कांग्रेस के कोषाध्यक्ष पवन बंसल जब पार्टी अध्यक्ष चुनावों के लिए नामांकन फॉर्म लेने पहुंचे होंगे तब शायद उन्हें पता था कि वे इसके साथ ही बहुत सारी अटकलों को हवा दे रहे हैं. राजस्थान के आंतरिक कहल (Rajasthan Congress Crisis) और विधायकों की खुली बगावत के बाद अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने चुनावी रेस से बाहर होने की घोषणा कर दी है. इस बात को लेकर सस्पेंस बना हुआ है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए कौन-कौन मैदान में होंगे? अबतक केवल मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और तिरुवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर ने सार्वजनिक रूप से चुनाव लड़ने में दिलचस्पी दिखाई है- क्या इनके अलावा कोई और भी दावेदारी पेश करेगा?
कांग्रेस अध्यक्ष की रेस में एक तीसरा उम्मीदवार भी हो सकता है- झारखंड से कांग्रेस के पूर्व विधायक केएन त्रिपाठी ने भी नामांकन फार्म खरीदे हैं. हालांकि उन्हें गंभीर दावेदार के तौर पर नहीं देखा जा रहा है.
कोषाध्यक्ष पवन बंसल पर वापस आते हैं. उन्होंने स्पष्ट किया है कि उन्होंने चंडीगढ़ कांग्रेस की ओर से फॉर्म लिए थे.
"पांच साल पहले एक गलती हुई थी जब चंडीगढ़ कांग्रेस द्वारा जमा किए गए फॉर्म खारिज कर दिए गए थे. मैं बस यह सुनिश्चित करना चाहता था कि हमारे द्वारा दायर कोई नामांकन खारिज न हो. इसलिए मैंने फॉर्म लिया और उन्हें स्थानीय कांग्रेस को सौंप दिया."पवन बंसल, कांग्रेस कोषाध्यक्ष
लेकिन सवाल अभी भी बना हुआ है कि पवन बंसल ने जो फॉर्म लिए हैं, वो किसके लिए हैं?
तो यहां हम नजर डालते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में उम्मीदवारी पर हम क्या जानते हैं और क्या नहीं जानते हैं.
Congress President Election: हम क्या जानते हैं
1. पवन बंसल का नामांकन फॉर्म लेना महत्वपूर्ण है
बंसल का कहना है कि जब उन्होंने फॉर्म लिए तो उनके दिमाग में कोई उम्मीदवार नहीं था. हालांकि, वह कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष हैं और अंतरिम पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के सबसे भरोसेमंद पार्टी नेताओं में से एक हैं.
इसकी संभावना बहुत कम है कि बंसल पार्टी आलाकमान की मंजूरी के बिना कुछ करेंगे.
यही कारण है कि इस बात की पूरी संभावना है कि दिग्विजय सिंह और शशि थरूर के अलावा भी कोई उम्मीदवार रेस में हो.
2. हाईकमान अभी भी तलाश में व्यस्त
अभी तक हाईकमान ने किसी भी उम्मीदवार का समर्थन करने का फैसला नहीं किया है, चाहे वह दिग्विजय सिंह हों, शशि थरूर हों या कोई और. अशोक गहलोत गांधी परिवार के लिए पसंदीदा उम्मीदवार होते लेकिन राजस्थान के सियासी उठा-पटक के बाद, वह दौड़ से बाहर हो गए हैं और वे हाईकमान का विश्वास भी काफी हद तक खो चुके हैं.
लेकिन चुनाव के ठीक पहले आए राजस्थान संकट के कारण हाईकमान गहलोत का कोई विकल्प नहीं खोज सका है. कमलनाथ ने मध्य प्रदेश कांग्रेस प्रमुख पद को छोड़ने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्हें अगले साल होने जा रहें चुनावों के बाद फिर से सीएम बनने का मौका दिख रहा है.
3. दिग्विजय सिंह और शशि थरूर हाईकमान की पसंद नहीं हैं
दिग्विजय सिंह और शशि थरूर, दोनों ही अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाओं से चुनाव लड़ रहे हैं. आलाकमान ने उन्हें अशोक गहलोत की तरह चुनाव लड़ने के लिए नहीं कहा है. अब कि जब अशोक गहलोत समीकरण से बाहर हो गए हैं, आलाकमान को अध्यक्ष पद की अपनी पसंद के लिए नए विकल्प तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
हालांकि आलाकमान ने कहा है कि वह किसी भी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करेगा, लेकिन कांग्रेस में इतिहास रहा है कि अमूमन एक ऐसा उम्मीदवार अध्यक्ष पद के चुनाव में खड़ा होता है, जिसपर एक आम सहमति होती है.
अभी तक यह स्पष्ट है कि थरूर या दिग्विजय सिंह के मामले में ऐसी आम सहमति नहीं है.
