देशभक्ति और देशद्रोह की बहस के शोर में एक खबर जो संसद की फाइलों में ही दबी रह गई, वो है भारतीय जलमार्ग विधेयक का पारित होना.
इस विधेयक के चलते भारत में मौजूद पांच राष्ट्रीय जलमार्गों की संख्या बढ़कर अब 111 हो गई है.
जानकार मानते हैं कि ये कदम न सिर्फ महत्वकांक्षी है, बल्कि भारत की समुद्र नीति में ऐतिहासिक बदलाव ला सकता है.
भारतीय जलमार्ग: अवसरों की खदान?
भारतभर में लगभग 14,500 किलोमीटर का जलमार्ग है जिसमें नदियां, कनाल, बैक-वॉटर और खाड़ी के रास्ते शामिल हैं.
बावजूद इसके, रेल और सड़कों के मुकाबले आवाजाही या माल की ढुलाई के लिए भारत में नदियों और समुद्र का इस्तेमाल आज भी बेहद कम हो रहा है. आंकड़े बताते हैं कि भारत में 34 फीसदी माल की ढुलाई भारतीय जलमार्गों से नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय पोर्ट गेट्स के जरिए होती है. ये न सिर्फ महंगा है बल्कि इसके चलते माल आमतौर पर छह से सात दिन देरी से अपने ठिकाने पर पहुंचता है.
चीन और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देश, नदियों के रखरखाव के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे उन देशों में माल ढुलाई और यातायात के लिए जलमार्गों का प्रयोग बेहद आसान हो गया है. उनके पोर्टस पर बड़े-बड़े जहाज आ सकते हैं, लेकिन भारत में छोटे जहाज़ और नाव भी बमुश्किल जलमार्गों का पूरा इस्तेमाल कर पाते हैं.
ब्रितानी राज में रेल और सड़क मार्गों का बुनियादी ढांचा तैयार हुआ और आजादी के बाद, लगभग हर सरकार ने रेल और सड़क परिवहन के विकास पर ध्यान दिया है, लेकिन जलमार्ग विकसिक करने को लेकर सरकारे कभी चुस्त नहीं रहीं.
जलमार्गों का इस्तेमाल प्रदूषण कम करता है और भारत में लगातार बढ़ रही सड़क दुर्घटनाओं के मामलों में कमी ला सकता है.
अंतर्देशीय जलमार्गों के जरिए सड़क और रेल के मुकाबले पांच गुना अधिक माल एक से दूसरी जगह पहुंचाया जा सकता है. जलमार्ग विकसित करना और उनका रखरखाव करना दूसरे परिवहन साधनों के मुकाबले आसान भी है और सस्ता भी.
यही वजह है कि भारत सरकार अब देशभर में राष्ट्रीय हाईवे की तर्ज पर राष्ट्रीय जलमार्ग विकसित करने की योजना बना रही है.
उम्मीदें और घोषणाएं
अपने बजट भाषण में अरुण जेटली ने कहा कि सरकार देश के दोनों तटीय इलाकों पर बंदरगाह बनाने की योजना बना रही है.
नेशनल वॉटरवर्क प्रोजेक्ट के ज़रिए भारतभर में नेशनल हाईवे की तर्ज पर राष्ट्रीय जलमार्ग बनाने का काम तेज़ कर दिया गया है.अरुण जेटली, वित्त मंत्री
इससे पहले फरवरी में व्यापार संगठन एसोचैम की एक बैठक को संबोधित करते हुए केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि जलमार्ग विकसिक करके सड़क राज्यमार्गों पर बोझ कम किया जाएगा.
हम 2,000 पोर्ट्स बनाएंगे. इसके अलावा भारतभर में पांच ठिकानों पर माल की लोडिंग-अनलोडिंग में काम आने वाली रोल-ऑन-रोल-ऑफ वैसेल तैनात की जाएंगी. साथ ही वाराणसी, हल्दिया और साहिबगंज के बीच रेल, सड़क और जलमार्गों का मिलाजुला तानाबाना ज्यादा से ज्यादा जगहों को इस परियोजना से जोड़ेगा.नितिन गडकरी, परिवहन मंत्री
यही नहीं मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी सागरमाला परियोजना का मकसद 7,500 किलोमीटर लंबी भारतीय तटसीमा को बंदरगाह के रुप में विकसित करना है. इस परियोजना के लिए शिपिंग उद्योग को अगले कुछ महीनों में 70,000 करोड़ के निवेश की उम्मीद है.
