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Sunday View:महिला पहलवानों पर चुप क्यों क्रिकेट के भगवान?कैसे बनेगा न्यू इंडिया?

पढ़ें तवलीन सिंह, मुकुल केसवान, टीएन नाइनन, आदिति फडणीस और पी चिदंबरम के विचारों का सार.

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भारत
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कैसे बनेगा न्यू इंडिया?

तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने हर भाषण में इस बात को दोहराते हैं कि न्यू इंडिया में सब कुछ अलग है. फिल्म प्यासा को याद करते हुए लेखिका ने लिखा है कि न्यू इंडिया में ऐसी कई चीजें जो बदली नहीं हैं. बेटियों की दुर्दशा उनमें से एक है. भले ही प्रधानमंत्री ने ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा दिया है लेकिन खुद उनके ही लोग इस नारे की मिट्टी पलीद करने में जुटे हैं. देश के लिए अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में पदक जीतने वाली पहलवानों की शिकायत है कि जिन्हें उन्होंने गुरु माना, उन्हीं ने उनका यौन शोषण किया.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि यौन शोषण करने वाले गुरु छोटे आदमी नहीं हैं. उत्तर प्रदेश से बीजेपी के सांसद हैं. उनकी आवाज में बेटियों की आवाज से ज्यादा दम है. इसलिए पुलिस प्राथमिकी तक दर्ज नहीं कर पाती. बेटियों का सम्मान बेटों से कम पुराने इंडिया में भी था, न्यू इंडिया में भी है. न्यू इंडिया में भी छोटी बच्चों को खरीदा और बेचा जाता है. पुलिस वाले इस कारोबार में लगे लोगों का साथ देते हैं.

जब तक भारत में बेटियों को बचाने और पढ़ाने क काम बड़े पैमाने पर नहीं होता है तब तक ‘न्यू इंडिया’ और ‘ओल्ड इंडिया’ में फर्क ज्यादा नहीं दिखेगा. छोटी उम्र में सबसे ज्यादा बेटियों की शादी भारत में होती है. देश में हर दिन सौ से ज्यादा बलात्कार होते हैं. निर्भया के घिनौने बलात्कार कांड के दौरान घड़ियाली आंसू बहाने वाली बीजेपी की महिला सांसद हाथरस की घटना पर चुप रहती हैं क्योंकि दरिंदे ठाकुर परिवारों के थे. लेखिका का प्रधानमंत्री से सवाल है- कैसे बनेगा आपका न्यू इंडिया?

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क्यों चुप हैं ‘क्रिकेट के भगवान’?

मुकुल केसवान ने टेलीग्राफ में लिखा है कि महिला पहलवान संघर्षरत हैं. उनके समर्थन में नीरज चोपड़ा, कपिल देव, वीरेंद्र सहवाग, इरफान पठान, हरभजन सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू जैसे खिलाड़ी सामने आए हैं. फिर भी क्रिकेट जगत की बड़ी हस्तियां चुप्पी साधे हुए हैं. इसमें संदेह नहीं कि शाहीन बाग और किसान आंदोलन से अलग किस्म का आंदोलन है. अपने साथ यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिला पहलवानों ने मोर्चा खोला है जिसे धीरे-धीरे जन समर्थन लगातार बढ़ता चला जा रहा है. मीडिया भी इसके कवरेज को लेकर मुस्तैद है.

केसवान लिखते हैं कि दूसरी तरफ हैं बीजेपी के सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह जो खुले आम कबूल चुके हैं कि उन्होंने एसपी पर उसके दफ्तर में पिस्तौल तानी थी. गुंडागर्दी और हत्या तक की बात भी वह मान चुके हैं. ऐसे व्यक्ति के खिलाफ आरोप दिल्ली पुलिस महिला पहलवानों की शिकायत पर तबह तक शिकायत नहीं लिखती जब तक कि सुप्रीम कोर्ट का निर्देश नहीं मिल जाता. ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा देने वाले आज बचाव की मुद्रा में खड़े हैं.

आंदोलनकारी पहलवान विनेश फोगाट सवाल करती हैं कि क्यों क्रिकेट के भगवान खामोश हैं? जब रिहाना और ग्रेट थनबर्ग ने किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट किए थे तो तेंदुलकर ने ट्वीट किया था, “भारत की संप्रभुत्ता से समझौता नहीं किया जा सकता. विदेशी ताकतें दर्शक हो सकती हैं लेकिन भागीदार नहीं. भारतीय भारत को जानते हैं और भारत के लिए सही रास्ता चुन सकते हैं. देश के रूप में हम एकजुट रहें. हैश टैग इंडिया टुगेदर, इंडिया अगेंस्ट प्रोपेगेंडा.”

जनसंख्या में अव्वल होने का सच

बिजनेस स्टैंडर्ड में टीएन नाइन ने लिखा है कि भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन गया है. संयुक्त राष्ट्र के इस दावे को बिना किसी आलोचना के स्वीकार कर लिया गया है. जबकि, सच यह है कि संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या को लेकर अक्सर गलत अनुमान देता रहा है. भारत का अनुमान है कि 2023 तक उसकी आबादी 138.3 करोड़ रहेगी जबकि चीन की आबादी 141.2 करोड़ रहने वाली है.

अमेरिकी जनसंख्या ब्यूरो के मुताबिक 2023 में भारत की जनसंख्या करीब 139.9 करोड़ रह सकती है. चीनी ब्यूरो ने चीन के लिए यह आंकड़ा 141.3 करोड़ रखा है जबकि भारत के लिए उससे कम. वर्ल्डमीटर के अनुसार भारत की मौजूदा आबादी 141.8 करोड़ है जबकि चीन की आबादी 145.5 करोड़ है.

