लोकसभा चुनावों के बाद से अब तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने राज्य की महिला मतदाताओं को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं. कभी वे शराब के ठेके बंद करने का वादा करते हैं तो कभी महिलाओं के लिए खास योजनाओं का शिलान्यास करते हैं.
लेकिन, इस सबके बावजूद बिहार की महिलाएं पूरी तरह से नीतीश के पक्ष में दिखाई नहीं दे रही हैं.
समस्तीपुर केे एक ब्यूटी पार्लर में हमारी मुलाकात 48 वर्षीय मधुलिका सिंह से हुई जिनके पति को लालू यादव के ‘जंगलराज’ में मार दिया गया था. मधुलिका नीतीश कुमार को पसंद करती हैं परंतु महागठबंधन के लिए वोट देने की इच्छुक नहीं हैं.
केंद्र में बीजेपी की सरकार होना तो ठीक है लेकिन बिहार में बीजेपी मेरी पहली पसंद नही है. मैं अपना वोट नीतीश कुमार को दूंगी. लेकिन, लालू को फिर एक बार सत्ता में आते नहीं देखना चाहती हूॅं क्योंकि उस दौर में किसी की भी हत्या कर देना काफी आसान था.
- मधुलिका सिंह
सामान्यतः किसी को समस्तीपुर के ‘अप्सरा ब्यूटी पार्लर’ में ऐसी बातचीत की उम्मीद नहीं होगी. लेकिन, यहां मौजूद महिलाओं से बात करने पर हमें जो पता चला वह शायद बिहारी महिलाओं के नीतीश कुमार के समर्थन में खड़े होने वाली बात को गलत साबित करता है.
नव-विवाहिता डेजी (27) मधुलिका की राय से इत्तेफाक रखती नजर नहीं आईं. वह कहती हैं -
मैं नीतीश को जिताना जानती हूँ, मुख्यमंत्री बनने के बाद से उन्होंने छात्रों की बहुत मदद की है, उनकी शिक्षा नीतियों से मुझे और मेरे परिवार की अन्य लड़कियों को भी फायदा हुआ है. इसकेे साथ ही महिलाओं के लिए सुरक्षा बढ़ी है. पहले रात होने पर घर से निकलने में भी डर लगता था, पर अब ऐसा नहीं है. - डेजी, ब्यूटीशियन
ब्यूटीशियन अनु (23) का मानना है कि नीतीश और लालू के बीच एक बार फिर गठबंधन हो जाने पर सुरक्षा एक अहम मुद्दा बन जाती है.
महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की वजह को अक्सर उनके पहनावे से जोड़कर देखा जाता है. जबकि इसके लिए लड़कियों को छेड़ने वालों के गलत इरादे जिम्मेदार होते हैं. लालू के दौर में अपरहण उद्योग और भ्रष्टाचार अपने चरम पर था और किसी तरह का कोई विकास नहीं हुआ. वहीं, नीतीश ने बहुत कुछ किया है. लेकिन लालू के साथ हाथ क्यों मिला लिया. मैं इस बार बीजेपी को वोट दूंगी क्योंकि उनको भी मौका मिलना चाहिए.
- अनु, ब्यूटीशियन
बिहार में रिपोर्टिंग करते हुए हमें कांग्रेस के पहले समर्थक से मुलाकात करने में एक हफ्ते का समय लगा. लेकिन, ये भी कोई पार्टी कार्यकर्ता या गांधीवादी व्यक्ति नहीं था बल्कि ये एक भारतीय रेलवे की कर्मचारी ‘पूनम कल्यानी’ थीं. पूनम को डर है कि बीजेपी सरकार कहीं रेलवे का निजीकरण न कर दे.
अब महिलाओं की सुरक्षा मुख्य चुनावी मुद्दा नहीं रहा. कोई भी पार्टी महिलाओं को सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकती और दाल जैसी रोजमर्रा वाली खाने की चीज 250 रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से मिल रही है. ये भी एक मुद्दा है. मैं अपने बेटे को पोलिंग बूथ पर ले जाऊंगी और सुनिश्चित करूंगी कि वह बीजेपी को वोट न दे.
युवा पीढ़ी फ्री वाई-फाई, लैपटॅाप और स्कूटी मिलने के वादों पर वोट दे देती है. लेकिन जब हर चीज का निजीकरण हो जाएगा तो यही बच्चे कॅारपोरेट कंपनियों में जरा सी सैलरी के लिए काम किया करेंगे.
- पूनम कल्यानी, भारतीय रेल विभाग में कार्यरत
बिहार चुनाव के पहले चरण में 59.5% महिलाओं ने मतदान दिया जो पुरुषों के मतदान प्रतिशत से 4% ज्यादा है.
नीतीश कुमार की महिला-केंद्रित योजनाओं जैसे साइकिल योजना और मुस्लिम एवं एससी-एसटी जाति की महिलाओं के लिए रोजगार ट्रेनिंग योजना ने संभावना जताई थी कि अधिकांशतः महिलाएं नीतीश कुमार के खाते में ही वोट डालेंगी.
लालू यादव भले ही जदयू के महिला वोटबैंक पर एक भार के रूप में दिखाई दें लेकिन मुस्लिम-यादव वोटबैंक से वह महागठबंधन को जरूरी सहारा दे देंगे.
बीजेपी की बात करें तो बिहार में बीजेपी महिलाओं की पहली पसंद नहीं है. लेकिन लालू को सत्ता में आने से रोकने के लिए महिलाएं बीजेपी को एकमात्र विकल्प के रूप में चुन सकती हैं.
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