कैबोटाज लॉ में बदलाव
इस साल की शुरुआत में कार निर्माता कंपनी ह्यूंदेय ने अपनी 800 कारें चेन्नई बंदरगाह से रवाना की जिन्हें लगभग सात दिन बाद गुजरात के पिपवाव बंदरगाह पर उतारा गया. ये पहली बार था जब किसी कार कंपनी ने घरेलू बाज़ार के लिए जलमार्ग से माल-ढुलाई कराई.
ह्यूंदेय का ये कदम बाजार के लिए कितना महत्वपूर्ण साबित हो सकता है इसका अंदाजा चेन्नई पोर्ट के उपाध्यक्ष सैरिल सी जॉर्ज की इस टिप्पणी से लगाया जा सकता है.
ह्यूंदेय ने जिस तरह अपने माल को भेजने का फैसला किया उसने दूसरी कंपनियों के लिए अवसर खोल दिए हैं. सड़क के मुकाबले जलमार्ग से सामान भेजना सस्ता है. हमें उम्मीद है कि सरकार जलमार्ग का इस्तेमाल करनेवाली कंपनियों के लिए कोई योजना बनाएगी.सैरिल सी जॉर्ज, चेन्नई पोर्ट के उपाध्यक्ष
ह्यूंदेय ने ये कदम पिछले साल यानी 2015 में भारतीय कैबोटाज लॉ में हुए संशोधनों के बाद उठाया है.
संशोधन से पहले भारतीय कैबोटाज लॉ के मुताबिक देश की समुद्री सीमा के भीतर केवल भारतीय रोल-ऑन-रोल-ऑफ वैसेल ही एक तट से दूसरे तट तक सामान ले जा सकती थीं.
भारत में इन रोल-ऑन-रोल-ऑफ वैसेल की संख्या कम है और इसके चलते भारत में व्यापार करने वाली कंपनियां, कोलंबो और सिंगापुर के ज़रिए माल ढुलाई कराने लिए बाध्य थीं. अगले पांच साल के लिए कैबोटाज लॉ में दी गई ढील के बाद अब पासा पलट गया है.
विशेषज्ञों का मानना है कि जलमार्गों के विकास को लेकर शुरु हुई नई परियोजनाएं और भारतीय कैबोटाज लॉ में बदलाव कुलमिलाकर माल ढुलाई के लिए समुद्री रास्तों और नदियों का विकल्प खोलते हैं.
शायद यही वजह है कि अडानी पोर्ट्स एंड स्पैशल इकोनॉमिक ज़ोन प्राइवेट लिमिटेड जैसी कंपनियों ने अब महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और गुजरात के तटीय इलाकों में अपनी पैठ जमानी शुरु कर दी है. अडानी समूह पहले ही ये ज़ाहिर कर चुका है कि कंपनी, भारतीय बंदगाहों को श्रीलंका, बांग्लादेश सहित यूरोपीय तटों से जोड़ना चाहती है.
चुनौती बनाम संभावनाएं
जलमार्गों को हाईवे बनाने का रास्ता आसान नहीं है और सरकार के सामने कई तरह की चुनौतियां है.
नदियों में जल-प्रवाह मौसम पर निर्भर करता है. गर्मियों और सूखे के दौरान आवाजाही मुश्किल हो सकती है.
भारतभर में नदियों पर बने पुल अगर नीचे हैं तो इससे ट्रैफिक बाधित होता है. साथ ही जल संसाधनों का आवाजाही के लिए इस्तेमाल सिंचाई और पीने के पानी की ज़रूरत पूरी करने के बाद ही किया जा सकता है.
लेकिन जलमार्गों को लेकर जो संभावनाएं सामने हैं उनके सामने ये चुनौतियां फीकी साबित हो सकती हैं.
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