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जब हमारे अयूब ने उनके अयूब को दी थी मात

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झुंझुनू,(राजस्थान), 15 सितंबर (आईएएनएस)| वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध को दोनों सेनाओं के टैंकों की लड़ाइयों के लिए भी याद किया जाता है। उस समय पाकिस्तान को अपने पैटन टैंकों पर बहुत घमंड था जो उसे अमेरिका से मिले थे। उनके लिए पाकिस्तानी जनरल कहा करते थे कि इन टैंकों का मुकाबला कोई नहीं कर सकता, ये तो अजेय हैं।

उस युद्ध में भारतीय सेना के रिसालदार अयूब खान ने पाकिस्तान के इन्हीं चार पैटन टैंकों को ध्वस्त कर उनका घमंड तोड़ दिया था। इस कारनामे के बाद वे अखबारों के माध्यम से देश में 'इंडियन अयूब' के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

इस नाम के प्रसिद्ध होने की एक दिलचस्प वजह और थी। उस समय पाकिस्तानी के राष्ट्रपति व सेनाध्यक्ष का नाम भी जनरल अयूब खान था, जिसके नेतृत्व में युद्ध लड़ा गया था। इसलिए अखबारों में बहुत लिखा गया कि पाकिस्तानी अयूब खान के मुबाकले भारत के पास भी एक अयूब खान है जो पाकिस्तान के पैटन टैंकों को मिट्टी में मिला सकता है।

पाकिस्तानी फौज का नाकों चने चबा देने पर कैप्टन अयूब खान की बहादुरी के चर्चे पाकिस्तान में भी होते थे। पाकिस्तान की फौज अपने जनरल अयूब के नेतृत्व पर नाज करती थी। तब भारतीय फौज कहा करती थी कि पाकिस्तानी जनरल को युद्ध में घुटने टिकवा देने के लिए हमारे इंडियन अयूब ही काफी हैं। इससे पूर्व कैप्टन अयूब खान 1962 के युद्ध में भी भाग ले चुके थे।

भारत-पाक युद्ध में 9 सितंबर, 1965 को अयूब खान ने सुचेतगढ़ क्षेत्र में पाकिस्तानी टैंकों से टकराते हुए अपने टैंक को दुश्मन के कई टैंकों के बीच ले गए और ताबड़तोड़ तरीके से खिलौने की तरह पाकिस्तान के चार टैंकों को अपने निशाने से तोड़ा, तो पाकिस्तानी फौज में भगदड़ मच गई और उनके हौसले पस्त हो गए। युद्ध के दौरान कैप्टन अयूब खान द्वारा कब्जाए गए पाकिस्तानी टैंकों में से एक पैटन टैंक भी भारतीय अयूब अपने साथ लाए थे, जिसे जम्मू में रखा गया था।

उत्तर पंजाब का असल वह सरहदी इलाका है, जो पाकिस्तानी पैटन टैंकों की कब्रगाह बना। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यहीं सबसे भीषण मुठभेड़ हुई। यहीं से जनरल हरबक्श सिंह ने पाकिस्तानी सीमा में घुसने का प्लान बनाया था। इसके लिए सबसे पहले पाकिस्तानी सीमा में पड़नेवाली इच्चोगिल नहर को तहस नहस किया जाना था।

खबर थी कि लाहौर के पास वाले शहर कसूर और खेमकरन सेक्टर से होकर ही पाकिस्तान के पैटन टैंक भी हिंदुस्तान में घुसेंगे। यह वही कसूर शहर है, जिसके बारे में कहते हैं कि उसे राम के बेटे कुश ने बसाया था। यहीं मशहूर गायिका नूरजहां पैदा हुई थीं।

भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान के पैटन टैंक तोड़नेवाले रिसालदार मोहम्मद अयूब खान को युद्ध में बहादुरी दिखाने के लिए भारत सरकार द्वारा 14 नवंबर 1965 को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्ण ने वीरचक्र से सम्मानित किया था।

उस समारोह में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था, हम पाकिस्तान के जनरल अयूब खान से तो नहीं मिले लेकिन हमें अपने रिसालदार अयूब खान पर गर्व है।

