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हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी है क्या? DRDO का सफल टेस्ट करना अहम क्यों?

इस सफल परीक्षण का भारत की रॉकेट टेक्नोलॉजी में इतना महत्त्व क्यों हैं

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डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (DRDO) ने 7 सितंबर को स्वदेशी हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया. ये टेक्नोलॉजी भारत के आने वाले सभी डिफेंस प्रोजेक्ट्स के लिए महत्वपूर्ण है. HSTDV टेस्ट ओडिशा के तट के करीब डॉ अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया. इसके जरिए स्क्रैमजेट इंटीग्रेटेड व्हीकल की ऑटोनोमस फ्लाइट दिखाने की कोशिश की गई.

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इस सफल परीक्षण का भारत की रॉकेट टेक्नोलॉजी में इतना महत्त्व क्यों हैं, आइए समझते हैं.

HSTDV क्या है?

HSTDV एक मानव-रहित स्क्रैमजेट है. ये भारत की हाइपरसोनिक स्पीड उड़ान क्षमता का टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर है. हाइपरसोनिक फ्लाइट का मतलब है कि ये साउंड की स्पीड से छह गुना तेजी से जा सकता है और 20 सेकंड में 32.5 किमी की ऊंचाई पर पहुंच सकता है.

इस सफल परीक्षण का भारत की रॉकेट टेक्नोलॉजी में इतना महत्त्व क्यों हैं
HSTDV का एक मॉडल
(फोटो: DRDO) 

ये काम कैसे करता है?

HSTDV क्रूज व्हीकल एक सॉलिड राकेट मोटर से जुड़ा हुआ है, जो इसे जरूरत के मुताबिक ऊंचाई पर ले जाता है. एक निश्चित स्पीड पर पहुंचने के बाद क्रूज व्हीकल, लॉन्च व्हीकल से निकल जाता है. इसके बाद स्क्रैमजेट इंजन खुद ही स्टार्ट होता है और अपने टारगेट की तरफ बढ़ता है.

इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल क्या है?

ये टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर हाइपरसोनिक और लंबी-दूरी की क्रूज मिसाइल के कैरियर व्हीकल की तरह इस्तेमाल होता है. मिलिट्री इस्तेमाल के अलावा इसका सिविलियन इस्तेमाल भी है. DRDO के मुताबिक, लंबी-दूरी की मिसाइलों के अलावा ये टेक्नोलॉजी कम कीमत में छोटी सैटेलाइट को लॉन्च करने में भी इस्तेमाल की जा सकती है. DRDO का कहना है कि सफल टेस्टिंग के बाद अब भारत अगले पांच सालों में अपनी पहली हाइपरसोनिक मिसाइल बना सकेगा.

हाइपरसोनिक मिसाइल क्या होती है?

हाइपरसोनिक मिसाइल अभी सेवा में शामिल बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइल से तेज स्पीड में ट्रेवल करती हैं. ये मिसाइल पारंपरिक या न्यूक्लियर पेलोड ले जा सकती हैं और इनका इस्तेमाल अंदरूनी या बाहरी वायुमंडल में आ रही किसी मिसाइल को रोकने में भी किया जा सकता है. हाइपरसोनिक हथियार आधुनिक बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम के खिलाफ बचाव के लिए बनाए जाते हैं.

ये टेक्नोलॉजी कितने देशों के पास है?

भारत अब अमेरिका, रूस, चीन जैसे देशों के क्लब में शामिल हो गया है. हालांकि, भारत अभी शुरुआती स्टेज पर ही है. वहीं, दूसरे देशों ने काफी पहले ही ये टेक्नोलॉजी डेवलप कर ली थी. इन देशों के पास साउंड की स्पीड से पांच गुना तेज चलने वाले हाइपरसोनिक सिस्टम बना लिए हैं. इनकी मदद से ये देश अपने दुश्मन की एंटी-एयर डिफेंस मिसाइल को मात दे सकते हैं.

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