आबकारी नीति से जुड़े कथित भ्रष्टाचार के मामले में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia Arrested) की गिरफ्तारी के बाद नौ विपक्षी नेताओं ने 5 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर "विपक्ष के सदस्यों के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों के घोर दुरुपयोग" पर चिंता व्यक्त की है. बता दें मनीष सिसोदिया को सीबीआई ने 26 फरवरी को दिल्ली आबकारी नीति में कथित अनियमितताओं के संबंध में आठ घंटे की पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया था.
सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद पत्र लिखने वाले 9 विपक्षी नेता कौन हैं?
पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में चार मुख्यमंत्री और चार पूर्व मुख्यमंत्री शामिल हैं. इनमें के चंद्रशेखर राव, ममता बनर्जी, भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल के साथ-साथ नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार, शिवसेना के उद्धव ठाकरे, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी शामिल हैं. खास बात है की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के पत्र पर हस्ताक्षर नहीं हैं.
पत्र में केंद्रीय एजेंसियों पर क्या आरोप लगाया गया है
पत्र में "केंद्रीय एजेंसियों के घोर दुरुपयोग" की निंदा की गई है और सवाल उठाया गया कि अडानी समूह की "वित्तीय अनियमितताओं" की जांच क्यों नहीं की गई.
पत्र में कहा गया है कि “मनीष सिसोदिया को दिल्ली की स्कूली शिक्षा को बदलने के लिए विश्व स्तर पर पहचाना जाता है. उनकी गिरफ्तारी को दुनिया भर में एक राजनीतिक विच-हंट के उदाहरण के तौर पर देखा जाएगा.
पत्र में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, पूर्व टीएमसी नेता शुभेंदु अधिकारी का उदाहरण देते हुए, विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं ने आरोप लगाया कि भाजपा में शामिल होने वालों के मामलों में "जांच एजेंसियां धीमी गति से चलती हैं".
आगे पत्र में कहा गया कि “यह स्पष्ट है कि इन एजेंसियों की प्राथमिकताएं गलत हैं. एक अंतरराष्ट्रीय फोरेंसिक वित्तीय शोध रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद, एसबीआई और एलआईसी ने कथित तौर पर एक निश्चित फर्म के संपर्क के कारण अपने शेयरों के बाजार पूंजीकरण में ₹ 78,000 करोड़ से अधिक का नुकसान उठाया है. जनता का पैसा दांव पर होने के बावजूद फर्म की वित्तीय अनियमितताओं की जांच के लिए केंद्रीय एजेंसियों को सेवा में क्यों नहीं लगाया गया?
पत्र में यह भी आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकारों को कमजोर किया जा रहा है और राज्यपाल संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर रहे हैं. साथ ही केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा "2014 के बाद से" ज्यादातर विपक्षी नेताओं और भाजपा में शामिल होने वाले कथित नेताओं के खिलाफ की गई कार्रवाई को भी इंगित किया गया है. बता दें 2014 वो साल है जब बीजेपी सत्ता में आई थी.
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