2017 यूपी विधानसभा चुनावों से ठीक पहले लखनऊ के ताज होटल में अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गठबंधन का ऐलान किया था. उस दिनों बीजेपी के खिलाफ 'यूपी के लड़के' नारों में खूब चले थे. 12 जनवरी में फिर इसी ताज होटल में 2019 आम चुनाव के लिए एसपी-बीएसपी सयुंक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रही हैं.
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के मायने पहली वाली के मुकाबले कहीं ज्यादा हैं, क्योंकि एसपी और बीएसपी एक-दूसरे की कितनी बड़ी विरोधी रही हैं, ये जगजाहिर है. चूंकि अब राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखने का संकट है, लिहाजा ये चमत्कारी गठबंधन सामने आ रहा है.
इस गठबंधन को एक बड़े राजनीतिक घटनाक्रम को तौर पर देखा जा रहा है. ऐसे सबकी निगाहें इस पर लगी है और कई ऐसे सवाल उठ रहे हैं, जिनके जवाब हर कोई जानना चाहेगा.
1. गठबंधन की स्थिति में कितनी सीटों का होगा बंटवारा?
पिछले दिनों दिल्ली में मायावती के आवास पर अखिलेश से हुई मुलाकात के बाद से ही ये चर्चा होने लगी है कि दोनों दल बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. अगर आंकड़ों की बात करें, तो 37-37 सीटों पर दोनों दल अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं. हालांकि ये नंबर सिर्फ कयास हैं. सीटों के नंबर में अभी उतार-चढ़ाव हो सकते हैं. दोनों से बची सीटों को गठबंधन के दूसरे दलों, यानी आरएलडी, निषाद पार्टी सहित अन्य के लिए छोड़ा जाएगा.
2. क्या गठबंधन ने मान लिया है कि यूपी में कांग्रेस की जमीन खत्म हो गई है?
महागठबंधन की बात शुरू हुई, तब इस गठबंधन के केंद्र में कांग्रेस थी और वही गैर-बीजेपी दलों को साथ लाने की कवायद कर रही थी. लेकिन सीटों के बंटवारे में कांग्रेस को अहमियत नहीं दी गई. जितनी सीटें कांग्रेस के लिए एसपी-बीएसपी ने छोड़ने का संकेत दिया था, वो कांग्रेस को गंवारा नहीं था. दोनों दलों ने कांग्रेस को उसके पिछले चुनावों में मिले वोट के मुताबिक उसकी हैसियत तय किया है.
यूपी में कांग्रेस को 2012 में 11.65 %, 2014 में 7.53% और 2014 में 6% वोट मिले थे, जबकि एसपी-बीएसपी पिछले तीन चुनाव में 20% के आसपास बने रहे.
कांग्रेस गठबंधन को जरूरत पड़ने पर एसपी-बीएसपी समर्थन देगी या नहीं?
यूपीए-1 और यूपीए-2 में एसपी-बीएसपी ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया था. मुलायम सिंह सरकार में शामिल नहीं हुए थे, लेकिन थर्ड फ्रंट के तौर पर समर्थन जारी रखा था. ऐसे हालात बनते हैं, तो एसपी-बीएसपी गठबंधन का क्या रुख होगा.
3. छोटे दल क्या इतनी कम सीटों पर साथ आने को तैयार होंगे?
74 सीटों को एसपी और बीएसपी ने अपने लिए रिजर्व कर लिया है. ऐसे में 6 सीटें बचती हैं, जो छोटे दल यानी रालोद, निषाद पार्टी और अन्य के लिए छोड़ा गया है. उम्मीद की जा रही है कि दो सीटें अमेठी और रायबरेली को भी नहीं छुएंगे. ऐसे में दूसरे दलों से सहमति कैसे बन पाएगी, ये भी अभी सवाल है. हालांकि चौधरी अजित सिंह ने गठबंधन के लिए 'हां' कह दिया है.
4. ये गठबंधन सिर्फ लोकसभा के लिए है या फिर 2022 तक चलाया जाएगा?
ये गठबंधन सिर्फ 2019 लोकसभा चुनाव के लिए होगा या फिर इसी तर्ज पर 2022 में भी विधानसभा चुनाव लड़े जाएंगे, क्योंकि तब इस गठबंधन की क्या स्थिति होगी, ये देखना दिलचस्प होगा. तब बात यूपी का नेता चुनने की होगी, यानी मुख्यमंत्री चुनने की, जिस पर बड़े-बड़े की नियत गड़बड़ा जाती है.
5. आखिर कितने दिनों तक टिकेगा ये गठबंधन?
अखिलेश और मायावती का ये गठबंधन बेशक ऐतिहासिक है, लेकिन इससे पहले भी एक बार एसपी और बीएसपी के बीच गठबंधन हो चुका है. वो दौर था 'मंडल' और 'कमंडल' का, जब भारतीय जनता पार्टी को यूपी में हराने के लिए कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया था. पर वो साथ कुछ ही समय में टूट गया.
बीएसपी ने मौका मिलते ही एसपी का साथ छोड़ा, बीजेपी के साथ गठबंधन किया और मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनीं.
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