ADVERTISEMENTREMOVE AD

केजरीवाल-मान के लिए पंजाब में विकास का दिल्ली मॉडल लागू करना बहुत मुश्किल है

Punjab में आम आदमी पार्टी कैसे करेगी पैसों का जुगाड़, फ्री-सुविधाओं की बौछार, शिक्षा में सुधार, नशे पर वार

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

क्लासरूम के एक कोने में जुगनू और उसका दोस्त अपने टीचर की क्रूरता के बारे में बात कर रहे थे. तभी टीचर ने उन्हें बीच में टाेका और छड़ी लहराते हुए पूछा 'जुगनू एक बात बताओ, तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो. (“जुगनू, एह दास वड्डा हो के बनने?)'

जुगनू से बड़ी ही फुर्ती से कहा मास्टर जी 'पुलिस अफसर'.

टीचर ने पूछा 'क्यों?'

'ताकि जब आप चंडीगढ़ के मटका चौक पर विरोध करें तो मैं आप पर लाठी का इस्तेमाल कर सकूं. (तूसिन मटका चौक 'ते धरना लाओगे, मैं आ के दांडे मारूंगा)'

इस कॉमेडी सीन के जुगनू 25 साल बाद पंजाब के मुख्यमंत्री (Punjab CM) बनने वाले हैं. वो जुगनू कोई और नहीं भगवंत मान (Bhagwant Mann) हैं. अब वह पंजाब में शिक्षकों और पुलिसकर्मियों के साथ-साथ और भी कई चीजों के लिए जिम्मेदार होंगे. यह कोई कॉमेडी या जोक नहीं बल्कि वास्तविकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मान इस स्थिति से वाकिफ हैं. इसलिए, आम आदमी पार्टी (AAP) की जीत के तुरंत बाद मान ने अपनी नई सरकार की प्राथमिकताओं को रेखांकित करते हुए अपने काफिले में बाइक सवार युवाओं की उपस्थिति पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि "मैं नहीं चाहता कि वे एक वर्किंग डे यानी कार्य दिवस मेरे साथ समय बर्बाद करें. उनके पास नौकरी होनी चाहिए."

रोजगार का मतलब सिर्फ सरकारी नौकरी से नहीं है

बयानबाजी और भावनाओं से परे देखें तो रोजगार सृजित करना पुरानी कई सरकारों की तरह नई सरकार के लिए अहम चुनौतियों में से एक होगी.

थिंक टैंक, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) ने फरवरी 2022 की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पंजाब की बेरोजगारी दर 9 प्रतिशत है जो कि राष्ट्रीय आंकड़े 7.5 प्रतिशत से अधिक है. वहीं दिल्ली में जहां AAP सत्ता में काबिज है वहां पर यह आंकड़ा पंजाब से भी बदतर (9.3%) है. इन आंकड़ों की वजह से सबसे खराब दर वाले राज्यों की सूची में दिल्ली 12वें पायदान पर है जबकि पंजाब 13वें स्थान पर है.

इस समस्या का समाधान सरकारी नौकरी नहीं है. 2021-22 में यह अनुमान है कि पंजाब को अपने राजस्व यानी रेवेन्यू से 63% खर्च करने पड़ेंगे. जिसमें से वेतन पर (29%), पेंशन पर (12%), और ऋण पर लगने वाले ब्याज पर (21%) खर्च होने का अनुमान है. अहम बात यह है कि पंजाब पर करीब 3 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है.

पंजाब की हालत इतनी खस्ता है कि वह 3,509 रुपये के राष्ट्रीय औसत (बड़े राज्यों के) की तुलना में पूंजीगत व्यय पर प्रति व्यक्ति केवल 869 रुपये खर्च करता है। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की एक रिपोर्ट के अनुसार तीन से चार वर्षों में पंजाब पर 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज होने की उम्मीद है.

