4 अक्टूबर 2014 को हरियाणा के करनाल शहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रचार रैली की तो हर कोई हैरान रह गया. ये उसी महीने होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए पीएम की पहली चुनाव रैली थी और उसके लिए उन्होंने ऐसे इलाके को चुना जिसके प्रत्याशी को कोई जानता भी नहीं था. वो प्रत्याशी था- मनोहर लाल खट्टर. संघ का पुराना प्रचारक जो अपना पहला चुनाव लड़ रहा था.
नतीजे आए.. बीजेपी ने सूबे की 90 में से 47 सीट जीतीं. बीजेपी का बहुमत में आना तो हैरानी की बात थी ही लेकिन उससे भी बड़ी बात ये थी कि मुख्यमंत्री बनाया गया मनोहर लाल खट्टर को. साल 1977 में संघ से जुड़े खट्टर बीजेपी में 1994 में शामिल हुए थे लेकिन उन्हें एक्टिव पॉलिटिक्स या प्रशासन का कोई तजुर्बा नहीं था.
जिस राज्य की राजनीति में जाट समुदाय का वर्चस्व है वहां एक पंजाबी को सीएम बनाना भी बड़ी हैरानी की बात थी. लेकिन ये पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का स्टाइल है लिहाजा कोई उस पर उंगली उठाने की हालत में था नहीं.
पांच साल बाद यानी साल 2019 के विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने पहली लिस्ट जारी की है. मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर कोई घोषणा नहीं है लेकिन इसमें किसी को कोई शक नहीं कि बीजेपी के सीएम उम्मीदवार खट्टर ही हैं.
लंबे वक्त तक कहावत रही- हरियाणा तेरे तीन लाल, बंसी, देवी, भजन लाल. लेकिन अब मनोहर लाल को हरियाणा का चौथा लाल कहा जा रहा है. खट्टर ने पिछला चुनाव करीब 64 हजार वोट के अंतर से जीता था. इस बार पार्टी कार्यकर्ता उन्हें एक लाख से ज्यादा वोट से जिताने का दावा कर रहे हैं.
आसान नहीं था सफर
खट्टर के लिए सीएम की कुर्सी पर बैठना भले आसान रहा हो, लेकिन प्रशासन का सफर आसान नहीं था. फरवरी 2016 में हरियाणा के जाट समुदाय ने जबरदस्त आंदोलन किया. वो आरक्षण के लिए ओबीसी में शामिल होने की मांग कर रहे थे. 10 दिन के लिए राज्य की कानून-व्यवस्था घुटनों पर आ गई. लगा कि महज 14 महीनों में ही खट्टर को कुर्सी छोड़नी पड़ेगी. लेकिन पीएम मोदी ये नजदीकियां कहिए या पार्टी का यकीन, खट्टर बने रहे.
राम रहीम की गिरफ्तारी
25 अगस्त 2017 को पंचकुला की सीबीआई कोर्ट ने डेरा सच्चा सौदा के स्वंयभू बाबा राम रहीम को बलात्कार के मामले में सजा सुनाई. राज्य में हिंसा भड़क उठी. डेरा समर्थकों ने कोहराम मचा दिया. करीब 38 लोगों की मौत हुई. सैंकड़ों लोग घायल हुए और सैंकड़ों डेरा समर्थकों को हिरासत में लिया गया.
एक बार फिर लगा कि राम रहीम की गिरफ्तारी खट्टर की कुर्सी की बलि लेगी. लेकिन तमाम हिंसा के बावजूद गिरफ्तारी को कामयाबी से अंजाम देने के लिए उसे खट्टर की कामयाबी के तौर पर देखा गया. और, वो बने रहे.
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर
1 नवंबर 1966 को हरियाणा के गठन के बाद मुख्यमंत्री के शहर को खास तवज्जो मिलती रही. चौधरी बंसी लाल मुख्यमंत्री थे, उनके जिले भिवानी का जमकर विकास हुआ. इसके बाद चौधरी भजन लाल और ताऊ देवी लाल की सत्ता में उनके जिलों हिसार और सिरसा ने खूब तरक्की की. साल 2005 से 2014 तक कांग्रेस के सीएम भूपेंद्र सिंह हुडा के वक्त रोहतक का ऐसा विकास हुआ कि लोग रश्क करते थे.
लेकिन मनोहर लाल खट्टर ने अपने जिले करनाल को कोई तवज्जो नहीं दी. इस ‘ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर’ की छवि ने एक प्रशासक के तौर पर उन्हें और मजबूत किया.
विरोधियों की सिरफुटव्वल
इन सब के अलावा हरियाणा में चौटालाओं की पार्टी आईएनएलडी में टूट और कांग्रेस पार्टी की फूट भी बीजेपी के लिए ‘बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा’ जैसी रही. इन पार्टियों में मची उठापटक ने लगातार बीजेपी को मजबूत बनाने का काम किया.
कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता और दो बार के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुडा को बागी तेवरों के बाद पार्टी ने विधायक दल का नेता बनाया गया है. चुनाव की दहलीज पर कांग्रेस ने अशोक तंवर की जगह कुमारी शैलजा को लाकर अपना प्रदेश अध्यक्ष भी बदला है.
देवी लाल परिवार में दो-फाड़ के बाद उनके परिवार की युवा पीढ़ी की जननायक जनता पार्टी इसी साल हुए जींद उपचुनाव में दूसरे नंबर पर रही. लेकिन उसके बाद से दो युवा चौटालाओं की ये पार्टी कोई खास असर नहीं छोड़ पाई है. ओमप्रकाश चौटाला की आईएनएलडी के हालिया प्रदर्शन खराब रहे हैं.
90 सीट की विधानसभा वाले हरियाणा में बीजेपी ने ‘75 पार’ का लक्ष्य रखा है. ऐसे में लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र के साथ हो रहा ये पहला चुनाव आने वाले दिनों का बड़ा राजनीतिक संदेश देगा.
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