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कर्नाटक: येदियुरप्पा के बेटे अध्यक्ष बने, BJP को लिंगायतों की तरफ 'यू-टर्न' की जरूरत क्यों?

Karnataka: बीजेपी ने कर्नाटक में पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र येदियुरप्पा को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है.

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'परिवारवाद और जातिवाद'- ये वो दो प्वाइंट हैं जिसे बीजेपी और बीजेपी के बड़े नेता विपक्षी दलों के खिलाफ 'हथियार' के रूप में इस्तेमाल करते हैं. लेकिन कर्नाटक में बीजेपी के 'परिवारवाद और जातिवाद' वाले हथियार की धार कमजोर पड़ गई है. परिवारवाद की राजनीति की आलोचना करने वाली बीजेपी ने कर्नाटक (Karnataka) में पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा (BS Yediyurappa) के बेटे विजयेंद्र येदियुरप्पा को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है.

अब यहां ये सवाल खड़ा होता है कि कर्नाटक विधानसभा चुनावों में येदियुरप्पा को दरकिनार करने वाली बीजेपी अब फिर उनकी तरफ क्यों लौट रही है? किस फैक्टर ने बीजेपी को ऐसा करने पर मजबूर किया और इसके जरिए पार्टी क्या साधना चाहती है? साथ ही ये भी जानेंगे कि विजयेंद्र येदियुरप्पा को ही बीजेपी ने क्यों चुना?

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येदियुरप्पा को फिर से अहमियत और लोकसभा चुनाव

कर्नाटक को बीजेपी के लिए दक्षिण का द्वार कहा जाता है. इसीलिए विधानसभा चुनाव 2023 में जब बीजेपी को राज्य में करारी हार का सामना करना पड़ा तो ये सिर्फ कर्नाटक में नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण भारत में पार्टी के लिए झटके के रूप में देखा गया.

बीजेपी की हार के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन एक कारण राज्य में येदियुरप्पा को दरकिनार करना भी माना जाता है. 2021 में कार्यकाल के बीच में ही बीजेपी ने येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को नया सीएम बनाया था. इससे येदियुरप्पा के समर्थकों में अच्छा संदेश नहीं गया.

येदियुरप्पा कर्नाटक में लिंगायत समुदाय पर पकड़ रखने वाले बड़े नेता हैं. और कर्नाटक में सत्ता की चाबी लिंगायत-वोक्कालिगा समुदाय के पास ही है. अब तक राज्य में 23 मुख्यमंत्रियों में से 16 (यानी की करीब 70%) लिंगायत-वोक्कालिगा समुदाय के ही रहे हैं.

बीजेपी के सामने इस समय कर्नाटक में दोहरी चुनौती है. येदियुरप्पा को साइडलाइन करने के बाद विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार से कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा है. युवाओं के बीच लोकप्रियता में कमी आई है और लोकसभा चुनाव सामने हैं. बिना लिंगायतों को साधे बीजेपी के लिए लोकसभा में 2019 जैसा प्रदर्शन दोहराना बड़ी चुनौती होगी. इसीलिए येदियुरप्पा के बेटे को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बीजेपी कमजोर पड़ती जमीन को फिर से मजबूत बनाने की जुगत में है.

2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने कर्नाटक में 28 में से 24 सीटों पर कब्जा जमाया था. इसमें लिंगायत बहुल निर्वाचन क्षेत्रों ने पार्टी की जीत में अहम योगदान दिया था.

लिंगायत-वोक्कालिगा फैक्टर

लिंगायत कर्नाटक का एक प्रमुख समुदाय है जो प्रदेश में छह करोड़ आबादी का लगभग 17% हिस्सा. इसके बाद वोक्कालिगा हैं जो आबादी में करीब 11 फीसदी हैं. दोनों को मिलाकर करीब 28% होता है, लेकिन कर्नाटक में चुने जाने वाले लगभग आधे विधायक इन्हीं समुदायों से होते हैं.

लिंगायत बीजेपी के लिए पारंपरिक वोटर रहे हैं और वोक्कालिगा पर जेडी (एस) की पकड़ है. लेकिन इस बार के विधानसभा चुनावों में ये ट्रेंड नहीं चल पाया. 2018 के विधानसभा चुनाव में 121 सीटें जीतने वाली बीजेपी इस बार 66 सीटों पर सिमट गई.