यह आंकड़ा दिल्ली के विपरीत है, जो न केवल एक रेवेन्यू सरप्लस राज्य है, बल्कि इसका जीएसडीपी में ऋण अनुपात बमुश्किल से 5% है, जबकि पंजाब के लिए यह करीब 50% है.

इस परिदृश्य में सामाजिक कार्यकर्ता डॉ प्यारा लाल गर्ग का कहना है कि 'कोई भी सरकार सभी को सरकारी नौकरी (सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी) नहीं दे सकती है; लेकिन यह रोजगार (आजीविका का स्रोत) प्रदान कर सकती है. समाज के सबसे निचले तबके के लोगों को बुनियादी नौकरियों की तत्काल आवश्यकता है. इन्हें नौकरियां मिलने से अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिल सकता है.”

उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि आशा कार्यकर्ताओं जैसे पदों को वर्तमान मानदेय लगभग 22 हजार से बढ़ाकर 70 हजार कर दिया जाए और उन्हें 2500 रुपये हर महीने भुगतान किए जाए. इससे 210 करोड़ रुपये का मामूली खर्च बढ़ेगा.

विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि पंजाब में मनरेगा का कम उपयोग किया जा रहा है. पंजाब में 30 लाख से अधिक ग्रामीण परिवार हैं, लेकिन केवल 21 लाख के पास ही मनरेगा जॉब कार्ड हैं. केंद्र सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि इस वित्तीय वर्ष में अब तक 20,000 से कम परिवारों को गारंटी के साथ 100 दिनों की मजदूरी वाला रोजगार मिला है.

डॉ. गर्ग सुझाव देते हैं, "राज्य अपने स्वयं के पैसों का उपयोग करके गारंटी वाले दिनों (100 दिन) की संख्या को बढ़ाकर 150 कर सकता है. इससे वह कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए श्रम शक्ति का उपयोग कर सकता है."

क्या उद्योग से ही मदद मिल सकती है?

लेबर, कुटीर उद्योग, कृषि और पंजाब के समाजाजिक कैरेक्टर के बीच एक कड़ी देखते हुए अर्थशास्त्री डॉ ज्ञान सिंह कहते हैं कि "1980 के दशक में उग्रवाद के कारण और बाद में अन्य राज्यों में टैक्स छूट देने के कारण, पंजाब ने बहुत अधिक कर्ज बना लिया और कई सारे उद्योग खो दिए. हालांकि, बड़े उद्योग ही एकमात्र समाधान का विकल्प नहीं हैं. दुग्ध उत्पादों, जूस, पारंपरिक खाद्य पदार्थों के लिए ग्राम स्तर की सहकारी समितियां न केवल रोजगार पैदा कर सकती हैं बल्कि सामाजिक आत्मविश्वास भी पैदा कर सकती हैं."

खेती लोगों के लिए रोजगार का सबसे बड़ा जरिया बनी हुई है क्योंकि पंजाब के 36 प्रतिशत कामगार इस क्षेत्र में कार्यरत हैं. इसके बाद लघु उद्योग आता है, जहां 24% कामगर कार्यरत हैं. डॉ सिंह के अनुसार “इन क्षेत्रों पर ध्यान देने की जरूरत है और इन्हें आपस में जोड़ा जाना चाहिए. क्योंक बड़े उद्योग में भारी निवेश की आवश्यकता होती है और यह ऑटोमेटेड होता है जिसकी वजह से यहां बड़ी संख्या में नौकरियों नहीं तब्दील हो पाती हैं. ”

"मुफ्त-मुफ्त वाली चीजों के लिए" फंड?