4. दिग्विजय सिंह बनाम शशि थरूर
आलाकमान के साथ दिग्विजय सिंह और शशि थरूर के समीकरण एक दूसरे से जुदा हैं. क्योंकि थरूर G-23 समूह में शामिल थे जिन्होंने पार्टी के कामकाज के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए आलाकमान को एक पत्र लिखा था. इसके विपरीत मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का पार्टी आलाकमान के साथ बेहतर तालमेल है और उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गई हैं, जैसे कि उन्हें भारत जोड़ो यात्रा का प्रभारी बनाया गया है.
यही कारण है कि अगर दोनों में से किसी एक को चुनने का सवाल हो तो शायद आलाकमान दिग्विजय सिंह की ओर अधिक झुकी नजर आता है. अगर ऐसा नहीं भी होता है, तो भी गांधी परिवार के कई वफादार दिग्विजय सिंह को ही चुन सकते हैं.
ऐसे में अगर कोई तीसरा उम्मीदवार सामने आता है तो बहुत कुछ बदल जाएगा.
5. सिर्फ तीसरा नहीं, अधिक उम्मीदवारों की तलाश की जा रही है
कांग्रेस पार्टी के एक सूत्र ने द क्विंट को बताया कि "लोग 30 सितंबर पर बहुत अधिक ध्यान दे रहे हैं लेकिन वे एक महत्वपूर्ण तारीख - 8 अक्टूबर को नजरअंदाज कर रहे हैं, वो है नामांकन वापस लेने की अंतिम तारीख. यह बहुत हद तक संभव है कि शुक्रवार को कई उम्मीदवार अपना नामांकन दाखिल करें लेकिन फाइनल उम्मीदवारी 8 तारीख तक स्पष्ट हो जाएगी."
सूत्र का यह दावा पवन बंसल द्वारा नामांकन फॉर्म ले जाना इसी ओर इशारा करता है. यह संभव है कि कई वफादार नेता अपना नामांकन दाखिल करें और बाद में नाम वापस ले लें.
लेकिन सवाल है कि ऐसा क्यों किया जा रहा है?
पार्टी सूत्रों का कहना है कि पार्टी ऐसा उन उम्मीदवारों को काबू में रखने के लिए कर रही है जो मौजूदा स्थिति का फायदा उठाने की सोच रहे हों. यह किसी भी ऐसे उम्मीदवार को मैसेज देने का एक तरीका है, जो सोचता रहा हो कि गहलोत के रेस से बाहर होने के बाद खाली पिच है, भ्रम की स्थिति है और इसका लाभ उठाया जा सकता है.
Congress President Election: हम क्या नहीं जानते हैं
अभी हम नहीं जानते कि वास्तव में कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में तीसरा या चौथा उम्मीदवार कौन होगा या दो से अधिक उम्मीदवार होंगे भी या नहीं. ये नाम चर्चा में हैं:
मुकुल वासनिकी
मल्लिकार्जुन खड़गे
पवन बंसल
कुमारी शैलजा
केसी वेणुगोपाल
मुकुल वासनिक अपनी संगठनात्मक पकड़ के लिए जाने जाते हैं जिन्हें पार्टी मशीनरी की पूरी समझ है. कहा जाता है कि वह पूरे भारत में हजारों पार्टी कार्यकर्ताओं को उनके नामों से जानते हैं. हालांकि शशि थरूर कि तरह वे भी G-23 समूह का हिस्सा थे.
इन नेताओं में मलिक्कार्जुन खड़गे सबसे वरिष्ठ हैं और पहले से ही राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं. वह कर्नाटक से भी आते हैं, जहां अगले साल के मध्य में चुनाव होने हैं. हालांकि वह पहले से ही 80 साल के हैं और उम्र उनके पक्ष में नहीं है.
पवन बंसल पर भी पार्टी आलाकमान को बहुत भरोसा है. वह अपनी कार्यशैली में सक्षम और व्यवस्थित होने के लिए जाने जाते हैं. कुमारी शैलजा उत्तर भारत में पार्टी की सबसे बड़ी दलित चेहरों में से एक हैं और निश्चित रूप से हरियाणा में वो सबसे बड़ी हैं. वह लगातार पार्टी नेतृत्व के प्रति वफादार रही हैं. हालांकि, हरियाणा में पार्टी मामलों पर हावी साबित होने वाले भूपिंदर सिंह हुड्डा के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा है.
केसी वेणुगोपाल को बहुत जूनियर और राहुल गांधी के बहुत करीबी के रूप में देखा जाता है. उनके अध्यक्ष बनने से टीम राहुल द्वारा पार्टी पर अनौपचारिक कब्जे और केरल लॉबी के वर्चस्व के आरोपों को हवा मिलेगी. संगठनात्मक मामलों पर वेणुगोपाल के प्रदर्शन की कुछ आलोचना भी हुई है.
खड़गे और कुछ हद तक वासनिक को छोड़कर, ऊपर दिए अन्य सभी नामों के पास संगठनात्मक अनुभव की कमी है. खड़गे, वासनिक और शैलजा- तीनों दलित समुदाय से भी आते हैं. यदि उनमें से कोई भी पार्टी प्रमुख बनता है, तो वे पिछले 50 वर्षों में कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाले पहले दलित नेता होंगे. इससे पहले जगजीवन राम 1970 में अंतिम दलित कांग्रेस अध्यक्ष थे.
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