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सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान जरूरी नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने बदला फैसला

सिनेमा हॉल में अब राष्ट्रगान की अनिवार्यता खत्म

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अब सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजाना जरूरी नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2016 के अपने आदेश में बदलाव कर दिया है. अब फिल्म शुरू होने से पहले सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं होगा. कोर्ट ने कहा कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने संबंधी अंतिम फैसला केंद्र की तरफ से बनाई गई मंत्रियों की कमेटी फैसला लेगी

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केंद्र के हलफनामे को मंजूर किया

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के उस हलफनामे को स्वीकार किया, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय सम्मान के प्रतीकों के अपमान की रोकथाम अधिनियम में बदलाव का सुझाव देने के लिए 12 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है. कोर्ट ने कहा कि समिति को सभी आयामों पर व्यापक रूप से विचार करना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान के दौरान खड़े होने से दिव्यांगों को छूट मिलती रहेगी.

सरकार ने दायर किया था हलफनामा

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा था कि विभिन्न मंत्रालयों को मिलाकर पिछले साल 5 दिसंबर को एक कमिटी का गठन किया गया है, ताकि इस बारे में वह नई गाइडलाइंस तैयार कर सके.

यह कमेटी अगले 6 महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. केंद्र के हलफनामे में कहा गया है कि इसमें सूचना और प्रसारण, रक्षा, विदेश, संस्कृति, महिला और बाल विकास, अल्पसंख्यक कार्य, कानूनी मामलों के विभाग और संसदीय कार्य मंत्रालय समेत विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधि होंगे.

सरकार ने कहा कि कमेटी को राष्ट्रगान से जुड़े अनेक विषयों पर व्यापक विचार-विमर्श करना होगा और कई मंत्रालयों के साथ गहन मंथन करना होगा. कमेटी के सुझाव के बाद ही यह तय किया जा सकेगा कि सरकार की ओर से इस संबंध में कोई नोटिफकेशन या सर्कुलर जारी किया जाए या नहीं.

कोर्ट ने दिया था सुझाव

23 अक्टूबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि सिनेमाहॉल और दूसरी जगहों पर राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य हो या नहीं, इसे वह (सरकार) तय करे. इस संबंध में जारी कोई भी सर्कुलर कोर्ट के अंतरिम आदेश से प्रभावित न हो.

साथ ही इस मामले में कोर्ट ने यह भी कहा था कि यह भी देखना चाहिए कि सिनेमाहॉल में लोग मनोरंजन के लिए जाते हैं, ऐसे में देशभक्ति का क्या पैमाना हो, इसके लिए कोई कानून तय होनी चाहिए या नहीं? इस तरह के नोटिफिकेशन या नियम का मामला संसद का है, लिहाजा यह काम कोर्ट पर क्यों थोपा जाए?

बता दें कि नवंबर 2016 के इस फैसले के समर्थन में आने के केंद्र के रुख का कई कार्यकर्ताओं ने विरोध किया था. फैसले के करीब एक साल बाद आदेश को लागू किया गया था.

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