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गुजरात: विजय रूपाणी कुर्सी बचा पाएंगे? या इनमें से कोई बनेगा CM

केंद्रीय मंत्री समेत गुजरात के कुछ बड़े नेताओं का नाम रेस में!

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गुजरात चुनाव के नतीजे आने के बाद अब मुख्यमंत्री के नाम पर अटकलें शुरू हो गई हैं. जानकार इस बात के कयास लगाने में जुटे हुए हैं कि बीजेपी को 'मनचाही जीत' नहीं मिलने पर क्या विजय रूपाणी मुख्यमंत्री के पद पर बने रहेंगे या कोई दूसरा उनकी जगह लेगा.

रूपाणी ने राजकोट वेस्ट से चुनाव लड़ा था, इस सीट पर RSS की पकड़ मजबूत हो जाने के बाद भी रूपाणी को कांग्रेस उम्मीदवार इंद्रनील राज्यगुरु ने कड़ी टक्कर दी थी. शुरुआती काउंटिंग में वो पीछे चल रहे थे, बाद में उन्होंने जीत हासिल कर ही ली.

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रेस में कई नाम चल रहे हैं...

माना जा रहा है कि बीजेपी इस बार राज्य का नेतृत्व किसी और को सौंप सकती है. सबसे पहले नाम डिप्टी सीएम नितिन पटेल का आ रहा है. जो रूपाणी के सीएम बनने के वक्त यानी 2016 में भी इस पद के रेस में थे. लेकिन इस पटेल समुदाय के नेता की जगह रुपाणी को अहमियत दी गई.

रूपाणी कैसे बने थे सीएम

राज्य में साल 2015 के दौरान पाटीदार आंदोलन चरम पर था. इसके बाद कई लोकल लेवल के चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा. ऐसे में आनंदीबेन पटेल को हटाकर रुपाणी को बीजेपी ने सीएम का पद दिया. उस वक्त सियासी पंडित ये मान रहे थे कि राज्य में पटेल आंदोलन को देखते हुए नितिन पटेल को सीएम बनाया जा सकता है, लेकिन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के करीबी माने जाने वाले रूपाणी ने गद्दी हासिल की और नितिन पटेल बनाए गए डिप्टी सीएम.

बता दें कि रूपाणी जैन-बनिया समुदाय से आते हैं, ये समुदाय गुजरात की आबादी में 5 फीसदी ही है. ऐसे में ये भी रूपाणी के सीएम बनने के बाद ये भी संदेश गया कि पार्टी 'जाति-निरपेक्ष' आधार पर सीएम का चुनाव किया है.

जानते हैं वो नाम जिन पर चर्चा गरम है-

नितिन भाई पटेल

नितिन भाई पटेल साल 1995 से ही सियासी तौर पर सक्रिय हैं. राजनीति से अलग नितिन एक सफल कारोबारी भी हैं. ऐसे में 'विकास-राजनीति' दोनों काम एक साथ करने में माहिर माने जाते हैं.

नितिन भाई पटेल ने कई बार खुले में मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं. नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के वक्त यानी साल 2014 में भी उनके नाम पर चर्चा थी लेकिन मौका आनंदीबेन पटेल को मिल गया. वहीं आनंदीबेन के इस्तीफे के बाद भी वो रेस में सबसे आगे थे, लेकिन गद्दी विजय रूपाणी को हासिल हुई.

पटेल समुदाय से आने वाले नितिन पटेल के नाम पर इस बार भी अटकलें लग रही हैं. आरक्षण की मांग करने वाले इस समुदाय के नेता को मुख्यमंत्री बनाकर पटेलों की नाराजगी को कुछ हद तक दूर करने का जुगाड़ बीजेपी कर सकती है.
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अमित शाह

बीजेपी के 'चाणक्य' कहे जाने वाले अमित शाह, पीएम मोदी के सबसे करीबी नेता हैं. फिलहाल, पूरे देश में पार्टी को चुनाव जीताने और मजबूत करने का जिम्मा अमित शाह ने खुद अपने कंधों पर लिया है. बतौर बीजेपी अध्यक्ष वो अधिकतर मौकों पर कामयाब होते भी दिख रहे हैं.