कैप्टन अयूब खान की बहादुरी को रेलवे ने भी सम्मान देते हुए उनके पैतृक गांव नूआं के रेलवे स्टेशन पर 'वार मेमोरियल स्टोन' स्थापित किया। यह शिलालेख आज भी रेलवे स्टेशन के मुख्य भवन में है और कैप्टन अयूब खान की बहादुरी की याद दिला रहा है।

कैप्टन अयूब खान का जन्म सन् 1932 में राजस्थान के झुंझुनू जिले के नूआं गांव में हुआ था। उनके पिता इमाम अली खान किसान थे। माता का नाम मिमन था। वे चार भाइयों में सबसे बड़े थे। कैप्टन अयूब खान के परिवार में उनकी पत्नी ताज बानो, बेटी नसीम बानो, नसरीन बानो, पुत्रवधू शबनम खान, पोता आदिल खान हैं। उनके दत्तक पुत्र सलाउद्दीन का कुछ समय पहले इंतकाल हो चुका है।

जून, 1950 में अयूब खान 18 कैवेलरी में भर्ती हुए थे। अयूब खान 1982 में सेना की 86 आमर्ड से ओनरेरी कैप्टन पद से रिटायर हुए थे। अयूब खान के दादाजी, पिताजी भी भारतीय सेना में काम कर चुके हैं। अब उनके परिवार के चचेरे भाइयों व उनके बच्चे सेना में काम कर रहे हैं।

कैप्टन अयूब खान के परिवार की पांचवीं पीढ़ी अभी सेना में कार्यरत है। नूआं गांव देश का एकमात्र ऐसा गांव है, जिसके हर घर का एक-दो सदस्य सेना में जरूर कार्यरत मिलेगा। कैप्टन अयूब खान राजस्थान से एकमात्र मुस्लिम नेता थे, जिन्होंने दो बार लोकसभा सदस्य का चुनाव जीता।

सन् 1984 में कैप्टन अयूब खान कांग्रेस टिकट पर झुंझुनू से लाकसभा चुनाव लड़ा व विजयी हुए। 1991 में वे दूसरी बार लोकसभा चुनाव में विजयी हुए थे। कैप्टन अयूब खान वर्ष 1995 में नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री बनाए गए। उन्होंने कांग्रेस पार्टी में प्रदेश स्तर पर कई वरिष्ठ पदों पर काम किया। 15 सितंबर, 2016 को कैप्टन अयूब खान का 84 वर्ष की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया। लोगों ने नम आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दी।

साधारण परिवार में जन्मे अयूब खान में देशभक्ति का जज्बा कूट-कूटकर भरा हुआ था। सेना से संसद तक पहुंचे कैप्टन अयूब खान अपने गांव में ही रहते थे। वे गांव के छोटे बच्चें को बुलाकर उसको देश सेवा का पाठ पढ़ाया करते थे। वे रोजाना खेतों में जाते थे। निधन से एक घंटे पूर्व भी वे खेत से लौटे थे।

कैप्टन अयूब खान उस कायमखानी कौम से तालुक्क रखते हैं, जिसकी देशभक्ति की मिसाल पूरे देश में दी जाती है। कायमखानियों द्वारा देश सेवा में दिए गए योगदान को देखें तो देश को मुसलमानों पर गर्व महसूस होता है। सेना में भर्ती होना तो मानो कायमखानियों का शगल है। इसीलिए भारतीय सेना की ग्रिनेडियर में 13 फीसदी व कैवेलेरी में 4 फीसदी स्थान कायमखानियों के लिए आरक्षित हैं।

झुंझुनू जिले में कायमखानी समाज में आज ऐसे अनेक परिवार मिल जाएंगें, जिनकी लगातार पांच पीढ़ियां सेना में कार्यरत हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध से लेकर अब तक कई कायमखानी वीरों ने सेना में रहकर जंग लड़ते हुए शहादत देकर देश का नाम रोशन किया है। देश की आजादी के बाद भी सेना में रहकर देश की रक्षा करते हुए 13 कायमखानी जवानों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया। उनमें से सात जवान तो अकेले झुंझुनू जिले के धनूरी गांव के ही थे।

(लेखक रमेश सर्राफ धमोरा स्वतंत्र पत्रकार हैं)

(ये खबर सिंडिकेट फीड से ऑटो-पब्लिश की गई है. हेडलाइन को छोड़कर क्विंट हिंदी ने इस खबर में कोई बदलाव नहीं किया है.)

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