एक सदी से अधिक पुरानी राजनीतिक पार्टी में सबसे बड़े, राष्ट्रीय स्तर के अकेले नेता हैं राहुल गांधी (Rahul Gandhi). जयराम रमेश (Jairam Ramesh) भी इन दिनों कांग्रेस (Congress) पार्टी के बड़े नेता माने जाते हैं. लोग उन्हें सुनते हैं और यही मानते हैं कि जो वह कहते हैं उसमें आवाज और शब्द उनके, पर भावना कांग्रेस (Congress) पार्टी और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की होती है.
कन्हैया कांग्रेस में नंबर दो?
हाल ही में जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) को राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के बाद कांग्रेस (Congress) का सबसे लोकप्रिय नेता बता दिया. इतनी पुरानी पार्टी और इतने बुजुर्ग, तजुर्बेकार नेताओं के होते हुए अभी हाल ही में उभरे कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) को कांग्रेस (Congress) का दूसरा सबसे लोकप्रिय नेता बता कर उन्होंने खुद अपना भी अपमान किया, पार्टी के अन्य बुजुर्ग नेताओं और उभरते हुए नेताओं को भी आईना दिखा दिया. ये बता दिया कि वे अधिक काम के नहीं.
कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) ही सार्थक और उपयोगी बातें करते हैं. जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने ऐसा खुद से किया या आला कमान के कहने पर किया, ये एक ऐसा सवाल है जो दिमाग में कौंधता है.
दूसरी तरफ यह बयान कांग्रेस (Congress) की अंदरूनी दिक्कतें भी दिखाता है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) दशकों पुरानी परंपरा के वाहक हैं, नेहरु और इंदिरा गांधी की विरासत ले कर चल रहे हैं. पूरे देश में हजारों मीलों की पदयात्रा कर रहे हैं. क्या कांग्रेस में जयराम रमेश (Jairam Ramesh) को कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) के अलावा कोई दूसरा नेता नहीं दिखा जो कांग्रेस में राहुल (Rahul) के बाद दूसरे नंबर पर हो? इस वक्तव्य का गंभीर विश्लेषण जरूरी है. इसका तुरंत जवाब देना मुमकिन नहीं क्योंकि यह एक बहुत ही पुरानी व्याधि की तरफ इशारा कर रहा है जो गंभीर पड़ताल के बाद ही दिख पायेगी.
किलर इंस्टिंक्ट की जरूरत
राजनीति में किलर इंस्टिंक्ट का होना जरूरी है. यह गलियों में खेला जाने वाला गिल्ली डंडे का खेल नहीं. जो जीते उसके साथ ही हीही-हूहू करते हुए अपने अपने घर की तरफ रूख कर देना है. राजनीति के खेल में जो विजयी होते हैं वे बड़े पैमाने पर लोगों का भविष्य निर्धारित करते हैं. ऐसे में ये कहना कि हमें चुनावों में दिलचस्पी नहीं, भावनाओं में है, एक तरह का बचकाना वक्तव्य है और ऐसी सोच वाली नेताओं को पार्टी का नेतृत्व दे देना अदूरदर्शिता का उदाहरण ही प्रस्तुत करेगा. राजनीति एक हिसाबी-किताबी बंदे का काम है, जिसे अंग्रेजी में कोल्ड कैलकुलेटर कहते हैं. भावनाओं के आधार पर जीने का काम कवियों और नामुराद आशिकों का है. तितलियों और फूलों पर कवितायें लिखने वाले कवियों का है.
कांग्रेस (Congress) को इस तरह के नेताओं से सतर्क रहने की जरूरत है और गलती से यदि ये पार्टी के लोकप्रिय नेता बन भी गए हैं, तो उन्हें सियासत का बुनियादी सबक फिर से सिखाने की जरुरत है. देश एक विश्वविद्यालय नहीं जिसके दस्तूर देश पर लागू होते हैं, जहां भावनाएं उफनती हैं, और मतदाता उन्माद में, क्रांति की स्वनिर्मित धारणाओं में जकड़े हुए होते है. विश्वविद्यालय स्तर के नेता की जो कुशलता होती है, वह अलग किस्म की होती है. किसी खरगोश को काबू में कर लेने वाला बन्दा एक बाघ को भी काबू में कर लेगा, यह सोच गलत है. अलग माहौल में, अलग लोगों के बीच अपने तौर तरीके बदलना, उसे देश काल परिस्थितियों के हिसाब से एडजस्ट करना ही कुशल और सफल राजनीति का सार है.
सत्ता हासिल करना भी सियासत का मकसद
ये भूलना नहीं चाहिए कि राजनीति का मकसद सत्ता हासिल करना भी है और एक बार उसे हासिल करने के बाद उसे कायम रखना है. यदि कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) कांग्रेस और उसकी राजनीति को भी फिर से परिभाषित करना चाहते हैं और कांग्रेस (Congress) को यह स्वीकार्य है तो अलहदा मामला है. पर कांग्रेस पार्टी (Congress Party) एक एनजीओ नहीं, और न ही कोई समाज सेवी संस्था है. यह एक राजनीतिक पार्टी है, और इसका उद्देश्य सत्ता हथियाना भी है. यह संतों और सांसारिक मोह माया से विमुख किसी उदासीन संप्रदाय के लोगों का जमावड़ा नहीं. कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) के इस तरह के बयान लोगों को गुमराह कर सकते हैं. यह हास्यास्पद भी हैं. इस बयान में एक तरह की चतुर निराशा भी दिखती है और यह पार्टी की हार के समय काम आने वाला बयान है, पर अभी से ऐसा कहना राजनीतिक अपरिपक्वता की तरफ इशारा करता है.
पूरे जोश के साथ चुनावों में उतरे कांग्रेस:
कांग्रेस (Congress) ने हिमाचल प्रदेश में बढ़िया प्रदर्शन किया है. उसे पूरी तैयारी और जबरदस्त जोश के साथ अगले चुनावों में उतरना होगा. वोट और जीत के लिए. ये मानना कि लोगों की भावनाओं का स्पर्श कर लेना काफी है, और बाद में यही भावनात्मक जीत चुनावी विजय में परिवर्तित हो जाएगी, न ही तर्कसंगत है और न ही पर्याप्त है. 75 साल के लोकतंत्र ने लोगों को परिपक्व बना दिया है. कांग्रेस (Congress) में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने एक नई ऊर्जा का संचार किया है, और ऐसे में यह जरूरी है कि पार्टी के परिपक्व नेता एकजुट होकर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की मेहनत का सम्मान करें, मिल बैठ कर ऐसे फैसले करें जिनपर राहुल अपने व्यक्तित्व का उपयोग करते हुए अमल कर सकें. हार के भय से इस तरह के बयान न दें कि पार्टी चुनावों में नहीं भावनाओं में अधिक दिलचस्पी रखती है. ये जनता को गलत सन्देश देने वाले बयान हैं.
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