किसी राज्य में 22 साल से सत्ता से बाहर कोई राष्ट्रीय पार्टी जब नए चुनाव के लिए कमर कसती है तो उसके काडर में उत्साह जगाना किसी चुनौती से कम नहीं होता. इसीलिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने 25 सितंबर को जब अपने गुजरात दौरे की शुरुआत की तो दिल्ली से अहमदाबाद तक तमाम लोग उत्सुकता से उनकी ओर ताक रहे थे.
राहुल के प्रचार अभियान का नारा था- युवा रोजगार, खेड़ुत अधिकार यानी युवाओं को रोजगार, किसानों को अधिकार. लेकिन ये दौरा युवाओं और किसानों तक सीमित नहीं था. तीन दिन में राहुल ने मंदिरों के चक्कर काटे, नोटबंदी और जीएसटी से परेशान व्यापारियों से मिले, गांव-देहात की महिलाओं से बैठकें की. लोकल से लेकर नेशनल मुद्दों तक बीजेपी को कोसा.
द्वारका, जामनगर, मोरबी, सुरेंद्रनगर और राजकोट जैसे इलाकों में घूमते हुए हर दिन एक या दो बड़ी सभा के साथ, तीन दिन में करीब 20 कार्यक्रम हुए. इनमें कुछ तो बेहद छोटे थे. जैसे आखिरी दिन सुरेंद्रनगर के चोबारी गांव की करीब 200 महिलाओं से मुलाकात.
बिन मोदी सब सून?
इसी साल दिसंबर में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनावों में एक बात खास है. और वो यह है कि साल 2002 के बाद ऐसा पहली बार होगा जब भारतीय जनता पार्टी मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी के चेहरे के बिना मैदान में उतरेगी.
प्रधानमंत्री मोदी अब भी बीजेपी के प्रचार पोस्टरों का सबसे बड़ा चेहरा होंगे इसमें शक नहीं, लेकिन 2014 में उनके दिल्ली जाने के बाद पार्टी कई उतार-चढ़ाव देख चुकी है.
- हार्दिक पटेल की अगुवाई वाला पाटीदार आंदोलन
- जिला पंचायत चुनावों में बीजेपी की हार
- किसानों की नाराजगी और पिछड़ों का गुस्सा
- राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के अहमद पटेल की जीत
गुजरात कांग्रेस के एक नेता ने क्विंट को बताया कि
पिछले महीने बीजेपी की तमाम कोशिशों के बावजूद राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के अहमद पटेल की जीत ने कांग्रेस में जीत का आत्मविश्वास जगा दिया. उसी के बाद पार्टी ने नए सिरे से विधानसभा चुनावों की रणनीति पर काम करना शुरू किया.
हार्दिक पटेल के आरक्षण आंदोलन के दौरान बीजेपी से खासी नाराजगी दिखा चुके पाटीदारों के वोटर सेंटिमेंट को भुनाने की योजना के तहत पाटीदार आबादी वाले सौराष्ट्र इलाके को राहुल के सबसे पहले दौरे के लिए चुना गया.
‘विकास गांडो थ्यो छे’
दौरे के दूसरे दिन जामनगर से मोरबी के बीच एक नुक्कड़ सभा पर लोगों के बीच जब राहुल गांधी ने चिल्ला कर लोगों से पूछा- ‘गुजरात में विकास को क्या हो गया है’. तो दोगुने जोश के साथ भीड़ से आवाज आई- ‘गांडो थ्यो छै’. यानी ‘पागल हो गया है’.
दरअसल, ‘विकास गांडो थ्यो छे’, ये सोशल मीडिया पर छाया एक नारा है जिसने गुजरात बीजेपी की नाक में दम कर रखा है. राहुल गांधी ने भी गुजरात के विकास मॉडल पर तंज कसते हुए इस सोशल मीडिया कैंपेन का अपने भाषणों में खूब इस्तेमाल किया.
क्विंट की जानकारी के मुताबिक, ये कैंपैन भले ही पब्लिक से आया हो लेकिन अब कांग्रेस पार्टी की सोशल मीडिया टीम योजनाबद्ध तरीके से इसे बढ़ावा दे रही है.
