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महाराष्ट्र की भूमिका 2024 के चुनाव में कैसी होगी? 3 सर्वे चार्ट नतीजों से समझें

नरेंद्र मोदी को फिर से पीएम बनना चाहिए या नहीं, इस पर राज्य बंटा हुआ है.

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48 सीटों के साथ महाराष्ट्र (Maharashtra) लोकसभा में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बाद दूसरा सबसे बड़ा राज्य है. 2024 के लोकसभा चुनावों की भविष्यवाणी करने के लिए महाराष्ट्र सबसे कठिन राज्यों में से एक है. यहां हम यही समझाने की कोशिश करेंगे कि महाराष्ट्र में क्या हो रहा है? इसको समझने के लिए सकल ग्रुप द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वे पर करीब से नजर डालेंगे. हम इसकी तुलना अन्य हालिया सर्वों के निष्कर्षों से भी करेंगे ताकि यह पता लगाया जा सके कि महाराष्ट्र में भावना किन पहलुओं पर राष्ट्रीय भावना के अनुरूप है.

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पीएम मोदी को लेकर दो हिस्सों में बंटा महाराष्ट्र

जब लोगों से पूछा गया कि 'क्या आपको लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से पीएम बनना चाहिए, तो 42.1 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें फिर से पीएम बनना चाहिए, जबकि 41.5 ने कहा कि वे नहीं चाहते कि वे फिर से पीएम बनें. 16.4 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे नहीं जानते या कह नहीं सकते.

जहां तक ​​पीएम मोदी की लोकप्रियता का संबंध है, महाराष्ट्र, राष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा विभाजित राज्यों में से एक हो सकता है.

पिछले सर्वों से संकेत मिलता है कि एक तरफ गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्य हैं जहां भारी जनमत पीएम मोदी के पक्ष में है. वहीं तमिलनाडु, पंजाब और केरल जैसे राज्यों में ज्यादातर भावनाएं पीएम के खिलाफ हैं.

महाराष्ट्र लगभग समान रूप से मोदी-समर्थक और मोदी-विरोधी मतदाताओं के बीच बंटा हुआ है, जिसमें बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो कहीं इनके बीच में है, इसलिए यहां भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल है.

नरेंद्र मोदी को फिर से पीएम बनना चाहिए या नहीं, इस पर राज्य बंटा हुआ है.

पीएम मोदी को लेकर राज्य दो हिस्सों में बंटा हुआ है.

मोदी-समर्थक और मोदी-विरोधी खेमे के बीच इस लगभग समान विभाजन का मतलब यह भी है कि दोनों पक्षों को सभी जाति समूहों से पर्याप्त समर्थन मिल रहा है. यह हिंदी बेल्ट और गुजरात के उल्ट है, जहां बीजेपी को उच्च जाति और ओबीसी मतदाताओं के बीच स्पष्ट बढ़त हासिल थी.

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शिवसेना के वोट के लिए जंग

महाराष्ट्र में सबसे बड़े एक्स-फैक्टर में से एक शिवसेना है. 2021 में शिवसेना के बंटवारे के बाद 2024 का लोकसभा चुनाव पहला बड़ा चुनाव होगा.

ऐसा लगता है कि शिंदे समूह ने पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह की लड़ाई जीत ली है. अधिकांश विधायक और सांसद भी उनके साथ हैं.

हालांकि, सकल सर्वे के अनुसार, उद्धव ठाकरे की शिव सेना को वोटों का बड़ा हिस्सा मिल रहा है. लगभग 12.5 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे उद्धव ठाकरे की पार्टी को वोट देने की योजना बना रहे हैं, जबकि 5.5 प्रतिशत लोगों ने शिंदे की पार्टी को चुना, जो आधे से भी कम थे.

नरेंद्र मोदी को फिर से पीएम बनना चाहिए या नहीं, इस पर राज्य बंटा हुआ है.

