पड़ोसी देश पाकिस्तान में बुधवार को नेशनल असेंबली की 272 सीटों के लिए चुनाव होने जा रहा है, जिसमें 171 महिलाएं किस्मत आजमा रही हैं. यह पहला मौका है, जब इस देश में इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं चुनाव लड़ रही हैं. इन 171 महिलाओं में 70 निर्दलीय उम्मीदवार हैं, जो किसी पार्टी का टिकट न मिलने के बावजूद अपने दम पर चुनावी मैदान में उतरी हैं.
बड़ी तादाद में महिलाओं का चुनाव लड़ना यह संकेत देता है कि आधी आबादी अब चुप रहकर सबकुछ सहते रहना नहीं चाहतीं. वो घर ही देहरी लांघकर सत्ता के गलियारों तक पहुंचना चाहती हैं, ताकि उनके हालात बदलें. ये राह आसान नहीं है, यही वजह है कि पाकिस्तान की राजनीति में बेनजीर भुट्टो के बाद अब तक कोई महिला नेता अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाई है.
पाक में महिलाओं की दुर्दशा छिपी नहीं
पाकिस्तान में महिलाओं की दुर्दशा दुनिया से छिपी नहीं है, यहां तक कि राजनीतिक दलों में भी महिलाओं का शोषण रहा है. आजकल पाकिस्तानी नेता इमरान खान की पत्नी रेहम खान की एक किताब खासा चर्चा में है, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के राजनीतिक दलों में महिलाओं की दुर्दशा भी बयां की है.
पाकिस्तान की राजनीति कभी भी महिलाओं के लिए माकूल नहीं रही है. इस पर रोशनी डालते हुए अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार पुष्पेश पंत कहते हैं, पाकिस्तान की राजनीति अलग तरह की रही है. यहां की महिला नेताओं की संख्या को आप उंगलियों पर गिन सकते हैं. जिस मुल्क में महिलाओं को शुरू से ही दबाकर रखा गया हो, वहां राजनीति में उनके लिए कितने कांटे होंगे, इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं. देश में दो साल पहले हुए निकाय चुनाव में भी बड़ी संख्या में महिलाएं चुनाव लड़ी थीं.
इसका दूसरा पहलू भी है. अभी कहीं पढ़ा कि किसी निर्वाचन क्षेत्र में एक महिला उम्मीदवार के चुनावी पोस्टर से उसका चेहरा नदारद है. उसकी जगह पोस्टर में पति की तस्वीर छपी है. चुनाव पत्नी लड़ रही है, लेकिन तस्वीर पति की है. साफ है कि चुनाव जीतने के बाद कुर्सी पर तो पति ही बैठेगा. ऐसा हमारे यहां पंचायत चुनावों में दखने को मिलता है.पुष्पेश पंत, अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार
वेबसाइट 'गल्फ न्यूज' के मुताबिक, इस चुनाव में 18 साल से अधिक उम्र की लगभग एक करोड़ महिलाएं इस बार वोट नहीं दे पाएंगी. क्यों? इसका जवाब खोजने पर भी नहीं मिला. अब आप हिसाब लगाएं कि पाकिस्तान में 9.7 करोड़ से ज्यादा मतदाता रजिस्टर्ड हैं, जिसमें से सिर्फ 4.3 करोड़ महिला मतदाता हैं, जबकि पुरुष मतदाताओं की संख्या 5.5 करोड़ से अधिक है. अब यदि इन 4.3 करोड़ महिला मतदाताओं में से एक करोड़ महिलाएं वोट ही नहीं दे पाएंगी तो संख्या हुई 3.3 करोड़. क्या गारंटी है कि बाकी की सभी महिलाएं वोट देंगी?
‘राजनीतिक दलों में ही महिलाओं का शोषण’
जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में राजनीतिक विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर फराह नाज कहती हैं, पाकिस्तान के राजनीतिक दलों में ही महिलाओं का शोषण होता है, बाकी जगह तो भूल ही जाइए. जब तक इस मुल्क की महिलाएं बड़ी तादाद में चुनाव लड़कर सत्ता के गलियारों में नहीं बैठेंगी, इनके हालात भी नहीं बदलने वाले. एक बात और कि पाकिस्तान में स्वायत्त यौन शोषण निवारण आयोग बनाए जाने की सख्त जरूरत है.
नाज हालांकि कहती हैं, ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान में बदलाव नहीं आ रहा है. बदलाव धीरे-धीरे ही सही, हो रहा है.
देश की सभी राजनीतिक पार्टियों ने इस बार महिलाओं को टिकट दिए हैं. एक महिला उम्मीदवार तो ऐसी सीट से चुनाव लड़ रही हैं, जहां कभी महिलाओं को मतदान करने की इजाजत ही नहीं थी. सिंध सीट से तो हिंदू महिला उम्मीदवार दावेदारी पेश कर रही हैं. शाहरुख खान की चचेरी बहन नूरजहां भी चुनावी अखाड़े में हैं, यानी महिलाओं ने पाकिस्तान की राजनीति की तस्वीर बदलने की तैयारी कर ली है.
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