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कर्नाटक चुनाव: BJP-CONG के बीच JDS कहां खड़ी है, अस्तित्व की लड़ाई या किंगमेकर?

Karnataka Chunav: JD(S) 2006 और 2018 में BJP और कांग्रेस के साथ गठबंधन में रह चुकी है और सत्ता का स्वाद चख चुकी है

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कर्नाटक विधानसभा (Karnataka Assembly Elections 2023) का चुनावी बिगुल बज चुका है. 10 मई को मतदान और 13 मई को नतीजे घोषित किए जाएंगे. प्रदेश की सत्ता पर काबिज बीजेपी वापसी की राह देख रही है, तो सत्ता से बाहर कांग्रेस और JD (S) सत्ता पर काबिज होने की उम्मीद पाले बैठे हैं. मौजूदा वक्त में क्षेत्रीय पार्टियों का लगातार कम होता जनाधार JD(S) के लिए भी अच्छा संकेत नहीं है. हालांकि, दक्षिण में अभी भी क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा कायम है. तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश इसके अच्छा उदाहरण हैं. ऐसे में सवाल है कि क्या 2023 का कर्नाटक विधानसभा चुनाव पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाले JD(S) के लिए राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई होगा या एक बार फिर JD(S) किंग मेकर के रूप में उभरेगी? क्योंकि, पिछले कुछ चुनावों से इस बात की राजनीतिक गलियारों में चर्चा होती रही है और इसबार भी ऐसी ही चर्चा जारी है.

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ओपिनियन पोल क्या संकेत दे रहा?

कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 के चुनावी घोषणा के साथ ही सामने आए ओपिनियन पोल में भी JD(S) के लिए अच्छी खबर नहीं दिख रही. ABP-C Voter के ओपिनियन पोल के मुताबिक कांग्रेस की सत्ता में वापसी के संकेत मिल रहे हैं. BJP, दूसरे नंबर की पार्टी और JD(S) को तीसरे नंबर की पार्टी के रूप में दिखाया जा रहा है. दूर-दूर तक JD(S) को अकेले दम पर सरकार बनाने के संकेत नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में यही अनुमान लगाया जा रहा है कि कहीं कांग्रेस इधर-उधर होती है तो साल 2018 की तरह ही एक बार फिर से JD(S) किंगमेकर की भूमिका में हो सकती है.

JD(S) का साल 1999 में गठन हुआ था. जेडी(एस) अपने गठन के बाद से कभी भी अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई है. हां, ये जरूर है कि उसने दोनों राष्ट्रीय दलों कांग्रेस-बीजेपी के साथ अलग-अलग समय में गठबंधन कर सत्ता का स्वाद चखा है. JD(S) फरवरी 2006 से BJP के साथ 20 महीनों के लिए और मई 2018 के बाद 14 महीनों के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन में रही और दोनोंं ही बार मुख्यमंत्री रहे एचडी कुमारस्वामी.

मिशन 123 पर नजर

साल 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कुल 224 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है और इसमें से कम से कम 123 सीटें जीतकर अपने दम पर सरकार बनाने के लिए "मिशन 123" का लक्ष्य निर्धारित किया है. कुमारस्वामी 'पंचतंत्रा यात्रा' के जरिए क्षेत्रीय कन्नडिगा गौरव का आह्वान करते हुए वोट मांग रहे हैं और बीजेपी-कांग्रेस के खिलाफ हमला बोल रहे हैं.

हालांकि, कुछ राजनीतिक पंडितों और खुद की पार्टी के एक वर्ग के बीच JD(S) के इस लक्ष्य को पूरा करने के बारे में संदेह है. पार्टी का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन 2004 के विधानसभा चुनावों में रहा है, जब उसने 58 सीटें जीती थीं. साल 2013 में पार्टी ने 40 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जो उसका दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. जबकि, साल 2018 के चुनाव में 37 सीटें हासिल की थी.

अपना वोट बैंक खो रही पार्टी?

जेडी(एस) का वोक्कालिगा समुदाय में अच्छी पकड़ है, जिसकी वजह से उसके वोट कोई गिरावट दर्ज नहीं की गई है. अभी भी उसका वोट शेयर 18-20 फीसदी के बीच ही स्थिर है. लेकिन, अब राजनीतिक पंडितों का कहना है कि वोक्कालिगा समुदाय में जेडी(एस) की पकड़ धीरे-धीरे कम होती जा रही है और कांग्रेस की मजबूत. इसके पीछे की वजह कर्नाटक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार हैं, जो खुद वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं.

उधर, बीजेपी ने भी वोक्कालिगा बहुल पुराने मैसूर क्षेत्र में पैठ बनाने की कवायद तेज कर दी है. क्योंकि, हाल ही में बीजेपी ने अल्पसंख्यकों का 4 फीसदी आरक्षण काटकर लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय में बांट दिया है.

एचडी कुमारस्वामी अपनी 'पंचतंत्र यात्रा' के दौरन ये घूम-घूमकर बता रहे हैं कि वह कन्नड अस्मिता की लड़ाई लड़ रहे हैं. यह बात उनके पक्ष में इसलिए भी जाती है कि क्षेत्रीय पार्टियों में वो सबसे बड़ी पार्टी है और कन्नड़ गौरव की पहचान के रूप में भी जानी जाती है. हालांकि, जेडी(एस) परिवारवाद के आरोपों से जूझ रही है.

राजनीति के जानकारों का कहना है कि जेडी(एस) अभी भी वोक्कालिगा बहुल पुराने मैसूर क्षेत्र और उत्तरी कर्नाटक के कुछ चुनिंदा इलाकों से आगे बढ़ने में असमर्थ है. यही कारण है कि वो अपने दम पर सरकार बनाने में सफल नहीं हो पाती है.

पार्टी के संरक्षक पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा भी खराब स्वास्थ की वजह से चुनावी प्रचार में सक्रिय नहीं रह पाते हैं. पार्टी बहुत हद तक कुमारस्वामी पर निर्भर है, उसके पास दूसरे पंक्ति के बड़े नेता नहीं हैं, जो पार्टी को वोट दिलवा सकें. जिसकी वजह से पार्टी को कई निर्वाचन क्षेत्रों में योग्य उम्मीदवार तक नहीं मिल पाते हैं.

हालांकि, कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कर्नाटक में अभी भी जेडी(एस) एक ताकत है और उसे खारिज करना जल्दबाजी होगी. क्योंकि, कांग्रेस या बीजेपी अपने दम पर सरकार नहीं बना पाते हैं तो सत्ता की चाबी JD(S) के पास ही होगी, जो पिछले दो बार देखा गया है. ऐसी स्थिति में हर किसी के दिमाग में यही सवाल है कि क्या JD(S) किंग मेकर होगी या किंग?

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