हिंसा और विरोध के बीच गुरुवार को संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ रिलीज हो गई. फिल्म में रणवीर सिंह खिलजी वंश के शासक अलाउद्दीन खिलजी का रोल अदा कर रहे हैं. फिल्म में खिलजी एक बर्बर और वहशी बादशाह के तौर पर पेश किया गया है. लेकिन इतिहासकारों का कहना है भंसाली ने पर्दे पर जिस खिलजी को दिखाया है वह असल खिलजी से काफी अलग है.
इतिहासकार राना सफवी कहती हैं कि खिलजी को बेहद वहशी बादशाह के तौर पर पेश किया गया है. ऐसा नहीं हो सकता. दिल्ली में उसका सल्तनत पर्सिया से प्रेरणा लेती थी जो दुनिया की पुरानी और सभ्यताओं में एक थी.
सफवी कहती हैं,
अलाउद्दीन खिलजी पर्सिया के तौर-तरीकों और वहां के लोगों की तरह व्यवहार करता था. खान-पान, भोज के आयोजन और पहनने-ओढ़ने में वो सलीकेदार था.राना सफवी, इतिहासकार
खिलजी वहशी नहीं था
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में विमेन स्टडीज डिपार्टमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर अरुणिमा गोपीनाथ कहती हैं महान कवि अमीर खुसरो खिलजी के शासन में ही फले-फूले. खुसरो ने 13वीं सदी में अलाउद्दीन खिलजी के युद्ध अभियानों के बारे में विस्तार से लिखा है. लेकिन खुसरो ने उसे एक वहशी शासक के तौर पर पेश नहीं किया है.
सफवी कहती हैं कि संजय लीला भंसाली की फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी का जो रूप दिखाया गया है वह बेहद बर्बर और वहशी है. उसे विलेन के तौर पर दिखाया गया है जबकि रतन सिंह को एक नायक के तौर पर पेश किया गया है.
उनके मुताबिक हो सकता है खिलजी क्रूर रहा हो लेकिन वो महिलाओं के पीछे भागने और फिर उसे हासिल करने में नाकाम रहने पर राज्यों पर हमला करने वालों में से नहीं था. वो साम्राज्यवादी और एक अच्छा सैन्य रणनीतिकार था, जो सिर्फ अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था. वह मंगोल हमलावरों को कुचल देना चाहता था. इसलिए वो क्रूर तरीके से अपने सैन्य अभियान चलाता था. वह दूसरों के दिल में डर पैदा करना चाहता था.
वह शायद अकेला बादशाह था जो जुमे की नमाज पढ़ने नहीं जाता था. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के हीरम चतुर्वेदी का कहना है देश में इस्लामी शासकों को विलेन के तौर पर पेश करना का साफ पैटर्न दिख रहा है. भंसाली की फिल्म में अलाउद्दीन का किरदार इसी कोशिश की एक कड़ी हो सकती है.
इनपुट : पीटीआई
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