सीबीआई एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय के साथ साथ इन दोनों कंपनियों द्वारा विमानों की खरीद और उन्हें पट्टे पर देने में कथित अनियमितताओं की जांच करेगी. आरोप है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में हुए इन सौदों से सरकारी खजाने को ‘भारी' नुकसान हुआ.
सीबीआई ने मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में इन दोनों कंपनियों के संबंध में किए गए विवादास्पद फैसलों की जांच के लिए तीन एफआईआर और एक प्रारंभिक जांच दर्ज की है. इसमें मुनाफे वाले ‘मागो' को निजी विमानन कंपनियों के लिए छोड़ने का मामला भी शामिल है.
सीबीआई के प्रवक्ता आर के गौड़ ने कहा कि एयर इंडिया व नागर विमानन मंत्रालय के अज्ञात अधिकारियों व अन्य के खिलाफ आपराधिक षडयंत्र, धोखाधडी तथा भ्रष्टाचार के आरोप में मामले दर्ज किए गए हैं.
प्रवक्ता ने कहा कि ये मामले यूपीए सरकार के कार्यकाल में मंत्रालय द्वारा लिए गए फैसलों से संबंधित हैं, जिससे सरकार को हजारों करोडों रुपये का नुकसान हुआ.
पहली एफआईआर के बारे में उन्होंने कहा कि आरोप राष्ट्रीय विमानन कंपनियों द्वारा 111 विमानों की खरीद के बारे में हैं जिनकी लागत 70,000 करोड़ रुपये थी. आरोप है कि इसमें विदेशी विमान विनिर्माताओं को फायदा पहुंचा. इस तरह की खरीद से पहले से ही संकट से गुजर रही राष्ट्रीय विमानन कंपनियों को वित्तीय घाटा हुआ.
कैग ने 2011 में सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाया था.
दूसरा मामला बड़ी संख्या में विमानों को लीज पर दिए जाने से जुड़ा है. तीसरा मामला मुनाफे वाले मार्ग विदेशी कंपनियों के लिए छोड़ने का है. एयर इंडिया के इस फैसले से कंपनी को भारी नुकसान हुआ. एजेंसी दोनों कंपनियों के विलय के सौदे के विभिन्न पहलुओं की भी जांच करेगी. सीबीआई ने यह कदम उच्चतम न्यायालय के पांच जनवरी के एक निर्देश के मद्देनजर उठाया है. सीबीआई सूत्रों ने कहा कि दोनों सरकारी विमानन कंपनियों के विलय के संबंध में ‘सभी भागीदार' उसकी ‘निगरानी' में हैं.
उल्लेखनीय है कि इन कंपनियों के विलय की प्रक्रिया तत्कालीन नागर विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने 16 मार्च 2006 को शुरु की थी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)