नाइनन लिखते हैं कि भारत जैसे देशों में दरअसल सफलता का जश्न वास्तव में घटित होने से पहले ही मना लिया जाता है. ऐसें जनांकिकीय फायदा भी यूं ही गंवा दिया जाएगा, इसकी संभावना अधिक है. नाइनन लिखते हैं कि 2010 में संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि आबादी के मामले में भारत 2021 तक चीन से आगे निकल जाएगा, जो गलत साबित हुई. 2025 तक भारत की आबादी चीन से 6.3 करोड़ ज्यादा रहने की भविष्यवाणी भी सही साबित होती नहीं दिख रही है. 2015 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने कहा था कि 2050 तक भारत की आबादी 170 करोड़ का स्तर पार कर जाएगी, इसके सच होने की संभावना भी संदिग्ध है.

नाइनन लिखते हैं कि भारत के लिए सकारात्मक बात यह है कि देश की आबादी में एक दशक में होने वाली जनसंख्या वृद्धि धीमी रह गयी है. 1960, 1970 और 1980 के दशक में आबादी 24 फीसदी की वृद्धि से कम होकर 12 फीसदी के स्तर पर आ चुकी है. देश के दक्षिण और पश्चिम में स्थित राज्यों की उर्वरता दर पहले से ही प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है. भारत का जीवन स्तर दक्षिण पूर्वी एशिया और लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्सों या चीन जैसा होने में कम से कम 20 साल का समय लगेगा.

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नीतीश को खुली छूट या नाकाम करने की तैयारी!

अदिति फडणीस बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखती हैं कि दो दलों के बीच राजनीतिक मोलभाव एक दुर्लभ कला है. आपको रणनीतिक जीत-हार का समायोजन करना होता है. इसमें प्रोटोकॉल और पदानुक्रम का बहुत ध्यान रखना पड़ता है. शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी का गठबंधन कृषि कानूनों की वजह से टूट गया. डिशा में बीजेपी और बीजेडी के बीच पेचीदा संतुलन रहा है. गुलाम नबी आजाद की आत्मकथा बताती है कि कांग्रेस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के रूप में दो सत्ता केंद्र बन चुके हैं. इस वजह से ही हेमंत बिस्वा शर्मा कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गये. इसी तरह केरल में दिग्विजय सिंह सरकार बनाने के लिए जरूरी निर्दलीय विधायकों का समर्थन जुटाने से चूक गए. उनसे पहले ही दूसरे दल बाजी मार ले गये.

आदिति लिखती हैं कि कर्नाटक में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार को खुश रखने के चक्कर में 15 से 20 सीटों पर गलत उम्मीदवार चुन लिया गया है. वहीं, बीजेपी में बीएल संतोष और बीएस येदियुरप्पा की महत्वाकांक्षाएं इस कदर टकरायी हैं कि नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ रहा है. 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर नीतीश कुमार परीक्षा के दौर से गुजर रहे हैं. कांग्रेस ने नीतीश कुमार को प्रयास करने देने का निर्णय लिया है. इसे इस रूप में भी लिया जा रहा है कि कहीं कांग्रेस नीतीश कुमार को ही नाकाम करने की तैयारी तो नहीं कर रहे है? नीतीश सियासत के खेल में नये नहीं हैं. लेकिन, उनकी यह कोशिश भारत को कहां ले जाएगी इसका पता तो 2024 में ही चलेगा.

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कुर्बानी मांगता है विपक्षी एकता मंच

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक लेख में बीजेपी को हराने और सत्ता से उखाड़ फेंकने का फॉर्मूला दिया है. इसका नाम विपक्षी एकता मंच है जिसे अपोजिशन यूनिटी प्लेटफॉर्म यानी ओयूपी नाम दिया गया है. इसके तहत सभी पार्टियां राजी-खुशी इस नियम को मानें कि जिस राज्य में वह मुख्य पार्टी है वहां वह ज्यादातर सीटों पर चुनाव लड़ेगी. लेकिन साथ ही इस, बात का भी वह ध्यान रखेगी कि वह जीत की सबसे ज्यादा संभावना वाले उम्मीदवार को ही टिकट दे. भले ही वह किसी भी विपक्षी दल का ही क्यों ना हो. मतलब यह कि उसे कुर्बानी देने को तैयार रहना होगा.

चिदंबरम लिखते हैं कि बीजेपी 150 सीटें जीतने की स्थिति में है. विपक्षी दलों में अकेले कांग्रेस ही है जो 100 सीटें जीत सकती है. कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल के रूप में 209 सीटों पर बीजेपी के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करने की उम्मीद कर सकती है. एसपी, टीएमसी, जेडीयू, आरजेडी, डीएमके, वीआरएस और आप जैसी पार्टियां 225 सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर सकती हैं. तीन राज्य ऐसे हैं जहां दो या तीन पार्टियां बीजेपी को चुनौती देने की अगुआ कर सकती हैं. 7 राज्यों की 53 सीटें हैं जहां विजेता अंदरखाने बीजेपी की सहयोगी पार्टी हो. लेखक ने चार कॉलम बनाए हैं जिनमें एक कॉलम में उन राज्यों के नाम है जहां कांग्रेस आगे है, दूसरे कॉलम में अन्य विपक्षी दल हैं. बीजेपी समर्थक दलों के प्रभुत्व वाले प्रदेशों का भी एक कॉलम है. महाराष्ट्र, त्रिपुरा और जम्मू-कश्मीर को ऐसी श्रेणी में रखा गया है जहां यह तय कर पाना मुश्किल है कि कौन दल अग्रणी है.

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