चिराग पासवान (CHIRAG PASWAN) और उनके चाचा पशुपति पारस (PASHUPATI PARAS) के बीच लोक जनशक्ति पार्टी पर कब्जे की लड़ाई जारी है. मामला कोर्ट और चुनाव आयोग तक पहुंच चुका है. सोमवार को चुनाव आयोग ने दोनों पक्षों के पार्टी के सिंबल 'बंगले' के इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी है.
चुनाव आयोग का यह आदेश ऐसे समय में आया है जब चिराग गुट ने बिहार की दो विधानसभा सीटों कुशेश्वर स्थान और तारापुर मेंं होने वाले 30 अक्टूबर उपचुनाव में पार्टी के प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया है. उपचुनाव इसी महीने के अंत में 30 अक्टूबर को होना है. चिराग का ऐलान बिहार में सत्ताधारी एनडीए के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है, क्योंकि एलजेपी का पारस गुट आधिकारिक रूप से एनडीए का हिस्सा है. पशुपति पारस खुद केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं. दोनों सीटों पर एनडीए की ओर से जेडीयू ने उम्मीदवार उतारे हैं.
रामविलास पासवान की विरासत को लेकर जंग
आपको बता दें कि जून 2021 में दिग्गज नेता स्वर्गीय रामविलास पासवान की विरासत के असली उत्तराधिकारी बनने को लेकर जंग छिड़ गई. रामविलास पासवान के बेटे चिराग और चाचा पशुपति पारस के बीच पार्टी पर कब्जे को लेकर इस लड़ाई में एलजेपी दो धड़ों में बंट गई. हालात इतने खराब हो गए कि एलजेपी में 5 लोकसभा सांसदों ने चिराग पासवान का साथ छोड़कर पशुपति पारस पर भरोसा जताया। चिराग को मिलाकर एलजेपी के कुल 6 लोकसभा सांसद हैं.
पशुपति पारस को मिली केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह
पशुपति पारस के नेतृत्व वाले गुट ने चिराग को पद से हटाते हुए एलजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया. जिसके बाद सवाल उठने लगा कि आखिर बीजेपी अपने एनडीए की सहयोगी पार्टी में हो रही इस पारिवारिक लड़ाई में किसका साथ देगी? हालांकि पार्टी ने जल्द ही इसपर स्थिति साफ कर दी, मोदी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में पशुपति पारस को भी जगह दी गई. उन्हें केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्री बनाया गया.
पार्टी में फूट के लिए नीतीश को जिम्मेदार मानते हैं चिराग पासवान, पीएम मोदी की चुप्पी पर उठा चुके हैं सवाल
चिराग पार्टी में इस फूट के लिए जेडीयू और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जिम्मेदार बताते रहे हैं. वह पूरे प्रकरण में पीएम मोदी की चुप्पी और पशुपति पारस को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने पर सवाल उठाया चुके हैं,. वहीं विरोधी पशुपति गुट का कहना है कि चिराग पार्टी को ठीक से चला नहीं पा रहे थे, पार्टी को लेकर किए गए उनके कई राजनीतिक फैसलों पर भी पारस गुट ने सवाल उठाए हैं.
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