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असम में दशकों पहले ही पड़ चुकी थी BJP की कामयाबी की नींव

दिवंगत नेता कुशाभाऊ ठाकरे, आरएसएस और वीएचपी की मिलीजुली मेहनत का परिणाम है असम की सफलता. 

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असम में बीजेपी का सत्ता में आना भारत की राजनीति की एक बड़ी घटना है. इसका श्रेय सर्बानंद सोनोवाल के शानदार नेतृत्व और हेमंत बिस्व शर्मा की कुशल रणनीति को दिया जा रहा है. लेकिन दिग्गजों का मानना है कि इस जीत की नींव लगभग दशकों पहले ही पड़ चुकी थी.

असम के कार्बी क्षेत्र के नेता अंगद सिंह 1993 में कुशाभाऊ ठाकरे के साथ हुई बैठक का एक वाकया सुनाते हुए कहते हैं कि उन्होंनें कुशाभाऊ से कहा कि असम में बीजेपी का कोई भविष्य नहीं है, क्योंकि असम की राजनीति शुरू से ही कांग्रेस और असम गण परिषद (एजीपी) के बीच विभाजित होती आई है.

लेकिन ठाकरे ने कहा कि कांग्रेस के प्रत्येक असंतुष्ट समर्थक और नेता में बीजेपी के संभावित कार्यकर्ता की संभावनाएं मौजूद हैं. उनके वे शब्द भविष्यवाणी के रूप में सच साबित हुए. अंगद सिंह कहते हैं,

असम में बीजेपी की नींव दिवंगत कुशाभाऊ ठाकरे और बंसीलाल सोनी ने दशकों पहले ही डाल दी थी. उन दिनों में असम में बीजेपी के बारे में सोचना भी मुमकिन नहीं था.
अंगद सिंह, कार्बी क्षेत्र के नेता 
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आरएसएस और विहिप का योगदान

असम बीजेपी इकाई के सूत्रों ने बताया कि इन चुनावों में आरएसएस और वीएचपी के लगभग 25,000 कार्यकर्ताओं ने सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभाई.

स्थानीय नेता दोवाराह के अनुसार, आरएसएस ने आंतरिक रूप से चार क्षेत्रों की स्थापना की और अपने कार्यकर्ताओं को बराक घाटी, ऊपरी असम, कुछ जनजातीय क्षेत्रों और मध्य असम में तैनात किया और नतीजे सामने हैं.

वहीं बीजेपी और आरएसएस के अन्य नेताओं से सहमति जताते हुए विश्व हिंदू परिषद के नेता प्रवीण तोगड़िया ने पिछले दो वर्षों में ग्रामीण असम का दौरा किया.

नागोन लोकसभा सीट से सांसद गोहैन का कहना है कि जब भी पहले वो सरकार गठन की बात करते थे, तो विपक्षी इसे भगवा महल बनाकर खारिज कर देते थे. उनके अनुसार, आज उन्होंने विपक्षियों को गलत साबित कर दिया.

गुवाहाटी में पेशे से डॉक्‍टर डी. तीर्थकर वर्ष 2000 में ही आरएसएस से जुड़े हैं. वे कहते हैं,

डॉक्‍टरों, शिक्षाविदों और इंजीनियरों, हम जैसे पेशेवर लोगों ने बीजेपी के विकास के लिए आरएसएस में शामिल होने की शपथ ली थी. असम में जीत के लिए आरएसएस के इस रिकॉर्डतोड़ योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. 
डी. तीर्थकर

कांग्रेस और एजीपी के गठबंधन से हताशा

आरएसएस के समाचार पत्र द ऑर्गेनाइजर के प्रफुल्ल केटकर कहते हैं कि असम में काफी लंबे समय से एक मजबूत और वैचारिक रूप से सक्षम पार्टी विपक्ष में रही है.एजीपी और पिछले 15 वर्षों में कांग्रेस की नाकामी से लोग हताश हो गए थे.

वहीं मंगलदेई से सांसद डेका बताते हैं,

हमारे पास उम्मीदें थीं. लोग बीजेपी की विचारधारा और एक स्वच्छ प्रशासन को लेकर सजग थे. कांग्रेस और एजीपी के कार्यकालों की असफलताएं कई वर्षों से हमारी पार्टी के लिए आधार बन रही थी
मंगलदेई से सांसद डेका

2014 से बदले हालात

बीजेपी 1970 के दशक में असम में पहले ही पैर रखने की जगह बना चुकी थी. इसके बावजूद बराक घाटी, करीमगंज और सिल्चर की संसदीय सीटें 2014 में बीजेपी नहीं जीत पाई. लेकिन 2014 के बाद से हालात बदले.

आरएसएस के पूर्व नेता राम माधव और नितिन गडकरी जैसे आरएसएस के चहेते नेताओं ने पिछले दो वर्षों में बीजेपी के सांसदों, भाजपा राज्यों के नेताओं और पूर्वोत्तर में आरएसएस शाखा प्रमुखों के साथ बैठकें कीं.

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