- परिवारवाद का ठप्पा हटाने के लिए क्या कांग्रेस पार्टी प्रधानमंत्री के लिए राहुल गांधी के अलावा किसी और नाम पर भी विचार कर सकती है?
- 2019 के आम चुनाव में विपक्ष का प्रधानमंत्री उमीदवार कौन होगा?
- विपक्ष का प्रधानमंत्री बनने का मौका आने पर क्या ममता बनर्जी, मायावती या किसी और क्षेत्रीय नेता को मौका मिल सकता है?
आने वाले दिनों में इन अहम सवालों से कन्नी काटने के बजाए कांग्रेस पार्टी इन्हें फ्रंटफुट पर खेलेगी और ये संदेश देने की कोशिश करेगी कि वो विपक्षी एकता के लिए लचीलापन अपनाने को तैयार है.
BJP को ‘जगह दिखा देंगे’
क्विंट से बातचीत में राहुल गांधी के करीबी एक सूत्र ने कहा
परिवारवाद के आरोप संघ और बीजेपी की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है वरना 10 साल प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह या पांच साल इसी पद पर रहे नरसिंह राव कब गांधी परिवार का हिस्सा थे?
कांग्रेस पार्टी के एक हाई लेवल सूत्र के मुताबिक राहुल गांधी का 2019 में नरेंद्र मोदी को दोबारा पीएम की कुर्सी पर ना बैठने देने का दावा हवा-हवाई नहीं बल्कि चुनावी जोड़-घटाने पर आधारित है.
राहुल गांधी के करीबी इस नेता के मुताबिक
2014 में यूपी और बिहार की 120 लोकसभा सीट में से बीजेपी को 93 सीटें मिलीं. लेकिन कांग्रेस का यूपी में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और बिहार में लालू यादव के आरजेडी से गठबंधन हो गया तो बीजेपी को 10 से ज्यादा सीट नहीं मिलेंगीं. इसके अलावा कांग्रेस से सीधे मुकाबले वाले महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों की 113 में से 85 सीट बीजेपी को मिली थी. लेकिन 2019 में कांग्रेस बीजेपी को ‘जगह दिखा देगी’.
कांग्रेस का दावा है कि और इन 6 राज्यों में लगे झटके से बीजेपी उबर नहीं पाएगी.
सवाल
लेकिन सवाल ये है कि जिस गठबंधन के भरोसे कांग्रेस ‘जंग जीतने’ का दावा कर रही है वो गठबंधन होगा कब? क्योंकि गठबंधन के बाद कार्यकर्ताओं की लामबंदी और उन्हें ऐसी पार्टियों के साथ काम करने के लिए समझाना भी बड़ा काम होगा जो अब तक कांग्रेस की विरोधी रही हैं.
‘मोदी नहीं बनेंगे पीएम’
कांग्रेस के इस हाई लेवल सूत्र के मुताबिक राहुल गांधी मानते हैं:
अगर बीजेपी को कम से कम 240 सीट ना मिली तो नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे. शिवसेना जैसे उनके सहयोगी ही उनके खिलाफ झंडा उठा लेंगे.
2014 में बीजेपी ने लोकसभा की 282 सीट जीतकर अकेले दम पर ही बहुमत हासिल कर लिया था.
‘DMK से गठबंधन पक्का’
हिंदी पट्टी में बीजेपी से पंजा लड़ाने के अलावा कांग्रेस दक्षिण के पेंच भी कस रही है. राहुल के करीबी एक सूत्र के मुताबिक तमिलनाडु में कांग्रेस और डीएमके के गठबंधन पर हीला-हवाली खत्म हो चुकी है. अब ये गठबंधन हर हाल में होना तय है.
इस सूत्र के मुताबिक राहुल गांधी का मानना है:
तमिलनाडु में कमल खिलाने की योजना बना रही बीजेपी वहां पैर तो क्या अंगूठा तक नहीं रख पाएगी.
