केंद्र की मोदी सरकार अपने 4 साल पूरे करने का जश्न अभी पूरी तरह मना भी नहीं पाई थी कि लोकसभा उपचुनाव के नतीजों ने उसके जश्न को फीका कर दिया. महाराष्ट्र की 2 लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में से बीजेपी भले ही पालघर सीट बचाने में कामयाब रही हो, लेकिन अपने गढ़ विदर्भ में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन से करारी शिकस्त मिली. इस हार ने बीजेपी के लिए महाराष्ट्र में खतरे की घंटी जरूर बजा दी है.
जानकारों का मानना है कि धान उत्पादक किसानों को उपज का दाम न मिलना, किसान कर्जमाफी को जटिल करना और पेट्रोल के लगातार बढ़ते दामों पर सरकार के रवैये ने बीजेपी को अपने गढ़ में हार का मुंह देखने पर मजबूर कर दिया.
BJP के वोट प्रतिशत में गिरावट
पालघर लोकसभा उपचुनाव में चौतरफा लड़ाई में बीजेपी के उम्मीदवार राजेंद्र गावित ने 29 हजार 572 वोटों से जीत हासिल की. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले उपचुनाव में बीजेपी के वोट प्रतिशत में गिरावट दर्ज हुई है.
वोटरों के मिजाज ने बीजेपी को यह संदेश जरूर दे दिया है कि लोगों की अपेक्षा के अनुरूप सरकार का कामकाज नहीं है. हालांकि पहली बार बीजेपी से अलग होकर लोकसभा का चुनाव अपने दम पर लड़ने वाली शिवसेना दूसरे नंबर पर रहकर अपनी ताकत दिखाने में कामयाब रही.
शिवसेना के लिए भी उपचुनाव के नतीजों से साफ संदेश है कि अकेले दम पर सत्ता हासिल करने का पार्टी का सपना इतना आसान नहीं है. यानी अगर शिवसेना-बीजेपी इस तरह 2019 के चुनाव में भी अलग-अलग लड़े, तो कांग्रेस-एनसीपी की राह और आसान होगी.
वहीं अगर भंडारा-गोंदिया लोकसभा उपचुनाव की बात करें, तो कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के साथ दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के लिए ये नतीजे बेहत जोश भरने वाले हैं. बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली पर सवाल उठाकर बीजेपी के सांसद पद से इस्तीफा देने वाले नाना पटोले और एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल की जोड़ी की मेहनत गोंदिया भंडारा में रंग लाई और बीजेपी को अपने गढ़ में जोर का झटका दिया.
कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के उम्मीदवार मधुकर कुकड़े ने 45 हजार के भारी वोटों के अंतर से बीजेपी के हेमंत पटले को धूल चटा दी. एनसीपी और कांग्रेस ने चुनाव में मोदी सरकार की नाकामी और सरकार के 4 सालों में लिए 'गलत' फैसलों को लगातार लोगों के सामने प्रचार के दौरान रखा, चाहे वो नोटबंदी का फैसला हो, जीएसटी का या मोदी के अच्छे दिनों का सपना.
मतदाताओं के रुझान से ये बात साफ होती है कि मोदी सरकार की छवि जो 4 साल पहले थी, उसमें जरूर गिरावट आई है.
BJP को इस हार के बाद नए सिरे से सोचना होगा
2014 में महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जो भारी जीत मिली थी, उसका सबसे ज्यादा श्रेय विदर्भ को जाता है. विदर्भ की 68 विधानसभा की सीटों में से बीजेपी ने 45 सीटों पर जीत हासिल की थी. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी हों या मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, दोनों विदर्भ से ही आते हैं. बीजेपी के सत्ता में आने के बाद इन इलाकों में पार्टी विकास के कई प्रोजेक्ट भी लेकर आई, लोगों में संदेश देने की कोशिश की. लेकिन इन सबके बाद बीजेपी को अपने गढ़ में मिली इस हार ने पार्टी को नए सिरे से सोचने को मजबूर कर दिया है.
बीजेपी को अब न केवल लोगों के बीच जाकर फिर एक बार अपनी छवि को सुधारना होगा, बल्कि जातीय गणित को भी संभालते हुए, विपक्षी एकता से मुकाबला करने के लिए नई रणनीति बनानी होगी. अगर नहीं, तो महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए अपनी सियासी जमीन बचा पाना मुश्किल होगा.
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