2018 के चुनाव नतीजों में वीरशैव-लिंगायत समुदाय के सबसे ज्यादा विधायक बीजेपी में थे, जबकि वोक्कालिगा के समुदाय के सबसे ज्यादा विधायक जेडी (एस) में चुने गए. 58 लिंगायत विधायकों में से 38 अकेले बीजेपी से चुनकर आए थे. इसके अलावा 16 कांग्रेस और 4 जेडी(एस) के रहे. 42 वोक्कालिगा विधायकों में जेडी(एस) के 23, कांग्रेस के 11, बीजेपी के 8 थे.

2023 के जब नतीजे आए तो कांग्रेस ने बीजेपी और जेडी (एस) दोनों को बड़ा झटका दिया. कांग्रेस ने 46 लिंगायत उम्मीदवार मैदान में उतारे जिसमें से 37 चुनाव जीत गए. इसे बीजेपी के पारंपरिक वोटर्स का कांग्रेस की तरफ झुकाव माना गया. कुछ ऐसी ही सेंधमारी कांग्रेस ने जेडी (एस) के खेमें में भी की. वोक्कालिगा के गढ़ पुराना मैसूर क्षेत्र कांग्रेस 44 सीटें जीतने में कामयाब रही और जेडी (एस) को सिर्फ 14 सीटें मिलीं.

कांग्रेस ने मैसूरु, मांड्या, हासन, चामराजनगर और कोडागु जिलों में 31 सीटों में से 19 पर जीत हासिल की, जबकि जेडी (एस) ने आठ, बीजेपी ने तीन और सर्वोदय कर्नाटक पार्टी (SKP) ने एक सीट जीती. 2018 के चुनावों में, जेडी (एस) ने 18 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस पांच, बीजेपी सात और BSP एक सीट जीतने में सफल रही थी.

इससे साफ है कि लिंगायत और वोक्कालिगा दोनों समुदायों का रुझान बीजेपी और जेडी (एस) से दूर जाने वाला रहा. अब यही ट्रेंड लोकसभा चुनावों में भी चलता है तो बीजेपी को बड़ा नुकसान हो सकता है.

2018 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने दक्षिण कर्नाटक की 94 सीटों में से 45 सीटें जीतीं थीं, जहां वोक्कालिगा आबादी ज्यादा है. कांग्रस जेडी (एस) के गढ़ में जीत हासिल करने में कामयाब रही है. जानकारों का मानना है कि बीजेपी अब अपने दम पर ही किला मजबूत करने में जुटी है और विजयेंद्र येदियुरप्पा को प्रदेश की कमान सौंपकर लिंगायतों को फिर से साधने की कोशिश करना बीजेपी की स्ट्रेटेजी का हिस्सा है.

जानकारों का ये भी मामना है कि हाल के वर्षों में, दोनों समुदाय राजनीतिक रूप से अस्थिर हो गए हैं, और उनका समर्थन किसी भी तरफ जा सकता है.

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विजयेंद्र येदियुरप्पा ही क्यों?

2023 के विधानसभा चुनावों में विजयेंद्र शिकारीपुरा से पहली बार विधायक बने. इस सीट का उनके पिता ने 1983 से आठ बार प्रतिनिधित्व किया है. वे जोशीली प्रकृति के राजनेता हैं.

विजयेंद्र ने दिसंबर 2019 में वोक्कालिगा का गढ़ माने जाने वाले कृष्णराजपेट में उपचुनाव के दौरान प्रचार की कमान संभाली और बीजेपी को जिताकर अपनी छाप छोड़ी थी. ये बीजेपी की पहुंच से बाहर माना जाता था. इन उपचुनावों में बीजेपी ने 15 में से 12 सीटें जीती थीं. इन उपचुनावों में जीत के दम पर ही येदियुरप्पा की सरकार स्थिर बनी रही. इसके अगले साल, उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया.

जानकारों के अनुसार, पिता की तरह विजयेंद्र भी अपने शब्दों को लेकर सावधान रहते हैं और सार्वजनिक रूप से पार्टी लाइन का पालन करते हैं. उनकी उम्र 47 साल है और युवाओं के बीच पकड़ है, ऐसे में उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के काउंटर के रूप में भी उन्हें देखा जा सकता है.

बीजेपी ने एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाले JD (S) के साथ गठबंधन किया है. अब बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में विजयेंद्र की भूमिका लिंगायत-वोक्कालिगा समीकरण साधने में मदद कर सकती है. इसी के जरिए बीजेपी कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनावों में कड़ी टक्कर देने की कोशिश करेगी.

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