चूंकि AAP ने विभिन्न सब्सिडी की घोषणा की है, इसलिए आर्थिक वृद्धि यानी कि इकनॉमिक बूस्ट महत्वपूर्ण है. इन घोषणाओं में 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की प्रत्येक महिला को प्रति माह 1,000 रुपये देने की बात भी शामिल है, जिस पर प्रति वर्ष लगभग 12 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे. इसके साथ ही इसमें पहले से ही दी जा रही खेतों को मुफ्त बिजली के अलावा, घरेलू ग्राहकों के लिए एक महीने में 300 यूनिट मुफ्त बिजली की बात भी शामिल है. इन सबके साथ ही पार्टी ने मोहल्ला क्लीनिक और स्कूल के बुनियादी ढांचे में सुधार का वादा भी किया है.

2021-22 में AAP सरकार ने दिल्ली में शिक्षा के लिए खर्च का 25.2% आवंटित किया, जो राज्यों द्वारा औसत आवंटन (15.8%) से अधिक है. पंजाब में यह आंकड़ा दिल्ली की तुलना में आधे से भी कम 11% पर है. स्वास्थ्य के लिए, दिल्ली ने 15.9% आवंटित किया, जो राज्यों (5.5%) द्वारा औसत आवंटन का लगभग तीन गुना और पंजाब (4%) का चार गुना है.

पहले लीकेज को बंद करके और फिर अतिरिक्त रेवेन्यू पैदा करके पंजाब में शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए उच्च स्तर की प्रतिबद्धता के लिए प्राथमिकताओं के फेरबदल और विस्तार की आवश्यकता होगी.

आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार खत्म करके जनता के लिए पैसे जुटाने की बात कही है. गुरु नानक देव विश्वविद्यालय (जीएनडीयू), अमृतसर के आरएस घुमन जैसे अर्थशास्त्रियों के अनुसार, लीकेज को रोकना और प्रभावी तरीके से कुशलतापूर्वक रेवेन्यू संग्रह से पंजाब को हर साल 25,000 करोड़ रुपये धन प्राप्त हो सकता है, जो कि आप की तत्काल प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त होना चाहिए. कांग्रेस के नवजोत सिंह सिद्धू जैसे कुछ राजनेताओं ने भ्रष्टाचार को खत्म करके सालाना 50 हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय का बड़ा अनुमान लगाया. इस तरह से देखें तो यह गणितीय रूप से संभव प्रतीत होता है.

प्रचंड जीत के बाद 13 मार्च को अमृतसर में एक रोड शो के दौरान केजरीवाल ने जोर देकर कहा कि "पहली बार पंजाब में एक ईमानदार मुख्यमंत्री है... लूट को रोका जाएगा; एक-एक रुपया जनता पर खर्च किया जाएगा.

लेकिन जब केजरीवाल ऐसा कह रहे थे तो वह अर्थशास्त्र की बात नहीं कर रहे थे बल्कि एक राजनीतिक वादा कर रहे थे जिसकी बदौलत AAP सत्ता में आई है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

दंभ व अहंकार के खिलाफ वोट 

अगर 2022 के पंजाब चुनावों ने हमें कुछ सिखाया है, तो वह यह है कि पंजाब को अहंकार बर्दाश्त नहीं है. यहां के लोग बिना किसी झिझक के दिग्गजों को अर्श से फर्श पर ला सकते हैं.

ऐसे में "आपना मुंडा" यानी हमारा लड़का के रूप में मान की छवि के लिए पहली परीक्षा यह होगी कि वह बड़े पैमाने पर उम्मीदों को कैसे संभालते हैं. वो भी तब जब कई वित्तीय समाधान मध्यम और दीर्घकालिक अवधि के हैं. जीतने के बाद अपने पहले संबोधन में उन्होंने स्पष्ट रूप से नीयत (इरादे) के बारे में बात की और कई बार "हौली-हौली" (धीमी और स्थिर) शब्द का इस्तेमाल किया. यह नीयत खनन और केबल टीवी एकाधिकार जैसे नीतिगत फैसलों के साथ-साथ निर्वाचन क्षेत्र के स्तर पर विधायकों के व्यवहार में भी प्रतिबिंबित करनी होगी.

केजरीवाल ने अमृतसर रोड शो में कहा है कि "अगर हमारे विधायक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, तो हम उन्हें बख्शेंगे नहीं."

