेदी भी शामिल थे.

2011 में जनलोकपाल आंदोलन आते-आते केजरीवाल इस संगठन के जरिए सक्रिय काम करते रहे. जैसा ऊपर बताया कि केजरीवाल ने जनलोकपाल आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी का गठन किया. केजरीवाल को अन्ना हजारे के बाद इस आंदोलन का सबसे प्रमुख चेहरा माना गया.

राजनीति में केजरीवाल

आम आदमी पार्टी ने 2013 में दिल्ली चुनाव में हिस्सा लिया. चुनाव में पार्टी ने 28 सीटें जीतीं. खुद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 25,864 वोटों से हराया. आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के आठ सदस्यों, जनला दल के एक सदस्य और एक निर्दलीय सदस्य की मदद से अल्पमत की सरकार बनाई.

लेकिन 14 फरवरी को 2014 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसकी वजह केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में जनलोकपाल बिल ना ला पाना बताया. इसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

2014 में हुए लोकसभा चुनाव में केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव भी लड़ा. लेकिन वे तीन लाख सत्तर हजार के बड़े मार्जिन से बुरे तरीके से हार गए. उस चुनाव में आम आदमी पार्टी के चार प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

आखिरकार 2015 में दिल्ली में विधानसभा चुनावों में केजरीवाल ने जबरदस्त जीत दर्ज की. कांग्रेस पार्टी का चुनावों में पूरी तरह खात्मा हो गया. बीजेपी महज तीन सीटों तक सिमटकर रह गई. आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटों पर जीत मिली.

अरविंद केजरीवाल आरटीआई कैंपेन से चर्चा में आए थे
2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक रैली को संबोधित करते अरविंद केजरीवाल
फोटो: https://aamaadmiparty.org/

अगले पांच सालों में से शुरूआती तीन साल दिल्ली सरकार के लिए बहुत उथल-पुथल भरे रहे. कभी केंद्र सरकार, तो कभी एलजी से टकराव की खबरें आम थीं. केजरीवाल अकसर केंद्र सरकार पर काम न करने देने का आरोप लगाते.

इस दौरान उनकी ''मुफ्त बिजली और पानी'' की सुविधाएं काफी लोकप्रिय हुईं. दिल्ली के स्कूलों में इनोवेशन और मोहल्ला क्लीनिक के उनके कामों की भी लोगों ने तारीफ कीं.

इन्हीं मुद्दों पर उन्होंने 2020 का चुनाव लड़ा और बीजेपी जैसी भारी-भरकम चुनावी मशीनरी को दिल्ली में बुरे तरीके से पस्त कर दिया.

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