केरल के सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी हर उम्र की महिलाएं इस मंदिर के दर्शन नहीं कर पा रही हैं. माहवारी की उम्र वाली (10 से 50 साल) की महिलाओं को प्रदर्शनकारी अभी भी मंदिर तक नहीं जाने दे रहे हैं. सबरीमाला मंदिर दर्शन के मकसद से पंबा बेस कैंप पहुंचीं 11 महिलाओं को रविवार को वहां से मायूस होकर वापस लौटना पड़ा.
आखिर कौन सही-कौन गलत?
इन महिलाओं ने कहा कि पुलिस इस मामले में ड्रामा कर रही है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, महिलाओं का कहना है कि पुलिस ने वहां से जबरन हटा दिया. हालांकि, केरल पुलिस ने इन आरोपों को खारिज किया है. अब कौन सही कह रहा है कौन गलत, इसका पता नहीं, लेकिन ये साफ है कि इन महिलाओं को मंदिर में घुसने की आजादी अबतक नहीं मिल सकी है.
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 28 सितंबर, 2018 को 4-1 के बहुमत से सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी थी. अपने इस फैसले में कोर्ट ने उस प्रावधान को गलत ठहराया था, जिसके तहत सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष तक की आयु की महिलाओं के प्रवेश पर रोक थी.
बैन के लिए क्या दलील दी गई?
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान केरल त्रावणकोर देवासम बोर्ड की ओर से पेश हुए वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी थी कि सबरीमाला मंदिर में ब्रह्मचारी देव हैं और इसी वजह से तय आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर बैन है.
सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद भक्तों के साथ-साथ कुछ राजनीतिक दल भी सबरीमाला मंदिर की पुरानी परंपरा को खत्म करने के पक्ष में नहीं हैं. बीजेपी और कांग्रेस कोर्ट में दाखिल की गई एक समीक्षा याचिका का हवाला देते हुए इस मंदिर में हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश का विरोध कर रही हैं.
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