शिवसेना के वोट के लिए जंग

यह शिंदे और उनके गुट के लिए बुरी खबर है. अगर जमीन पर यही उनकी ताकत है तो पार्टी के तौर पर उनका भविष्य और पहचान खतरे में पड़ सकती है. देर-सवेर वे एक ओर बीजेपी और दूसरी ओर उद्धव ठाकरे की सेना के बीच फंस सकते हैं.

एक और पहलू है जिस पर दोनों खेमों को विचार करने की जरूरत है. शिवसेना के वोटों की कुल मात्रा-ठाकरे और शिंदे की सेना दोनों को मिलाकर - लगभग 18 प्रतिशत है. यह 2019 में प्राप्त 23.5 प्रतिशत और 2014 में प्राप्त 20 प्रतिशत से कम है.

2009 में, इसने 17 प्रतिशत का वोट शेयर हासिल किया था - यह अपने आप में इसके इतिहास में एक लो पॉइंट था क्योंकि मनसे के गठन के साथ ही पार्टी को विभाजन का सामना करना पड़ा था.

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बीजेपी का दबदबा बनाम MVA का अंकगणित

सर्वे के मुताबिक 33.7 प्रतिशत ने कहा कि वे बीजेपी को वोट देने की योजना बना रहे हैं. यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि 1998 में कांग्रेस के विभाजन के बाद से महाराष्ट्र में कोई भी पार्टी 30 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल करने में कामयाब नहीं हुई है. केंद्र और राज्य दोनों चुनावों में ऐसा ही होता है.

बीजेपी स्पष्ट रूप से महाराष्ट्र की राजनीति के प्रमुख ध्रुव के रूप में उभरती दिख रही है. यह एक चरण है जो 2014 में शुरू हुआ और तब से तेज हो गया है.

कांग्रेस और एनसीपी के स्थानीय और उप-क्षेत्रीय नेताओं को शामिल करके पार्टी ने अपना प्रभाव बढ़ाया है.

बीजेपी के दबदबे के उल्ट सकल सर्वे में कांग्रेस, एनसीपी और उद्धव ठाकरे की सेना सभी 20 प्रतिशत से नीचे हैं. वहीं शिंदे सेना महज 5.5 फीसदी है.

हालांकि, बीजेपी का प्रभुत्व अभी भी गुजरात और अधिकांश हिंदी पट्टी में जितना है, इनका उसके आस-पास भी नहीं है.

महाराष्ट्र में मुख्य खींचतान बीजेपी के दबदबे और महा विकास अघाड़ी के अंकगणित के बीच होगी. सकल सर्वे के मुताबिक, एमवीए का संयुक्त वोट शेयर लगभग 48 प्रतिशत है, जो एनडीए के संयुक्त वोट शेयर से 10 प्रतिशत अधिक है.

नरेंद्र मोदी को फिर से पीएम बनना चाहिए या नहीं, इस पर राज्य बंटा हुआ है.

बीजेपी का दबदबा बनाम एमवीए का अंकगणित

अब यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि एमवीए सीटों के बंटवारे में दरार डालने में सक्षम होगा या नहीं. और अगर वे ऐसा करते भी हैं, तो भी यह साफ नहीं है कि क्या वोटों का सुचारू हस्तांतरण होगा। खासकर शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी के बीच.

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मोदी सरकार की परफॉर्मेंस पर मिक्स रिएक्शन

सकल सर्वे ने 'विश्व मंच पर भारत की स्थिति में सुधार' के लिए पीएम मोदी को मजबूत रूप से जिम्मेदार बताया. अयोध्या में चल रहे राम मंदिर निर्माण के साथ ही जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने से भी मोदी सरकार सकारात्मक रूप से नजर आ रही थी.

दूसरी ओर, लोगों ने कहा कि मूल्य वृद्धि और बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्याएं हैं जिनका वे सामना कर रहे हैं.

