कर्नाटक में टीपू सुल्तान की जयंती मनाए जाने पर हो रहे विरोध प्रदर्शनों में एक वीएचपी नेता की मौत होने के साथ ही कई पुलिसकर्मी घायल हो गए हैं.
कर्नाटक सरकार इस साल पूरे प्रदेश में टीपू सुल्तान जयंती मना रही है लेकिन मुख्य विपक्षी दल बीजेपी ने इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन छेड़ रखा है.
टीपू सुल्तान जयंती का विरोध
कर्नाटक में टीपू सुल्तान की जयंती के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन में अचानक हुए पथराव में राज्य सरकार के एक पूर्व कर्मचारी एवं वीएचपी नेता कुटप्पा के सिर में चोट लगी जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई.
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रह्लाद जोशी ने टीपू सुल्तान को उन्मादी और कन्नड़ विरोधी शासक करार दिया है. भाजपा ने ऐसे समारोहों का पूर्ण बहिष्कार करते हुए कहा है कि उनकी पार्टी से किसी स्तर पर कोई अधिकारी सरकारी समारोह में भाग नहीं लेगा.
बीजेपी के साथ ही कई संगठनों और लोगों ने भी दस नवंबर को टीपू सुल्तान जयंती मनाने के सरकार के कदम का विरोध किया है. मंगलुरु यूनाइटेड क्रिश्चियन ऐसोसिएशन ने टीपू सुल्तान को ईसाई विरोधी करार दिया.
वही, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने टीपू की जयंती मनाने के सरकार के फैसले को सही ठहराया है. उन्होंने कहा कि इस बारे में पहले से सूचना दी जा चुकी थी. ये विरोध वोटबैंक पॉलिटिक्स से प्रेरित है. उन्होंने इसके विरोध के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अन्य सांप्रदायिक ताकतों की आलोचना भी की है.
आखिर क्यों हो रहा है विरोध
टीपू सुल्तान अठारहवीं शताब्दी में मैसूर का शासक था. कई संगठन टीपू को धार्मिक रुप से कट्टर शासक मानते हैं.
टीपू सुल्तान को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का घोर शत्रु माना जाता था.
वो मई 1799 में ब्रिटिश फौज के हमले से अपने श्रीरंगपटना किले की रक्षा करते हुए मारे गए थे. मंगलुरु यूनाइटेड क्रिश्चियन ऐसोसिएशन ने भी इन आयोजनों के विरोध में उतरते हुए टीपू सुल्तान को तटीय इलाकों में कई गिरिजाघरों को नष्ट करने के लिए जिम्मेदार ठहराया.
इसके साथ ही ईसाइयों की प्रताड़ना का आरोप लगाया.
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