4 लोकसभा सीट और 10 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे सामने हैं. बीजेपी को उत्तर प्रदेश में गहरा धक्का लगा है. पश्चिमी यूपी में राजनीतिक बयार की दिशा बदली है. वहीं बिहार के जोकीहाट सीट के नतीजों के बाद अब नीतीश कुमार को सचेत होने की जरूरत है.
बीजेपी के लिए यूपी की कैराना सीट के बाद नूरपुर विधानसभा सीट से भी अच्छी खबर नहीं है. बीजेपी की इस सीट पर अब समाजवादी पार्टी का कब्जा हो गया है. कैराना में विपक्ष के समर्थन के साथ आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने 55 हजार वोटों से बाजी मारी है. महाराष्ट्र की भंडारा-गोंदिया सीट भी छिटककर एनसीपी के पास आ गई है.
ऐसे में इन उपचुनाव के नतीजों से ये 5 ट्रेंड सामने आ रहे हैं
1. वोटर साफ तौर पर बंटे-बीजेपी, नॉन बीजेपी
नतीजों से ये साफ है कि वोटरों ने ये तय कर लिया है कि उन्हें बीजेपी के साथ जाना है या नहीं. मतलब वोटरों की दो ही कैटेगरी दिख रही है बीजेपी और नॉन-बीजेपी. कैराना में आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने करीब 55 हजार वोटों से बीजेपी की मृगांका सिंह को हराया है. यहां पूरा विपक्ष एक साथ था, जाहिर है कि लोगों ने तबस्सुम की पार्टी को नहीं देखते हुए नॉन-बीजेपी कैंडिडेट को जिताने का मन बना लिया था.
ये वही सीट है जहां पर 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी हुकुम सिंह ने बड़ी जीत हासिल की थी. ऐसा ही नूरपुर में भी दिखा, जहां बीजेपी को अपनी सीट समाजवादी पार्टी के हाथों गंवानी पड़ी.
2. विपक्षी एकता का फॉर्मूला हिट
विपक्षी एकता के फॉर्मूला का सबूत है महाराष्ट्र के दो सीट. जहां पालघर सीट पर विपक्ष का वोट शिवसेना, एनसीपी-कांग्रेस के बीच बंटा और बीजेपी ने ये सीट जीत ली. महाराष्ट्र के भंडारा-गोंदिया में शिवसेना का प्रत्याशी नहीं खड़ा हुआ था और वोटरों ने नॉन-बीजेपी विकल्प के तौर पर एनसीपी-कांग्रेस के उम्मीदवार को चुन लिया.
विपक्षी ताकत का अहसास पार्टियों को फूलपुर-गोरखपुर सीट पर हुए उपचुनाव से ही हो गया था. जिसके बाद कैराना में भी इसे अपनाया गया और नतीजे वैसे ही रहे. फूलपुर-गोरखपुर की ही तरह बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. कर्नाटक में विपक्षी पार्टियों के साझा शक्ति प्रदर्शन का ये पहला चुनावी नतीजा रहा.
3. पश्चिमी यूपी की राजनीति में बदलाव का इशारा
कैराना-नूरपुर की जीत पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए बड़ा इशारा है. पहले यहां का जातीय समीकरण समझिए. कैराना लोकसभा क्षेत्र में करीब 17 लाख मतदाता हैं. इनमें 3 लाख मुसलमान, करीब 4 लाख पिछड़े और करीब 1.5 लाख वोटर दलित समुदाय से हैं.
पश्चिमी यूपी को राज्य में जाटों का गढ़ भी माना जाता है. ऐसे में आरएलडी के मुखिया अजीत सिंह ने जाट वोटरों को अपने खेमे में किया और तबस्सुम हसन की राजनीतिक विरासत, उन्हें मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में करने में काम आई. दलित पहले से ही बीएसपी के साथ हैं. यानी कैराना का कमाल मुस्लिम-दलित-जाट समीकरण के कारण हो सका है.
इसी के साथ 2013 में जो दंगे हुए थे उसके बाद मुस्लिमों और जाटों के बीच जो नफरत पैदा हुई थी. वो भी खत्म होती नजर आ रही है.
4. जोकीहाट से नीतीश को सबक
हाल ही में नीतीश ने हड़बड़ाहट में मोदी सरकार की नोटबंदी के खिलाफ बयान दे दिया. ये हड़बड़ाहट बिहार के जोकीहाट विधानसभा सीट के नतीजों से और बढ़ सकती है. यहां लालू-तेजस्वी की पार्टी आरजेडी ने जीत दर्ज की है. महागठबंधन को तोड़ नीतीश, पीएम तो नहीं कम से कम आगे भी सीएम बने रहने के सपने के साथ बीजेपी में आए होंगे. लेकिन अररिया लोकसभा सीट और अब जोकीहाट के नतीजों के बाद नीतीश कुमार को सचेत होने की जरूरत है.
5. कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन पर मुहर
कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने के बाद वोटरों की नाराजगी की अटकलें लगाई जा रही थीं. अब राजराजेश्वरी नगर सीट कांग्रेस के उम्मीदवार मुनिरत्ना ने करीब 41 हजार वोटों से जीत लिया है. ऐसे में साफ है कि राज्य की जनता ने जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन को मंजूर कर लिया है.
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