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महिला दिवस के दिन हजारों महिलाएं किसान आंदोलन में हुईं शामिल

हरियाणा, पंजाब से हजारों महिला किसान इस दिन किसान आंदोलन में शामिल हुईं

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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर 8 मार्च को दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान प्रदर्शन स्थलों पर अलग ही नजारा रहा. दिल्ली की सिंघू, गाजीपुर और टिकरी बॉर्डर पर इस खास दिन को 'महिला किसान दिवस' के दौर पर मनाया गया. हरियाणा, पंजाब से हजारों महिला किसान इस दिन किसान आंदोलन में शामिल हुईं. इस दिन मंच पर सारा कामकाज महिलाओं ने संभाला. इस खास दिन के लिए महिलाओं की टोली बनाई गई जिन्होंने खास आयोजन किए.

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  • किसान प्रदर्शनकारी महिलाएं

    (Photo accessed by The Quint)

वरिष्ठ किसान नेता कविता कुरुग्रंती ने पीटीआई से बातचीत में महिला दिवस की खास तैयारियों के बारे में बताया था और कहा था कि-

'महिला दिवस मनाने के लिए, किसान आंदोलन के स्टेज महिलाएं मैनेज करेंगी और सारे भाषण भी महिलाएं ही देंगीं. सिंघु बॉर्डर पर छोटा सा मार्च भी होगा. इससे जुड़ी जानकारी शेयर की जाएगी. हम उम्मीद करते हैं कि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं अलग-अलग प्रदर्शन स्थलों पर जुटेंगी.'

संयुक्त किसान मोर्चा के सभी प्रदर्शन स्थलों पर महिला दिवस के दिन महिलाओं का ज्यादा प्रतिनिधित्व देखने को मिलेगा. SKM ने ये जानकारी दी है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक 27 साल की कविता आर्या 8 मार्च को लेकर कार्यक्रम आयोजित कर रही हैं उनका कहना है कि 'मेरे साथ 10 से 15 महिला कार्यकर्ता हैं. 10 से 4 बजे तक स्टेज पर सारा कामकाज महिलाएं ही संभालेंगीं. महिलाएं किसान कानून और उसके असर पर बात करेंगीं.'

आर्या ने ये भी बताया कि कई सारी महिलाओं ने इस खास दिन के लिए गीत भी तैयार किए हैं.

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इसके पहले 6 मार्च को तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ जारी प्रदर्शन के 100 दिन पूरे हो गए. इस मौके पर शनिवार को किसानों ने अलग-अलग तरीकों से विरोध प्रदर्शन किया. किसानों ने 'काला दिवस' मनाते हुए कुंडली-मानेसर-पलवल (KMP) एक्सप्रेस वे पर पांच घंटे का ब्लॉक भी लगाया जाएगा.

बता दें दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर किसान पिछले 100 दिन से धरने पर बैठे हुए हैं. किसानों की मुख्य मांग नए कृषि कानूनों को वापस लेने और एमएसपी की कानूनी गारंटी देने की है. किसान संगठनों और सरकार के बीच अब तक 11 दौर की वार्ता हो चुकी है. सरकार ने कानूनों को 18 महीने के लिए लागू ना करने का प्रस्ताव भी दिया था. लेकिन किसानों ने इसे मानने से इंकार कर दिया.

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