यूपी में पढ़ना है तो गुरु गोरखनाथ के बारे भी रटना होगा. उत्तर प्रदेश में क्लास छठी से आठवीं तक के पाठ्यक्रम में भारी बदलाव कर दिया गया है. अब महान व्यक्तित्वों में नाथ संप्रदाय की स्थापना करने वाले गोरखनाथ को भी शामिल किया गया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसी संप्रदाय की पीठ के महंत भी हैं.
सरकारी इमारतों को भगवा रंगने के बाद अब पाठ्यक्रम की बारी है. इस साल से नैतिक शिक्षा और महापुरुषों की नई किताबों में कई ऐसे लोगों को शामिल किया गया है जिनका रिश्ता गोरखनाथ पीठ से रहा है.
जरा देखिए उत्तर प्रदेश स्कूल बोर्ड की क्लास 6,7 और 8 के सिलेबस में किए गए इन बड़े बदलावों को जो विवाद बढ़ाने का रेडीमेड न्यौता हैं.
कोर्स में शामिल नए महापुरुष
- नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक बाबा गोरखनाथ और बाबा गंभीरनाथ
- आरएसएस विचारक और जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय
- स्वतंत्रता सेनानी बंधु सिंह
- रानी अवंती बाई
- 12वीं सदी के दो योद्धा भाई आल्हा-ऊदल
बाबा गोरखनाथ और बाबा गंभीरनाथ
दोनों नाथ संप्रदाय से जुड़े रहे हैं. बाबा गोरखनाथ के गुरू मच्छेंद्रनाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की और बाबा गोरखनाथ के वक्त उसका दायरा काफी बढ़ा. जीवनी के मुताबिक बाबा गोरखनाथ ने शुरुआती दिनों में नेपाल में अपना डेरा जमाया और गोरखा शहर पर उनका नाम पड़ा.
स्कूल किताब में बताया गया है कि बाबा गोरखनाथ ने सांप्रदायिक मान्यताओं को खारिज किया. उन्होंने जगत में मानव सहित सभी जीवों, वनस्पतियों आदि से प्रेम और मैत्री का भाव धारण करने का उपदेश दिया है. इस पाठ के मुताबिक बाबा गोरखनाथ ने अपने विचारों और आदर्शों को लोगों तक पहुंचाने के लिए चालीस ग्रंथों की रचना की.
बच्चों को प्रभावित करने का विरोध
धर्म से जुड़ी शख्सियतों को स्कूल के कोर्स में शामिल किए जाने का विरोध शुरू हो गया है. शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों का भी मानना है स्कूली शिक्षा में राजनीतिक विचारधारा नहीं ठूंसना चाहिए. लखनऊ के विद्यांत कॉलेज के प्रोफेसर मनीष हिंदवी के मुताबिक ये फैसला अपरिपक्वता का उदाहरण है.
लोगों के विचारों को अपने रंग में रंगने का काम हो रहा है. सारी पार्टियां इसकी दोषी हैं. मायावती ने बसों अपने रंग में रंगवाया. पार्टी का नारा तक बसों पर लिखवा दिया गया. अखिलेश यादव ने भी वही किया. साइकिल ट्रैक, पार्क हर जगह पार्टी के रंग में रंग दिया. लेकिन ये सरकार तो बाकियों से भी दो कदम आगे निकल गई है. अब बच्चों को अपनी विचारधारा में रंगने का काम चल रहा है.
इमारतों और गाड़ियों पर भगवा रंग
उत्तर प्रदेश में प्रतीकों की राजनीति लंबे समय से हो रही है. मायावती मुख्यमंत्री थीं तो उन्होंने कई जिलों के नाम दलित महापुरुषों के नाम पर कर दिए.
उनके बाद जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने लखनऊ में साइकिल ट्रैक बनवा दिया और हर जगह साइकिल की तस्वीर चिपका दी.
अब बीजेपी की बारी है. चुनाव जीतने के बाद योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनाया गया तभी तय हो गया कि संघ लंबी योजना पर काम कर रहा है. अब उस योजना का असर दिखने लगा है. उत्तर प्रदेश में हर तरफ अब भगवा रंग नजर आ रहा है. सचिवालय से लेकर कई सरकारी इमारतों को भगवा रंग में रंग दिया गया है. बहुत से पुलिस थानों पर भी यह रंग नजर आता है. सरकारी बसों और नगर निगम की कूड़ा उठाने वाली गाड़ियों पर भी भगवा रंग चढ़ा दिया गया है.
अब मामला बेजान इमारतों और वाहनों से नई पीढ़ी के विचारों के रंग बदलने पर आ गया है. लेकिन खतरा यही है कि कहीं बच्चों का कोर्स राजनीतिक विचार थोपने का अखाड़ा ना बन जाए.
सत्ता बदलने पर कोर्स बदलेंगे तो हर पांच साल में बच्चों का पाठ्यक्रम भी बदलने का सिलसिला शुरू हो सकता है.
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