कर्नाटक (Karnataka) के पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार (Jagadish Shettar) ने बीजेपी से "निराश" होकर पार्टी छोड़ दी. इसके साथ ही, शेट्टार ने बीजेपी द्वारा टिकट काटे जाने के बाद विधायक पद से भी इस्तीफा दे दिया.
एक दिन बाद, जगदीश शेट्टार कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और अन्य वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति में पार्टी में शामिल हो गए. इसके बाद कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने हुबली-धारवाड़ सेंट्रल निर्वाचन क्षेत्र से नामांकन दाखिल करने के लिए शेट्टार को 'बी' फॉर्म दिया.
जगदीश शेट्टार को उत्तर कन्नड़ में बीजेपी का जनाधार बढ़ाने वाला नेता माना जाता है.
लक्ष्मण सावदी के बाद हाल के दिनों में इस्तीफा देने और कांग्रेस में शामिल होने वाले शेट्टार दूसरे सबसे बड़े लिंगायत थे. ऐसा क्यों हुआ? आने वाले चुनावों में बीजेपी पर इसका क्या असर होगा? हम जवाब देते हैं.
क्या लिंगायत नेताओं को दरकिनार किया जा रहा है?
द क्विंट से बात करते हुए, राजनीतिक सिद्धांतकार और मैसूर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर मुजफ्फर असदी ने कहा कि "बीजेपी के भीतर एक वर्चस्व की लड़ाई है" जिसके कारण शेट्टार को टिकट नहीं मिल सका.
यह कहते हुए कि बीजेपी को बनिया और ब्राह्मण नेताओं की पार्टी के रूप में जाना जाता है, असदी ने दो कारणों की ओर इशारा किया कि शेट्टार को टिकट क्यों नहीं दिया गया?
असदी ने कहा, "यह (शेट्टार को छोड़ने के लिए मजबूर किया जाना) लिंगायत समुदाय को बहुत गलत संकेत भेज सकता है. दो नेताओं (लक्ष्मण सावदी - जिन्होंने कांग्रेस में शामिल होने के लिए इस्तीफा दे दिया) को बहुत ही अनौपचारिक रूप से छोड़ने के लिए मजबूर किया गया और शीर्ष नेतृत्व के सामने झुकने के लिए मजबूर किया गया था. इससे लिंगायत अपमान महसूस कर रहा है."
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के राजनीतिक विश्लेषक ए नारायण ने भी कहा कि लिंगायत नेताओं को दरकिनार करने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने द क्विंट को बताया कि शेट्टार को चाहे जितना भी श्रेय दिया जाए, उन्होंने जननेता का कद हासिल नहीं किया है. तो, इस पाला बदलने (पार्टी बदलने से) के दो प्रतीकात्मक संदेश हैं:
बीजेपी भविष्य के लिंगायत नेताओं के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रही है-जो बीएस येदियुरप्पा की जगह लेने के लिए आगे आएंगे. यह लक्ष्मण सावदी हो सकते थे, यह शेट्टार हो सकते थे. इसका मतलब यह है कि बीजेपी की कुछ योजना है जो लिंगायत नेताओं को बढ़ावा देने या प्रोत्साहित करने के लिए नहीं है.
बीजेपी के अंदर सब ठीक नहीं है-पार्टी में भ्रम की स्थिति ज्यादा बनी हुई है.
लिंगायत परंपरागत रूप से 1990 के दशक के अंत से बीजेपी का समर्थन करते रहे हैं. बीजेपी अपने लिंगायत नेताओं के साथ अच्छा व्यवहार क्यों नहीं कर रही है?
BJP निश्चित रूप से एक नेता के माध्यम से लिंगायत समर्थन पर भरोसा करने से तंग आ चुकी है-जो अब तक बीएस येदियुरप्पा के माध्यम से होता है. वे पार्टी और समुदाय के बीच उस तरह की मध्यस्थता को तोड़ना चाहते हैं. दूसरी संभावना यह हो सकती है जो एचडी कुमारस्वामी कह रहे हैं- यह लिंगायत पर ब्राह्मणों के वर्चस्व को बनाए रखने के लिए है.ए नारायण,राजनीतिक विश्लेषक
BJP पर क्या होगा असर?
