कभी देश के टाइमकीपर के रूप में प्रसिद्ध रही घड़ी निर्माता कंपनी हिंदुस्तान मशीन टूल्स (HMT) के लिए वर्तमान समय भले ही अच्छा नहीं कहा जा सकता, पर जब कश्मीर घाटी में उग्रवाद अपने चरम पर था, सार्वजनिक क्षेत्र की इस घड़ी निर्माता कंपनी ने लगभग 500 कश्मीरी पंडित कर्मचारियों और उनके परिवारों को मौत के चंंगुल से बचाया था.
सन् 1972 में किसी समय, बेंगलुरु मुख्यालय वाले एचएमटी ने कश्मीर घाटी में एक घड़ी बनाने वाली इकाई की स्थापना की. मूल रूप से श्रीनगर में स्थापित इस इकाई को बाद में बाहरी इलाके जैनाकोट ले जाया गया था, जिसमें लगभग 1,540 स्थानीय लोग कार्यरत थे. इनमें से 540 कर्मचारी गैर-मुस्लिम थे, ज्यादातर कश्मीरी पंडित और कुछ सिख शामिल थे.
मनमोहन कौल (76) एचएमटी की कश्मीर यात्रा की शुरुआत से लेकर 2001 में बेंगलुरु में एजीएम-फाइनेंस के रूप में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक का हिस्सा थे. लंबे समय से चले आ रहे वे बुरे दिन उनकी स्मृति में आज तक अंकित हैं.
कश्मीर में पहली औद्योगिक संस्कृति एचएमटी, श्रीनगर द्वारा लाई गई थी. 1989 तक चीजें सुचारु रूप से चल रही थीं. शुरुआत में चीजें बहुत अच्छी तरह से चल रही थीं. यहां बेंगलोर से विशेषज्ञ और इंजीनियर लाए गए थे और सब बहुत अच्छी तरह से चल रहा था. उसके बाद चीजें बदलनी शुरू हुईं.
सन् 1980 के दशक के उत्तरार्ध में उग्रवाद में भारी उछाल और निशाना बनाकर कश्मीरी पंडितों की हत्याओं के कारण 90 के दशक की शुरुआत में समुदाय का सबसे बड़ा पलायन हुआ. कुछ ही महीनों में कश्मीर घाटी अपने मूल हिंदू निवासियों से सचमुच खाली हो गई थी. कश्मीर के एचएमटी यूनिट में तत्कालीन 34 वर्षीय कौल अंत तक आशावादी बने रहे.
चुपचाप, वे अपना काम कर रहे थे. शायद वे 1990 की तैयारी कर रहे थे, क्योंकि लोग जानते थे. उन्हें पता था कि कुछ बड़ा होने वाला है. लेकिन हम निर्दोष थे, हमने कभी नहीं सोचा था कि यह इस हद तक होगा. हालांकि पहले भी ऐसा हो चुका है, कई बार. लेकिन हम सोचते थे कि यह समय के साथ सही हो जाएगा. हम उस प्रभाव में बने रहे, लेकिन यह सब कुछ तो विनाशकारी निकला.
लगभग रातोंरात, बड़े पैमाने पर शिक्षित और संपन्न पंडित समुदाय के सदस्यों ने खुद को जम्मू और अन्य उत्तर भारतीय शहरों में शरणार्थी शिविरों में रहने की कोशिश कर रहे शरणार्थियों के रूप में पाया. हालांकि, एचएमटी के लिए धन्यवाद, लगभग 530 कश्मीरी पंडित परिवारों को बड़े पैमाने पर परेशानियों से बचाया गया और वे सब इस मदद से अपने जीवन का पुनर्निर्माण करने में कामयाब रहे.
कौल बताते हैं, सौभाग्य से, एचएमटी प्रबंधन ने मुझे बेंगलोर स्थानांतरित कर दिया. 540 कर्मचारियों में से लगभग 200 को बेंगलोर शहर में ही समायोजित किया गया था. कुछ अन्य कोलकाता, हैदराबाद जैसे अन्य स्थानों पर बिखरे हुए थे और इसी तरह धीरे-धीरे, वर्षो में, अधिकांश लोगों को बेंगलुरु में बसाया गया था.
एचएमटी प्रबंधन सभी विस्थापित कश्मीरी पंडित कर्मचारियों तक पहुंच गया था. आंतरिक रूप से विस्थापित समुदाय के लिए यह आसान नहीं था. उन्हें रास्ते में कुछ कठिन कदम उठाने पड़े, जैसे गैर-पर्यवेक्षी ग्रेड के कर्मचारियों को ग्रेड से कम की स्थिति के लिए समझौता करना पड़ा.
कौल ने अपने भाग्य को धन्यवाद दिया, जब बेंगलुरु में उतरने के एक महीने बाद उनके भाइयों ने उन्हें बताया कि अगर वह कश्मीर में अधिक समय तक रुके रहते तो निश्चित मृत्यु का निवाला बन जाते.
वहां के आतंकी योजना बना रहे थे कि किसे रखा जाए और किसे मारा जाए. मेरा नाम भी सूची में था, लेकिन मुझे यह नहीं पता था. जब मेरे पिता की मृत्यु हो गई और हम कर्फ्यू के कारण घर पर दसवां दिन बिता रहे थे, मेरे एक जूनियर में से एक साथी ने मेरे भाइयों को सलाह दी कि हमें चले जाना चाहिए. मेरे भाइयों ने जोर देकर कहा कि हम चले जाएं.
आज, जैसा कि एचएमटी अनिश्चित भविष्य की ओर देख रहा है, 530 कश्मीरी पंडित परिवार अपनी जरूरत की घड़ी में जीवनरेखा होने के लिए टाइमकीपर टू द नेशन का आभार व्यक्त करते हैं.
--आईएएनएस
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