सर्वे के मुताबिक 39.3 प्रतिशत लोगों ने कहा कि मूल्य वृद्धि मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलता है, 18.6 ने कहा कि यह बेरोजगारी है और 12 प्रतिशत ने कहा कि ईंधन की कीमतों में बढ़ोत्तरी हुई है.

यह महत्वपूर्ण है कि लगभग 70 प्रतिशत लोगों ने आर्थिक मुद्दों को मोदी सरकार की मुख्य विफलताओं के रूप में चुना.

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आगे क्या ?

  • एमवीए के लिए चुनौती समान तरीके से सीटों के बंटवारे में दरार डालना और जमीनी स्तर पर कैडर के बीच सहज सहयोग सुनिश्चित करना है.

  • फिर वोट ट्रांसफर का सवाल है. कांग्रेस-एनसीपी एक पुराना गठबंधन है, जिसका आधार और विचारधारा लगभग एक है, लेकिन समान नहीं है. दोनों पक्षों के बीच वोट ट्रांसफर कोई बड़ी समस्या नहीं है. समस्या शिवसेना के आधार के साथ है. क्या शिवसेना के वोटर अपना वोट कांग्रेस और एनसीपी को ट्रांसफर करेंगे? या वे बीजेपी-शिंदे गठबंधन के साथ जाएंगे? कौन सा कारक अधिक प्रभावी होगा - ठाकरे के प्रति वफादारी या फिर बीजेपी या हिंदुत्व का विरोध?

  • वंचित बहुजन अघाड़ी भी है, जिसका सकल सर्वे में अनुमानित वोट शेयर 2.9 प्रतिशत है. यह वर्तमान में उद्धव ठाकरे की सेना की सहयोगी है, लेकिन एनसीपी के साथ अच्छे समीकरण साझा नहीं करती है.

  • एनडीए के लिए, एमवीए के स्पष्ट आकंड़ों के लाभ का मुकाबला करना एक बड़ी चुनौती है. अगर एमवीए दल आपस में वोटों का सुचारू ट्रांसफर सुनिश्चित करने में सक्षम हैं, तो महाराष्ट्र बीजेपी के लिए एक वाशआउट होगा. लेकिन फुल ट्रांसफर की संभावना नहीं है. एनडीए के लिए समस्या यह है कि उसे 2019 में 41 सीटें मिलीं, इसलिए एमवीए दलो के बीच आंशिक स्थानांतरण से भी एनडीए को लगभग 15 सीटों का नुकसान हो सकता है.

  • कुछ लोग कहेंगे कि महाराष्ट्र में बार-बार होने वाली साम्प्रदायिक घटनाएं एनडीए के फायदे के लिए काम करती हैं और एक बड़े समेकन के लिए जमीन तैयार करती हैं.

एनडीए एमवीए को सीट बंटवारे को लेकर परेशान करने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा को जल्दी भंग करने और लोकसभा चुनाव के साथ-साथ विधानसभा चुनाव के लिए जोर दे सकता है.
  • महाराष्ट्र में सभी दलों के लिए असली लड़ाई विधानसभा चुनाव है. एमवीए दल सोच रहे होंगे कि लोकसभा चुनावों के लिए सीटों के बंटवारे को सुलझाना अभी भी आसान होगा और विधानसभा चुनाव वितरण बाद में तय किया जा सकता है. लेकिन अगर दोनों चुनाव एक साथ होते हैं तो मामला और पेचीदा हो सकता है.

  • बीजेपी के लिए समस्या शिंदे समूह है. मराठा मतदाताओं को खुश करने के लिए एक सांकेतिक कदम और कुछ शिंदे गुट के नेताओं के व्यक्तिगत आधार के अलावा, पार्टी ज्यादा वैल्यू ऐड करती नहीं दिख रही है. सीटों के बंटवारे के दौरान इसे ज्यादा देना बीजेपी के लिए नुकसानदेह हो सकता है. दूसरी ओर, इसे पर्याप्त संख्या में सीटें न देना पार्टी की प्रासंगिकता पर ही सवाल खड़ा कर देगा.

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