जब अकाली-बीजेपी गठबंधन सत्ता में था तब उनके विधायक ही नहीं उनके वे नेता जो चुनाव हार गए थे उनको भी उनके संबंधित जिलों में पुलिस अधिकारियों और प्रशासकों की नियुक्तियों में अहम भूमिका निभाने के लिए जाना जाता था. अमरिंदर के शासनकाल के दौरान भी इस रवैये में ज्यादा बदलाव नहीं आया.

इस स्थिति में बदलाव लाने का वादा करने वाले AAP विधायकों से कुछ ही दिनों इस मामले में ठोस कदम उठाने की उम्मीद की जा रही है. यहीं से दिल्ली के शिक्षा और स्वास्थ्य मॉडल को पंजाब में शुरु किया जा सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

शिक्षा में सुधार और‌ ड्रग्स पर वार

पटियाला में पंजाबी विश्वविद्यालय को तेजी से ठीक करने व इसमें सुधार करने की जरूरत है. यह मालवा क्षेत्र में उच्च शिक्षा का केंद्र है, मालवा में पंजाब की 117 विधानसभा सीटों में से 69 आती है और इनमें से 66 सीटें AAP के खाते में गई हैं.

चरणजीत सिंह चन्नी ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान घोषणा की थी कि इस विश्वविद्यालय को 12 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 20 करोड़ रुपये प्रति माह दिए जाएंगे. उन्होंने यह भी घोषणा की थी कि संस्थान का 150 करोड़ रुपये का कर्ज वापस लिया जाएगा. हालांकि, बजट आवंटन के दौरान जो खुलासा हुआ उससे जिस वास्तविकता का पता चला वह यह कि विश्वविद्यालय ने 400 करोड़ रुपये के विशेष अनुदान का अनुरोध किया था, लेकिन उसे केवल 90 करोड़ रुपये ही दिए गए.

भगवंत मान इसी विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं.

यूनिवर्सिटी के एजुकेशनल मल्टीमीडिया रिसर्च सेंटर के प्रमुख दलजीत अमी का कहना है कि “यह विश्वविद्यालय कृषि संकट के सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों के छात्रों की मदद करता है. यहां छात्रों का एक बड़ा हिस्सा पहली पीढ़ी के कॉलेज छात्रों का है. AAP को स्कूल, कॉलेजों से लेकर विश्वविद्यालय तक सार्वजनिक शिक्षा संस्थानों की पूरी श्रृंखला की देखने की जरूरत है."

एक अन्य सामाजिक मुद्दा है जिस पर AAP तुरंत काम कर सकती है वह है नशामुक्ति केंद्रों की प्रभावशीलता. अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया पहले से ही ड्रग से जुड़े मामले में कैद हैं, इससे आप को राजनीतिक लाभ मिल सकता है. ऐसा प्रतीत होता है कि पंजाब ने नशेड़ियों को बहिष्कृत मानने की बजाय उन्हें सहायता की आवश्यकता वाले रोगियों के रूप में देखने की अपनी सोच बदल दी है. मान और उनके विधायकों की सामाजिक पूंजी इस मानसिकता को और भी अधिक बढ़ावा देने में मदद कर सकती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

देश की राजधानी के लिहाज से बात करें तो...

मान की सरकार को पैसों की अदला-बदली से ज्यादा जरूरत होगी. वहीं सामाजिक पूंजी की बात करें तो यह केंद्र सरकार के साथ उनके संबंधों में निहित होगी.

पंजाब ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने वाले प्रदर्शनों का नेतृत्व किया, लेकिन कानूनी गारंटी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि की मांग अभी भी केंद्र सरकार के हाथों में है.

पीएम नरेंद्र मोदी ने AAP को ट्विटर पर बधाई दी और हरसंभव मदद का वादा किया. लेकिन, केजरीवाल के दिल्ली शासन के अनुभव के आधार पर, निस्संदेह झड़पें और गतिरोध होंगे.