बीजेपी खेमे में बेचैनी
बीजेपी के नेता सामने से भले ही कुछ कहें लेकिन राहुल के दौरे से पार्टी खेमे में बेचैनी है. शायद इसीलिए किसानों की नाराजगी कम करने के इरादे से राज्य सरकार ने राहुल के दौरे से ठीक पहले बीजेपी सरकार ने मूंगफली की खरीद कीमत 600 रुपये प्रटि क्विंटल से बढ़ाकर 900 रुपये करने की घोषणा कर दी. (हालांकि क्विंट से बातचीत में ज्यादातर किसानों ने इसे सरकारी लॉलीपॉप करार दिया.)
इसके अलावा मंगलवार को जब कांग्रेस उपाध्यक्ष पाटीदारों की बड़ी आबादी वाले मोरबी जिले में किसानों से मिल रहे थे उसी वक्त राज्य सरकार अहमदाबाद में हार्दिक पटेल की अगुवाई वाली पाटीदार आरक्षण आंदोलन समिति और सरदार पटेल ग्रुप के नुमाइंदों से बैठक कर रही थी. बैठक में पाटीदार आंदोलनकारियों के खिलाफ मुकदमें वापस लेने और सवर्ण आरक्षण आयोग के गठन जैसे अहम फैसले लिए गए.
हार्दिक पटेल फैक्टर
पाटीदारों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिलाने की मांग करने वाले आंदोलन के चेहरे हार्दिक पटेल ने पहले ही दिन राहुल गांधी के स्वागत का ट्वीट कर सियासी हलकों में हलचल पैदा कर दी. हार्दिक पटेल के साथ किसी गठबंधन फॉर्मूले के बारे में पूछने पर एक कांग्रेस नेता ने द क्विंट से कहा कि
हार्दिक किसी भी सूरत में बीजेपी का नुकसान कर रहे हैं जो कांग्रेस के फायदे में ही है. लेकिन आने वाले दिनों में कोई औपचारिक गठबंधन का फॉर्मूला भी निकल आए तो हैरानी नहीं होगी.
कांग्रेस को दिखानी होगी किलर इंस्टिंक्ट
इसमें कोई शक नहीं कि इससे पहले बीस सालों में कांग्रेस के लिए इतना बढ़िया माहौल नहीं बना. दिसंबर में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए चौका मारने का सबसे बढ़िया मौका हैं.
लेकिन इसके लिए राहुल गांधी के अलावा लोकल नेताओं और कार्यकर्ताओं को ‘करो या मरो’ की नीति पर काम करना होगा. उन्हें ये समझना होगा कि मुकाबला उस बीजेपी से है, जिसे आखिरी मौके पर अपने वोटर को घर से बूथ तक लाने में महारत हासिल है और जिसके पास नरेंद्र मोदी की शक्ल में हुकम का इक्का है. राहुल के मौजूदा दौरे के दौरान कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उस किलर इंस्टिंक्ट की कमी दिखी है.
राहुल के की-वर्ड्स
राहुल के पहले दौरे ने साफ कर दिया है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस का प्रचार किसान कर्ज, रोजगार, नोटबंदी, जीएसटी, विकास जैसे की-वर्ड्स के इर्दगिर्द ही घूमेगा.
हालांकि, जब उन्होंने अपने अभियान की शुरुआत द्वारकाधीश मंदिर में पूजा से की तो कई लोगों ने इसे कांग्रेस की नीति में बदलाव के तौर पर देखा. लेकिन मुझे निजी तौर पर इसमें कुछ अजीब नहीं लगा क्योंकि साल भर पहले भी उत्तर प्रदेश किसान यात्रा के दौरान राहुल ने रास्ते में पड़ने वाले हर मंदिर-मस्जिद में माथा टेका था और दुआ मांगी थी.
कांग्रेस के कैंपेन मैनेजरों ने राहुल के प्रचार के लिए गुजरात को चार हिस्सों में तक्सीम किया है. आने वाले दिनों में राहुल उत्तर, सेंट्रल और दक्षिण गुजरात के दौरे करेंगे.
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