‘नया नहीं है गठबंधन’
बीजेपी अक्सर विपक्षी के संभावित गठबंधन पर ये कहते हुए सवाल उठाती है कि ये मजबूरी का साथ है जो ज्यादा नहीं चल सकता. लेकिन राहुल गांधी के नजदीकी सूत्रों के मुताबिक
डीएमके, शिबु सोरेन की जेएमएम, लालू यादव की आरजेडी या शरद पवार की एनसीपी जैसी पार्टियां तो पहले भी कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए का हिस्सा रही हैं. सिर्फ यूपी में अखिलेश और मायावती का एक साथ आना नई बात है. ऐसे में महागठबंधन के खिलाफ जो हवा बनाई जा रही है वो गलत है.
सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी मानते हैं कि क्षेत्रीय पार्टियां विचारधारा के स्तर पर कांग्रेस पार्टी के साथ हैं और ये सब मिलकर बीजेपी को 2019 में सत्ता में नहीं लौटने देंगीं.
2019 बीजेपी के लिए इंडिया शाइनिंग पार्ट-2 साबित होगा.
रहा सवाल प्रधानमंत्री का तो वो चुनाव के बाद पार्टियों के प्रदर्शन के आधार पर तय होगा.
‘संगठन का सही इस्तेमाल नहीं’
कांग्रेस पार्टी ये तो दोहराती रहती है कि लोगों में बीजेपी के खिलाफ गुस्सा है लेकिन उसके पास इसका जवाब नहीं दिखता कि वो बीजेपी की विशाल चुनावी मशीनरी और वोटर को बूथ तक लाने के जज्बे का मुकाबला कैसे करेगी? कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक
राहुल गांधी मानते हैं कि कांग्रेस के पास देशभर में बड़ा संगठन है लेकिन पार्टी उसका ‘सिस्टेमैटिक’ इस्तेमाल पिछले कई सालों से नहीं कर पाई. लेकिन सुधार की कोशिश लगातार की जा रही है और गुजरात जैसे राज्यों में इसका असर देखने को मिला भी है.
कांग्रेस अध्यक्ष ये भी मानते हैं:
बीजेपी की ‘अपराजेय’ छवि झूठी है. इसे संघ के संगठन और पीएम नरेंद्र मोदी की प्रचार क्षमता के जरिए बनाया गया है. लेकिन गुजरात में करीबी मुकाबले और कर्नाटक में बीजेपी को सत्ता से बाहर रखकर कांग्रेस ये साबित कर चुकी है कि उसे हराना असंभव नहीं है.
बुजुर्गों-युवाओं का तालमेल
हाल में गठित कांग्रेस वर्किंग कमेटी में बुजुर्ग नेताओं को शामिल किए जाने के बाद राहुल गांधी पर सवाल उठे थे कि वो ‘मठाधीशों’ को हटाकर युवाओं के लिए जगह नहीं बना पाए. लेकिन सूत्रों के मुताबिक राहुल को इस बारे में कोई भ्रम नहीं है. राहुल के एक बेहद करीबी नेता के मुताबिक वो कहते हैं:
मैं नरेंद्र मोदी नहीं हूं जो बुजुर्गों को बाहर कर दूं. एके एंटनी, मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम जैसे नेताओं की पार्टी को जरूरत है. युवाओं का उत्साह और बुजुर्गों का तजुर्बा मिलकर इस्तेमाल होना चाहिए. बीजेपी ने जो बर्ताव आडवाणी और जसवंत सिंह जैसे नेताओं के साथ किया है वो दुखद है.
‘पप्पू’ इमेज से बेफिक्र
अपनी इमेज पर होने वाले लगातार हमले से राहुल गांधी फिक्रमंद नहीं हैं. उनके एक करीबी के मुताबिक राहुल कहते हैं
बीजेपी और संघ मेरी छवि बिगाड़ने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करते हैं लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता. वो मेरी दादी (इंदिरा गांधी) को भी ‘गूंगी गुड़िया’ कहते थे.
आखिर में...
राहुल गांधी के करीबी सूत्रों के मुताबिक प्रोपेगेंडा में बीजेपी का कोई मुकाबला नहीं है. कांग्रेस सीखने की कोशिश कर रही है और जल्द ही वो इस मोर्चे पर भी बीजेपी से टक्कर लेगी.
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