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गूगल ने बिहार चुनाव कवरेज की बजा दी थी बैंड लेकिन चाय ने बचा लिया

बिहार डायरी: गूगल ने द क्विंट के संवाददाता आकाश जोशी को भटकाया लेकिन चाय ने उन्हें वापस सही रास्ते पर पहुंचा दिया.

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सुबह के पांच बजे हैं और पूर्णियां की गलियां अभी सुनसान हैं. मुझे पड़ोस के जिले कटिहार के कडवा ब्लॉक तक जाना है. दूरी ज्यादा नहीं बस 26 किलोमाटर की ही है.

यह कडवा के कॉंग्रेस उम्मीदवार शकील अहमद खान तक पहुच पाने का आखिरी मौका था. #बिहारमोबाइल2015 प्लान की अकेली कॉंग्रेस स्टोरी थी, इसके बिना मेरी चुनाव कवरेज अधूरी रह जाती.

मेरा ड्राइवर राजू भी रास्ते से उतना ही अनजान है जितना कि मैं. वो मुझे गूगल मैप इस्तेमाल करने की सलाह देता है. लेकिन बिहार के इस इलाके में, जहां स्थानीय लोग रास्ता नहीं बता पा रहे वहां गूगल क्या कर पाता? होटल के कर्मचारियों तक को कडवा का रास्ता नहीं पता था.

बिहार डायरी: गूगल ने द क्विंट के संवाददाता आकाश जोशी को भटकाया लेकिन चाय ने उन्हें  वापस सही रास्ते पर पहुंचा दिया.
गूगल मैप का स्क्रीनग्रैब.

आमतौर पर गूगल को सब पता होता है! यहां तक कि दिशा-निर्देश देने वाली आवाज के बोलने का लहजा भी भारतीय है.

लेकिन हमें रास्ता दिखाने की बजाए गूगल ने हमें भटका दिया. और जब तक हमें इस बात का अहसास हुआ, हम रास्ते से 30 किमी भटक चुके थे. सात बजने के बाद तो दोबारा कोशिश करने का भी कोई मतलब नहीं था. गूगल को कोसने और एक प्याला चाय पीने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं था.

मेरे चेहरे पर झलकती थकान और निराशा को पहचानकर सड़क पर खड़े धीरेंद्र पाठक और भोला पोद्दार ने मुझसे पूछा कि क्या मैं एक पत्रकार हूं?

उसके बाद तो मेरी हां का इंतजार किए बिना ही वे मुझे बताने लगे कि क्यों ओर कैसे कडवा सीट से बीजेपी जीतने वाली है और क्यों महागठबंधन का कोई चांस नहीं है.

बिहार डायरी: गूगल ने द क्विंट के संवाददाता आकाश जोशी को भटकाया लेकिन चाय ने उन्हें  वापस सही रास्ते पर पहुंचा दिया.
धीरेंद्र पाठक और भोला पोद्दार (फोटो: क्विंट)
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हर चुनाव एक अलग मु्द्दे पर लड़ा जाता है. कोई जाति पर लड़ा जाता है कोई धर्म पर. इस बार का चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा गया है. और विकास पुरुष मोदी ही बिहार को बचा सकते हैं.

-भोला पोद्दार, किसान एवं बीजेपी समर्थक, कडवा, कटिहार

पर क्या इलाके में मुस्लिम बहुलता के चलते मोदी का चांस कम नहीं होगा? भोला के पड़ोसी और राजनीतिक साथी धीरेंद्र पाठक ऐसी किसी संभावना से इनकार करते हैं.

यहां मुस्लिम वोट किसी एक को नहीं जाता. एनसीपी वोट बांट देगी और हम (बीजेपी) जीत जाएंगे. बीजेपी की वजह से ही बिहार में विकास हुआ था. लालू के साथ मिलकर नीतीश जंगलराज ले आएंगे.

-धीरेंद्र कुमार पाठक

इससे पहले कि मैं चाय पर वापस लौटकर धीरेंद्र और भोला की बात पर सोच सकूं, अचानक बासी देशी शराब की गंध आती है. नयन दास तेजी से हमारी ओर आते हैं, इनके बारे में बाद में पता चलता है कि वो धीरेंद्र कुमार की जमीन पर बंटाई में खेती करते है.

नीतीश ने कुछ नहीं किया ? कैसे कह सकते हो ? नयन तेज आवाज में पूछते हैं. नए चेहरों की मौजूदगी और सुबह के हलके नशे ने उन्हें इतनी हिम्मत दे दी थी कि वह अपने दिल की बात अपने ‘ब़ॉस’ के सामने बोल सकें.

बिहार डायरी: गूगल ने द क्विंट के संवाददाता आकाश जोशी को भटकाया लेकिन चाय ने उन्हें  वापस सही रास्ते पर पहुंचा दिया.
नीतीश ने कुछ नहीं किया ? कैसे कह सकते हो ? नैन दास (दाएं) पूछते हैं. (फोटो: क्विंट)

नीतीश गरीबों का नेता है. हमारे गांव के अमीरों ( धीरेंद्र की तरफ इशारा करते हुए) को वह नहीं पसंद. पर गरीब हमेशा अमीरों से ज्यादा होते हैं. नीतीश ने हमारे बच्चों को साइकिल, लड़कियों को शिक्षा, और सभी को पेंशन दी है. हम उसके साथ हैं.

- नयन दास, किसान

एक तरफ नयन दास के दोस्त उन्हें शांत कराने की कोशिश करते हैं, वहीं धीरेंद्र की पत्नी ललिता देवी अपने पति के बचाव के लिए आ पहुंचती हैं.

नीतीश का एजेंडा विकास नहीं, सत्ता है. वह अपने फायदे के लिए लालू और कांग्रेस के साथ मिल गया. वह जीतता है, तो हम सुरक्षित नहीं होंगे. हमने लालू के खिलाफ मतदान किया था, अब नीतीश के खिलाफ वोट देंगे.

- ललिता देवी पाठक

बिहार डायरी: गूगल ने द क्विंट के संवाददाता आकाश जोशी को भटकाया लेकिन चाय ने उन्हें  वापस सही रास्ते पर पहुंचा दिया.
‘नीतीश का एजेंडा विकास नहीं, सत्ता है,’ कहती हैं ललिता देवी पाठक. (फोटो: क्विंट)

यह मेरी अब तक की सुनी नीतीश की सबसे साफ आलोचना थी और शायद सीमांचल क्षेत्र में ध्रुवीकरण का संकेत भी. लेकिन ध्रुवीकरण एक आसान शब्द है, जो हमें चुनावी जटिलता से दूर ले जाता है.

यह एक बातचीत का एक छोटा सा हिस्सा था, लेकिन इससे साफ होता है कि हम चुनावों के बारे में जितनी बात कर रहे हैं, वो उससे कहीं आगे की चीज है.

और हां, ललिता ने मुझे यह भी बताया कि कांग्रेस के उम्मीदवार शकील अहमद कहां प्रचार कर रहे है. मुझे इंटरव्यू भी मिल गया.

इस तरह गूगल की सारी कोशिशों के बावजूद, एक चाय ने मेरा दिन बचा लिया.

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