ऐसे में अगर उन्हें गुजरात का सीएम बनाया जाता है तो ये पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या पीएम मोदी, शाह को अपने साथ केंद्र की राजनीति में रखना चाहते हैं या उन्हें अपने गृहराज्य में वापस भेजना चाहते हैं.

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जीतू वघानी

जीतू वघानी को भी सीएम पद की रेस में बताया जा रहा है. जीतू ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत ही भावनगर (वेस्ट) सीट से साल 2007 में हार के की थी. लेकिन साल 2012 के चुनाव में उन्होंने बंपर मार्जिन के साथ इसी सीट से विधानसभा में एंट्री की थी.

इस बार भी जीतू अपनी सीट बचाए रखने में कामयाब रहे. साल 2016 में जब विजय रूपाणी सीएम बनें तो उनकी जगह गुजरात में बीजेपी की कमान जीतू वघानी को ही सौंपी गई.

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कुछ और भी नाम हैं...

कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और मनसुख मंडाविया का नाम भी मुख्यमंत्री पद के लिए लिया जा रहा है. सूत्रों के हवाले से इंडिया टुडे की रिपोर्ट में कहा गया है कि स्मृति ईरानी इस पद के लिए बीजेपी की पसंद हो सकती हैं. क्योंकि ईरानी धाराप्रवाह गुजराती में बात करती हैं, साथ ही पीएम मोदी के साथ उनके बेहद अच्छे समीकरण हैं. साथ ही ईरानी, अपनी रैलियों में भीड़ खिंचने के लिए भी जानी जाती हैं. हालांकि, ईरानी ने इस रिपोर्ट को खारिज किया है.

वहीं मनसुख, सौराष्ट्र के पाटीदार समुदाय से आते हैं. ये वही इलाका है जहां कांग्रेस ने बीजेपी से काफी बेहतर प्रदर्शन किया है. किसानों के बीच मनसुख की अच्छी पैठ है. नतीजों के बाद ये साफ है कि ग्रामीण इलाकों में बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा है, ऐसे में उन्हें सीएम बनाकर किसानों और ग्रामीण इलाकों के बीच पैठ बनाने की पहल बीजेपी कर सकती है.

कौन लेगा अंतिम फैसला?

अटकलों से अलग, मुख्यमंत्री कौन होगा इसका फैसला वित्त मंत्री अरुण जेटली और बीजेपी महासचिव सरोज पांडेय को करना है, इन दोनों को राज्य में सीएम पद के चुनाव के लिए ऑब्जर्वर बनाया गया है. पार्टी सूत्र ये दावा कर रहे हैं कि रूपाणी को पद से नहीं हटाया जाएगा, क्योंकि चुनाव उनके ही नेतृत्व में लड़ा गया है.

18 दिसंबर को हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में विजय रूपाणी ने कहा था कि चुनावों के दौरान पार्टी का चेहरा वही थे. हालांकि, उन्होंने ये भी कहा था कि पार्टी की मीटिंग के बाद ही तय होगा कि उन्हें या किसी और विधायक को मंत्री बनाना है.

क्विंट से बातचीत में बीजेपी के प्रवक्ता यमल व्यास ने कहा-

हां...राज्य में इसको लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं, लेकिन मैं कोई भी ऐसा कारण नहीं देख रहा हूं जिसे देखकर ये कहा जाए कि मुख्यमंत्री बदले जाएंगे. उन्होंने कड़ी टक्कर देते हुए ये जीत हासिल की है.

तमाम अटकलों और दावों के बीच अब देखना है कि विजय रूपाणी की कुर्सी बच पाती है या कोई और संभालेगा गुजरात की कमान.

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