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हमने पतंगों को जरा ढील क्या दे दी, खुद को फलक का खुदा समझ बैठे

क्या अपनी ही पार्टी में अखिलेश यादव आज भी सरकार चलाने के लिए पूरी आजादी न मिलने के कारण घुटन महसूस कर रहे हैं?

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उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के बीच के रिश्ते बिगड़ते जा रहे हैं.

मानो अखिलेश खुद से यह सवाल पूछ रहे हैं कि उत्तरप्रदेश में आखिर कितने मुख्यमंत्री हैं? वह सचमुच मुख्यमंत्री हैं या कठपुतली?

कहा तो ये जाता है कि उत्तर प्रदेश में कुल साढ़े 4 मुख्यमंत्री हैं

  • एक मुलायम सिंह यादव जिनके हाथ में रिमोट है.
  • दूसरे अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव.
  • तीसरे तीन चचेरे चाचा रामगोपाल यादव.
  • चौथे मुंहबोले चाचा आज़म खान.
  • और आधे खुद अखिलेश यादव, जिन्हें महज कठपुतली की तरह सब अपने-अपने ढंग से इस्तेमाल कर रहे हैं.
वैसे सच्चाई यह है कि सबके अपने-अपने सत्ता केंद्र हैं. और यहां बात आन की भी है.

लेकिन अखिलेश यादव ने पिछले कुछ मौकों पर अपनी संवैधानिक शक्ति का इस्तेमाल करते हुए पार्टी के बड़े नेताओं के फैसले पलट दिए हैं, जिस वजह से पार्टी के सभी बड़े नेताओं की त्यौरियां चढ़ी हुई हैं.

ताजा मामला है खतरनाक डॉन मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता मंच के समाजवादी पार्टी में विलय का. अखिलेश यादव इस फैसले से इतने नाराज हुए की अपने पिता के करीबी बलराम यादव को मंत्रिमंडल से बाहर निकाल दिया.

चाचा शिवपाल यादव झुंझलाए बैठे हैं और उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात की आधिकारिक पुष्टि कर दी कि मुलायम सिंह यादव की सहमति से विलय किया गया है.

परिवार में मचा है घमासान

इसके बाद यादव परिवार में शुरू हुआ घमासान और बलराम सिंह मंत्रिमंडल में वापस ले लिए गए. लेकिन ये घटना परिवार में खटास छोड़ गई. शिवपाल यादव रूठ कर कोप भवन में पड़े हैं और बाप बेटे के बीच रिश्ते में कड़वाहट बढ़ती जा रही है.

वैसे अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद ये कोई पहली घटना नहीं है. 2012 विधानसभा चुनाव में BSP से टिकट कटने के बाद कुख्यात नेता डी पी यादव को समाजवादी पार्टी में लगभग शामिल कर लिया गया था. मुलायम सिंह के इस फैसले को नकारते हुए अखिलेश ने इसका विरोध किया और नतीजा ये हुआ कि डी पी यादव को समाजवादी पार्टी में एंट्री नहीं मिल पाई.

मुलायम फैसले लेते वक्त अखिलेश को विश्वास में नहीं लेते, भले ही वो सीएम हैं

पिछले साल दिसंबर में अखिलेश के 2 करीबी नेता सुनील सिंह और आनंद भदौरिया को मुलायम सिंह यादव ने पार्टी के खिलाफ गतिविधि के आरोप में पार्टी से निकल दिया था. अखिलेश यादव ने तब भी अपनी नाराजगी खुलेआम जाहिर की थी और उनके खेमे में ये सुगबुगाहट थी कि मुलायम सिंह कई फैसलों में मुख्यमंत्री होने के बावजूद अखिलेश को विश्वास में लेते तक नहीं.

अखिलेश और उनकी पत्नी डिंपल यादव लखनऊ में होने के बावजूद सैफई महोत्सव के उद्घाटन समारोह में नहीं पहुंचे. खबर ये थी कि मुख्यमंत्री रूठे हुए हैं, इसलिए उन्होंने अपने पिता के जन्मस्थान में अठारह साल से होने वाले इस सालाना जलसे का जानबूझकर बहिष्कार किया.

कुछ दिन के बाद सुनील सिंह और आनंद भदौरिया को वापस पार्टी में शामिल कर लिया गया. खबर थी कि मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल यादव ने मुलायम सिंह यादव को मनाने में अहम भूमिका निभाई. और इसके बाद अखिलेश और उनकी पत्नि बाकायदा सैफई महोत्सव मे शमिल हुए.

जब कुंडा के डीएसपी ज़िया-उल-हक की हत्या में शक्तिशाली मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का नाम आया, तो अखिलेश ने उन्हें मंत्रिमंडल से निकाल बाहर किया. हालांकि सीबीआई से क्लीन चिट मिलने के बाद उन्हें कैबिनेट में शामिल कर लिया गया, लेकिन कद घटा दिया गया.

बाप बेटे के लाड़-प्यार के रिश्ते में वो बात नहीं रही

कई मौकों पर मुलायम सिंह यादव खुले मंच से अखिलेश को खुद का और अपने मंत्रियों का प्रदर्शन सुधारने की नसीहत दे चुके हैं. लेकिन इसे हमेशा बाप बेटे के बीच लाड़-प्यार के रिश्ते के तौर पर देखा जाता रहा है, लेकिन अब वो बात नहीं रही. कहा ये जा रहा है कि पानी सर से ऊपर जा चुका है.

उत्तर प्रदेश में 2012 में अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद से विपक्ष ने शोर मचाना शुरू कर दिया था कि समाजवादी पार्टी के कम से कम 5 मुख्यमंत्री हैं और बाप बेटे के रिश्ते में आई ताजा दरार से विपक्ष को इस मुद्दे को उछालने का मसाला मिल गया है.

रही बात अखिलेश की तो वह कई बार विद्रोही तेवर दिखा चुके हैं, जिससे इस बहस को बल मिलता है कि अखिलेश आज भी सरकार चलाने के लिए पूरी आज़ादी न मिलने के कारण घुट रहे हैं.

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