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कमलनाथ का तख्तापलट कैसे हुआ? कहानी सिंधिया से भी पुरानी है

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के 23 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था

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मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार गिर चुकी है. शक्ति परीक्षण होने से पहले ही कमलनाथ ने बतौर मुख्यमंत्री इस्तीफा दे दिया. अब राज्य में दोबारा बीजेपी सरकार के लिए रास्ता साफ हो चुका है और लग रहा है कि शिवराज सिंह चौहान दोबारा गद्दी पर बैठने जा रहे हैं.

लेकिन सवाल यह है कि कमलनाथ का तख्ता आखिर कैसे पलटा?

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जाहिर है, उनके खिलाफ आखिरी वार था ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत. उन्होंने 10 मार्च को कांग्रेस से इस्तीफा दिया और अगले ही दिन बीजेपी में शामिल हो गये. कांग्रेस के 22 विधायक, जिनमें से ज्यादतर सिंधिया के वफादर हैं, पहले ही इस्तीफा दे चुके थे

मगर कहानी इससे कुछ पुरानी है.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस हमेशा से खेमेबाजी का शिकार रही है. अस्सी के दशक में अर्जुन सिंह और शुक्ला बन्धुओं के बीच लड़ाई रहती थी. नब्बे के दशक में तीन खेमे हुआ करते थे: एक अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह का खेमा, एक शुक्ला बन्धुओं का और तीसरा माधवराव सिंधिया का. इस दौरान छिन्दवाड़ा के सांसद कमलनाथ की पूरी तवज्जो केन्द्र की सियासत पर थी.

लेकिन जब उन्हें 2018 विधानसभा चुनाव के लिये प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए, तो कांग्रेस में तीन मुख्य खेमे हुए, जिनके नेता थे दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ .

सरकार बनने के बाद सिंधिया के समर्थकों का कहना है कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने मिलकर ज्योतिरादित्य को साइडलाइन कर दिया. उनका कहना है कि जब सिंधिया को राज्यसभा का उम्मीद्वार नहीं बनाया तो पानी सिर से ऊपर जा चुका था.

कुछ नाराजगी कमलनाथ के काम करने के तरीके से भी थी. बागी विधायकों का कहना है कि कमलनाथ उनके काम करने तो दूर, उनसे बात भी नहीं करते थे. लेकिन इन राज्य से जुड़े कारणों के अलावा, मध्य प्रदेश के तख्ता पलट के पीछे दो राष्ट्रीय स्तर के कारण भी हैं.

पहली वजह है, कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व का इतना कमजोर हो जाना कि वो कमलनाथ और सिंधिया के बीच सुलह नहीं करवा पाये.

और दूसरी वजह है बीजेपी की सत्ता हासिल करने की न खत्म होने वाली मुहिम. कोरोनावाइरस जैसी महामारी के बीच भी बीजेपी नेतृत्व ने मध्य प्रदेश में दाव पेच नहीं बन्द किये.

अब आगे क्या होगा ?

कमलनाथ के इस्तीफे के बाद, राज्यपाल लालजी टन्डन बीजेपी को सरकार बनाने का निमन्त्रण देंगे. नंबर फिलहाल बीजेपी के पक्ष में हैं लेकिन कर्नाटक की तरह मध्य प्रदेश में भी कुछ महीने बाद उपचुनाव होंगे.

अपनी सरकार बरकरार रखने के लिये बीजेपी को 23 में से कम से कम 8 सीटें जीतनी होंगी लेकिन बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती होगी कि वह टिकट कांग्रेस से आने वाले नेताओं को देती है या अपने पुराने वफादारों को.

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