राजनीतिक विश्लेषक और जैन यूनिवर्सिटी के प्रो-वाइस चांसलर संदीप शास्त्री ने शेट्टार के कांग्रेस में जाने को बीजेपी के लिए एक "झटका" करार देते हुए द क्विंट से कहा, "यह कुछ ऐसा है जिसकी शायद बीजेपी को उम्मीद नहीं थी."
बीजेपी पर प्रभाव के संदर्भ में, शास्त्री ने कहा कि इस घटनाक्रम का दो स्तरों पर असर हैं:
जब कई सालों तक पार्टी का चेहरा रहा कोई व्यक्ति सत्ताधारी पार्टी को छोड़ देता है, तो ऐसा लगता है कि बीजेपी एक पूर्व सीएम और डिप्टी सीएम को छोड़कर चुनाव में जा रही है.
बीजेपी का हमेशा से मानना रहा है कि उसके लिए पार्टी का अनुशासन सबसे अहम है. उन्होंने यह प्रयोग (अनुशासन का) करने की कोशिश की और इसका स्पष्ट विरोध हुआ.
इस बीच, प्रोफेसर असदी ने कहा, "इसका कम से कम 20 सीटों पर प्रभाव पड़ेगा. पहले, उनके लिए 80 सीटों की भविष्यवाणी की गई थी (सी-वोटर ओपिनियन पोल के अनुसार), लेकिन अब यह (बीजेपी) 60 सीटों पर भी आ सकती है."
ध्यान देने वाली बात यह है कि बीएस येदियुरप्पा (एक मजबूत लिंगायत नेता), जिनके राज्य में बड़े पैमाने पर समर्थक हैं, ने हाल ही में चुनावी राजनीति से रिटायर होने की घोषणा की थी. हालांकि, उन्होंने कहा कि वह बीजेपी का समर्थन और प्रचार करना जारी रखेंगे.
इस बीच, उनके बेटे, बीवाई विजयेंद्र को आखिरकार विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए बीजेपी का टिकट मिल गया है. जबकि बीजेपी को उम्मीद है कि लिंगायत वोट पाने के लिए BSY का समर्थन पर्याप्त हो सकता है. हालांकि, इस पर राजनीतिक विश्लेषकों को संदेह है.
मोदी फैक्टर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पहले ही कर्नाटक का कई दौरा कर चुके हैं और वो 4 मई को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ उडुपी का दौरा करने वाले हैं.
शास्त्री ने द क्विंट से कहा, "मैं इस संभावना से इनकार नहीं करता कि बीजेपी इन घटनाक्रमों की भरपाई कर सकती है, क्योंकि उनकी चुनाव मशीन हमेशा तैयार रहती है." ऐसा प्रतीत होता है कि बीजेपी ने "डबल-इंजन सरकार" पर अपनी स्पष्ट निर्भरता कम कर दी है.
बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के नेतृत्व में अपने अभियान को आगे बढ़ा सकती हैं. लेकिन वे डबल-इंजन सरकार के साथ समान दृष्टिकोण नहीं ले सकते. क्योंकि यह एक इंजन है, जो दूसरे इंजन का नेतृत्व करता है -क्योंकि वे राज्य सरकार की उपलब्धियों के बारे में बहुत कम बात कर रहे हैं.संदीप शास्त्री, प्रो-वीसी, जैन यूनिवर्सिटी
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक ए नारायण का मानना है कि शेट्टार को अपने संघर्ष का सामना करना पड़ेगा. उन्होंने कहा, "चूंकि वह एक बड़े नेता नहीं हैं, इसलिए उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र में भी जीतने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है-जो उडुपी या मैंगलोर जैसा कट्टर हिंदुत्व निर्वाचन क्षेत्र है."
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