बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर लगभग सभी राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) भी अपने अध्यक्ष लालू प्रसाद की गैरमौजूदगी में अभी से 'चुनावी मोड' में आ गई है.
आरजेडी इस चुनाव में जहां अपने पुराने चेहरों को एक बार फिर ‘फ्रंट’ पर लाने की कवायद में जुटी है, वहीं अपनी सियासी चाल भी बदलने में शिद्दत से जुटी हुई है.
पार्टी ने जगदानंद सिंह जैसे 'सवर्ण नेता' को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी देकर इसके संकेत दे दिए हैं. दरअसल आम तौर पर मुस्लिम और यादव समुदाय को आरजेडी की कोर वोटबैंक माना जाता है. मगर अब लग रहा है कि आरजेडी 1995 की सरकार के ‘सवर्ण चेहरों’ को फिर से सामने लाकर 2020 की चुनावी नैया पार करने की जुगत में है.
झारखंड में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को सत्ता से हटाने में अपने गठबंधन की कामयाबी के बाद आरजेडी बिहार को लेकर काफी उत्साहित दिख रही है.
न्यूज एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक, आरजेडी बीजेपी के खिलाफ सड़क पर आंदोलन खड़ा करने की रणनीति बना रही है. इसके तहत तेजस्वी यादव क्षेत्रों का दौरा करने निकलेंगे और कार्यकर्ताओं में उत्साह भरेंगे. इस दौरान वह 'आंदोलन' के कार्यक्रम भी तय करेंगे.
दूसरी ओर, आरजेडी उन पिछड़े और दलित नेताओं को भी सामाजिक समीकरण दुरुस्त करने के लिए पार्टी के साथ जोड़ने की कोशिश में है, जो कभी लालू प्रसाद की राजनीति के गवाह रहे हैं.
आरजेडी सूत्रों का कहना है कि रमई राम, उदय नारायण चौधरी, वृष्णि पटेल सहित ऐसे नेताओं पर भी पार्टी की नजर है जो बीजेपी और उसके सहयोगी दलों से नाराज हैं.
हालांकि, आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि पार्टी ने कभी भी जाति की राजनीति नहीं की है, आरजेडी शुरू से ही सभी को साथ लेकर चली है. उन्होंने कहा कि 'आरजेडी अपने पुराने साथियों को फिर से अपने साथ लाने में जुटी है तो इसमें गलत क्या है?'
तिवारी ने कहा कि इस साल होने वाले चुनाव में विपक्षी दलों का महागठबंधन तय माना जा रहा है, लेकिन इस पर अभी बहुत कुछ कहना जल्दबाजी होगी.
इस बीच आरजेडी के एक नेता ने नाम जाहिर ना करने की शर्त पर कहा कि पार्टी की कोशिश संगठन को मजबूत बनाने की है, मुस्लिम-यादव (माय) समीकरण को तरजीह देने के नाम पर किसी को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा. उन्होंने कहा, "अभी तक जिलों, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर संगठन का विस्तार नहीं हो सका है. इसी में आपको झलक मिल जाएगी."
गौरतलब है कि आरजेडी की ओर से संगठन के पदों को अति पिछड़ों और एससी-एसटी के लिए 45 फीसदी आरक्षित कर दिया गया है.
पार्टी इस बीच सत्तारूढ़ गठबंधन पर कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार को लेकर निशाना साध रही है.
2015 में महागठबंधन के तहत आरजेडी के साथ कांग्रेस के अलावा जेडीयू भी चुनावी मैदान में उतरी थी, लेकिन इस चुनाव में जेडीयू के बीजेपी के साथ रहने की संभावना बनी हुई है. ऐसे में आरजेडी सत्तारूढ़ गठबंधन को मात देने के लिए किस तरह आगे बढ़ेगी, यह देखने वाली बात होगी.
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