नदी-जल बंटवारे का मुद्दा जैसे सतलुज यमुना लिंक नहर, यह भी आइडिया ऑफ फेडरलिज्म (संघवाद के विचार) की परीक्षा होगी. एक सीमावर्ती राज्य के रूप में पंजाब की स्थिति तब अहम होगी जब बतौर मुख्यमंत्री मान पाकिस्तान के साथ सीमा के भीतर बीएसएफ की सीमा को 50 किमी तक बढ़ाने पर एक स्टैंड लेने के लिए मजबूर होंगे. वहीं बीजेपी और उसके नए सहयोगी अमरिंदर पहले से ही इस बात पर जोर दे रहे हैं कि सीमावर्ती राज्य में कानून-व्यवस्था "नौसिखियों" द्वारा नियंत्रित नहीं की जा सकती है.

टकराव कहां-कहां होगा?

इन सबके बीच पंजाबी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे मीम्स के मुताबिक छह महीने में 'जुगनू' की पहली अहम परीक्षा होगी. क्योंकि, अब दिल्ली के साथ टकराव का मतलब सिर्फ केंद्र सरकार नहीं बल्कि केजरीवाल की दिल्ली सरकार से भी है.

सितंबर और अक्टूबर में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में धुंध के लिए केजरीवाल सरकार ने पंजाब में धान की पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराया था. इस मुद्दे पर मान को अपने लोगों और अपनी पार्टी के बॉस दोनों को खुश करने का तरीका खोजना पड़ सकता है. हालांकि, सरकार प्रदान करना जनादेश का केवल एक पहलू है.

राजनीतिक रूप से भी यह एक ऐसी परीक्षा है जिसका उन्हें बार-बार सामना करना पड़ सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भेदभाव का मुद्दा अभी खत्म नहीं हुआ है...

पंजाब इस मायने में अनोखा है कि 2% से कम की राष्ट्रव्यापी अल्पसंख्यक सिख, यहां बहुसंख्यक हैं, जिनकी आबादी 60% से अधिक है. यह भारत में ऐसे जनसांख्यिकीय वाले कुछ राज्यों में से एक है. इसका सांस्कृतिक फुटप्रिंट नक्शे पर इसके भौगोलिक आकार से काफी बड़ा है.

नतीजतन, मान को मिलने वाली चुनौतियों में यह भी एक नया मानक है. क्या वह हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान की तरह अति-राष्ट्रवादी राजनीति का मुकाबला करेंगे? यह उन्हें न केवल अपने विरोधियों के साथ बल्कि उनकी पार्टी के भीतर भी संघर्ष में ला सकता है, जिसने हाल के वर्षों में नरम हिंदुत्व का रुख अपनाया है.

मान को धर्म और राजनीति को पूरी तरह से अलग करने की जरूरत नहीं है. पंजाब में सिखों की पवित्र पुस्तकों की बेअदबी, साथ ही सिख राजनीतिक कैदियों की रिहाई, एक ज्वलंत विषय है. ऐसे में मान को पहचान और बहुसंख्यकवाद के बीच की बारीक रेखा को परिभाषित करना होगा.

जहां एक ओर केजरीवाल की AAP कुशलता पूर्वक सेवाएं प्रदान करने के मामले में राजनीति को कम करना पसंद करेगी, वहीं दूसरी ओर उसे जल्द ही पता चलेगा कि पंजाब में राजनीति इससे कहीं अधिक है.

(लेखक एक पत्रकार हैं, इन्होंने चंडीगढ़ और नई दिल्ली में प्रमुख समाचार संस्थाओं में काम किया है. वर्तमान में बेनेट विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के सहायक प्रोफेसर हैं. आप उनसे aarishc@gmail.com और ट्विटर @aarishc पर संपर्क कर सकते हैं. यह लेख एक विचार है और इसमें व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×