महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजनीति में मुंबईया यानी बॉलीवुड की फिल्मों वाली अदा है. हर सीन में यहां भी कहानी बदल रही है. जैसे फिल्मों में हीरो-हीरोइन मिलते हैं, रोमांटिक गाना चलता है ठीक उसी तरह उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray), एनसीपी और कांग्रेस मिले तो सब सुहाना-सुहाना दिखा. तब ही फिल्म में एकनाथ शिंदे की एंट्री होती है, विधायकों का एक्शन, देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) का सस्पेंस आता है. उद्धव ठाकरे को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ता है, शिवसेना (Shivsena) बिखर रही है. सब हो रहा है, लेकिन फिल्म के दो सपोर्टिंग एक्टर मूकदर्शक बने हुए हैं. शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस.
उद्धव ठाकरे और बीजेपी की लड़ाई की वजह से कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 'किस्मत' से सत्ता में वापसी का मौका मिला था. लेकिन अब सरकार गिर चुकी है. महाविकास अघाड़ी गठबंधन साथ होकर भी कमजोर है. कांग्रेस-NCP फिर से सत्ता से बेदखल हो चुकी हैं. लेकिन इन सबके बीच एक बड़ा सवाल है कि कांग्रेस और एनसीपी के लिए आगे का रास्ता क्या है? विधानसभा में विपक्ष की कुर्सी पर बैठने के अलावा कांग्रेस-NCP का क्या होगा?
कांग्रेस की मुश्किलें
कहा जा रहा है कि उद्धव ठाकरे अपने ही विधायकों की असहमति और असंतोष की आवाज को भांपने में फेल हो गए, लेकिन जरा सोचिए कांंग्रेस का हाल. बैठे-बिठाए सत्ता में हिस्सेदारी मिली और बैठे-बिठाए सत्ता चली भी गई. महाविकास अघाड़ी की सरकार गिरने से कांग्रेस पार्टी को सबसे बड़ा झटका लगा है.
कमजोर हो रही कांग्रेस ने अपने ठीक उलट विचारधारा से हाथ मिलाकर सत्ता में वापसी की थी, पार्टी को जैसे कोई संजीवनीबूटी मिल गई हो. लेकिन अब एक बार फिर मुश्किल सामने है.
पार्टी में अंदरूनी लड़ाई
दरअसल, कांग्रेस राजस्थान, पंजाब, मध्यप्रदेश की तरह महाराष्ट्र में भी अंदरूनी कलह से जूझ रही है. पृथ्वीराज चौहान गुट, संजय निरुपम Vs मिलिंद देवरा देवरा, महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) के प्रमुख नाना पटोले Vs पूर्व ऊर्जा मंत्री नितिन राउत. ऐसे में कांग्रेस के लिए सबसे मुश्किल काम है इन सबको सत्ता से बाहर रहने के बाद समेट कर आगे बढ़ना.
कांग्रेस के विधायकों के टूटने का डर
वहीं कांग्रेस के लिए एक सबसे बड़ा डर है इसके विधायकों का टूटना. क्योंकि अभी महाराष्ट्र में जोड़तोड़ जारी है, तो दूसरी पार्टियां कांग्रेसी विधायकों को तोड़ने की कोशिश कर सकती हैं. वैसे भी विधान परिषद (MLC) चुनावों में कई विधायकों के क्रॉस वोटिंग की खबर सामने आई थी.
शरद पवार का दांव पड़ा कमजोर
शिवसेना के बागी विधायकों ने आरोप लगाया था कि महाविकास अघाड़ी में सबसे ज्यादा विकास एनसीपी और कांग्रेस का हुआ है. और अब सत्ता से बाहर जाने के बाद भी देखें तो शरद पवार की पार्टी एनसीपी बेहतर स्थिति में है. लेकिन जब शिवसेना में फूट पड़ रही थी तब शरद पवार ने पहले ही कह दिया था कि हम विपक्ष में बैठने को तैयार हैं.
वहीं अगर थोड़ा पीछे जाएं तो समझ आता है कि एनसीपी क्यों बेहतर हालत में है. जब साल 2019 में बीजेपी के साथ एक दिन के लिए सरकार बनाने का मौका मिला तब भी शरद पवार के भतीजे अजित पवार डिप्टी सीएम बने थे, जब एमवीए की सरकार बनी तब भी अजित पवार डिप्टी सीएम बने. एनसीपी भले ही आज महाविकास अघाड़ी के साथ का दावा करे लेकिन उसके पास बीजेपी के साथ जाने के ऑप्शन भी खुले हुए हैं.
हालांकि मौजूदा समय में एनसीपी के दो बड़े नेता अलग-अलग मामलों में जेल में हैं, नवाब मलिक और अनिल देशमुख. ऐसे में एनसीपी के लिए राजनीतिक मुश्किल सामने है.
इधर, महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन क्या हुआ, उधर एनसीपी प्रमुख शरद पवार को 2004/2009/2014 और 2020 के चुनावी हलफनामों के लिए आयकर नोटिस मिल गया है.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)