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BJP-NCP गठबंधन पर RSS की आलोचना, कैबिनेट में शिवसेना से कोई नहीं: महाराष्ट्र NDA में चल क्या रहा?

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से महायुति के तीन सहयोगियों- BJP, शिवसेना और NCP- में पार्टी के अंदर और बाहर टकराव जारी है.

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मोदी कैबिनेट 3.0 (Modi Cabinet 3.0) में शिवसेना (SHS) का कोई मंत्री नहीं होना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) का मंत्री पद लेने से इनकार करना और और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मुखपत्र में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की महाराष्ट्र इकाई पर खुलेआम हमला करना- महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन (Mahayuti alliance) लोकसभा चुनावों में अपने निराशाजनक प्रदर्शन के बाद से ही पार्टी के भीतर और बाहर मतभेदों से जूझ रहा है.

इसी कड़ी में 9 जून को पीएम मोदी और नई कैबिनेट के शपथ ग्रहण के बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना (SHS) ने मोदी मंत्रिमंडल में कोई जगह नहीं मिलने पर नाराजगी जाहिर की है.

मावल विधानसभा से शिवसेना विधायक श्रीरंग बारणे ने मंत्रिमंडल की शपथ के एक दिन बाद पूछा, "हमारे स्ट्राइक रेट को देखते हुए हमें कैबिनेट में जगह मिलनी चाहिए थी. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में कुछ ऐसी पार्टियां हैं, जिनके पास केवल एक सांसद है, फिर भी उन्हें कैबिनेट में जगह मिली है. तो फिर शिवसेना के प्रति बीजेपी के इस रवैये के पीछे क्या कारण है?"

बारणे की बात साफ है, और कई लोगों के लिए तार्किक भी. यही कि अगर कम सांसदों और कम वोट शेयर वाली पार्टियों को कैबिनेट में जगह मिल सकती है, तो शिवसेना को क्यों नहीं? आखिरकार, 14 सीटों पर चुनाव लड़कर सात सीटें जीतकर शिवसेना का राज्य में तीनों सहयोगी दलों में सबसे अच्छा स्ट्राइक रेट रहा है.

लेकिन बारणे के सवाल चुनाव नतीजों के बाद से महाराष्ट्र के सत्तारूढ़ गठबंधन में चल रहे कुछ बड़े मतभेदों की ओर इशारा कर रही हैं.ृड

BJP-NCP गठबंधन पर RSS की आलोचना, कैबिनेट में शिवसेना से कोई नहीं: महाराष्ट्र NDA में चल क्या रहा?

  1. 1. शिवसेना को नजरअंदाज करना क्यों बड़ी बात है?

    अजित पवार की एनसीपी के निराशाजनक चुनावी प्रदर्शन का हवाला देकर बीजेपी बच सकती है. पवार की पार्टी, जो पिछले साल अलग होकर एनडीए में शामिल हो गई थी, इस बार लोकसभा चुनावों में उसने जिन चार सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से सिर्फ एक सीट ही जीत पाई.

    केंद्र में प्रत्येक एनडीए सरकार में कम से कम एक शिवसेना सांसद केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा रहा है. इस बार शिंदे की सेना एनडीए में सात सांसदों और 13 प्रतिशत वोट शेयर के साथ चौथी सबसे बड़ी पार्टी है. हालांकि, इससे कम चुनावी सफलता पाने वाली पार्टियों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी गई है.

    • लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने केवल पांच सांसद और 6.47 प्रतिशत वोट शेयर होने के बावजूद केंद्रीय मंत्री के रूप में शपथ ली.

    • जनता दल (सेक्युलर) के एचडी कुमारस्वामी को सिर्फ दो सांसद और 5.6 प्रतिशत वोट शेयर होने के बावजूद कैबिनेट में जगह दी गई.

    • हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी को भी सिर्फ एक सीट से चुनाव लड़ने और जीतने के बावजूद मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिली.

    इसी तरह, जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोक दल (दो सांसद) और अनुप्रिया पटेल अपना दल (एक सांसद) को 3 प्रतिशत से भी कम वोट शेयर होने के बावजूद राज्य मंत्री (MoS) का पद दिया गया है.

    रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के रामदास अठावले को भी चुनाव न लड़ने के बावजूद राज्य मंत्री बनाया गया है.

    ऐसे में शिंदे की शिवसेना के चुनावी प्रदर्शन को देखते हुए पार्टी के प्रतापराव गणपतराव जाधव को राज्यमंत्री पद देना सही नहीं माना जा रहा है.

    बता दें कि 2022 में प्रदेश की सत्ता में बीजेपी की वापसी शिंदे और उनके विद्रोह के कारण ही हुई थी. लोकसभा चुनावों में भी पार्टी का स्ट्राइक रेट एनसीपी से बेहतर रहा, जिसे शिंदे के विधायकों को दिए गए कई राज्य मंत्रिमंडल पदों की कीमत पर एनडीए में शामिल किया गया था.

    इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बीजेपी द्वारा एक बार फिर शिंदे की सेना को दरकिनार करने से हेडलाइन बनना तय था. हालांकि, मंत्रिमंडल विस्तार में एकनाश की शिवेसेना को शामिल किए जाने की अभी भी गुंजाइश है.

    मोदी मंत्रिमंडल (2019-2024) में अरविंद सावंत को एकजुट शिवसेना के लिए केंद्र में जगह दी गई थी, लेकिन नवंबर 2019 में शिवसेना के एनडीए से अलग होने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. हालांकि, 2022 में अलग हुए गुट के बीजेपी से हाथ मिलाने के बाद भी शिंदे की सेना के किसी भी नेता को कैबिनेट में जगह नहीं दी गई.

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  2. 2. 'सार्वजनिक रूप से नाराजगी जाहिर करना अनुचित': बीजेपी

    बारणे की टिप्पणी पर बीजेपी की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई और विधायक प्रवीण दरेकर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर टिप्पणी को अनुचित बताया.

    दरेकर ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि महायुति का हिस्सा रहते हुए एक-दूसरे के प्रति सार्वजनिक रूप से इस तरह की नाराजगी जाहिर करना उचित है. श्रीरंग बारणे की नाराजगी न तो पार्टी के लिए है, न ही अजित पवार के लिए और न ही शिंदे के लिए. अगर प्रतापराव जाधव की जगह बारणे मंत्री पद की शपथ ले रहे होते तो उन्हें जो मिलता उससे वे संतुष्ट हो जाते. लेकिन उनका बयान तब आया है जब उन्हें केंद्रीय मंत्री के तौर पर शपथ नहीं दिलाई गई है. यह उनका गुस्सा और नाराजगी जाहिर करने का तरीका है."

    सत्तारूढ़ गठबंधन में कलह पहली बार तब सामने आई जब अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने प्रफुल्ल पटेल के लिए राज्यमंत्री का पद स्वीकार करने से इनकार कर दिया.

    मीडिया से बात करते हुए प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि "इस मामले को लेकर गलतफहमी पैदा की जा रही है."

    प्रफुल्ल पटेल ने कहा, "मैं पहले भी कैबिनेट का हिस्सा रहा हूं. मुझे भी स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री को स्वीकार करने में आपत्ति थी, क्योंकि मेरे लिए इसका मतलब डिमोशन होता. इसलिए हमने बीजेपी नेतृत्व को सूचित कर दिया है और उन्होंने कहा है कि बस कुछ दिन और फिर हम सुधारात्मक कदम उठाएंगे."

    महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेन्द्र फडणवीस ने सोमवार, 10 जून को कहा कि मंत्रिमंडल में स्थान गठबंधन के भीतर तय कुछ मानदंडों के अनुसार आवंटित किए गए हैं और इन्हें किसी एक पार्टी (NCP) के लिए नहीं बदला जा सकता.

    इस बीच, महाराष्ट्र से छह सांसदों ने पीएम मोदी के साथ मंत्री पद की शपथ ली- दो केंद्रीय मंत्री और चार राज्य मंत्री. इनमें से चार बीजेपी से हैं, जिनमें नितिन गडकरी भी शामिल हैं.

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  3. 3. महायुति में असंतोष

    महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले महायुति में टकराव की स्थिति बनती दिख रही है. इस साल आम चुनाव मुख्यतः प्रदेश के मुद्दों पर लड़े गए, जैसे दो क्षेत्रीय दलों के टूटने से उपजा गुस्सा, कृषि संकट और मराठा आरक्षण.

    साफ तौर पर ये मुद्दे मतदाताओं पर दबाव बनाये रखेंगे क्योंकि राज्य में विधानसभा चुनावों में अब ज्यादा समय नहीं बचा है.

    शिवसेना और एनसीपी के भीतर अशांति और असंतोष के संकेत साफ हैं. नतीजों के बाद से, ये दोनों पार्टियां विधानसभा चुनावों में ज्यादा सीटों की अपनी मांग सार्वजनिक रूप से उठा रही हैं.

    लोकसभा चुनाव के नतीजों से कुछ दिन पहले विधानसभा चुनाव में 80 सीटों की मांग करने के बाद, एनसीपी नेता छगन भुजबल ने सोमवार को कहा की प्रदेश के चुनाव में एनसीपी और शिवसेना दोनों को बराबर सीटें मिलनी चाहिए.

    एक रैली को संबोधित करते हुए भुजबल ने कहा, "बीजेपी हमारे बड़े भाई की तरह है. हमने उनसे कहा है कि एकनाथ शिंदे की तरह हमारे पास भी 40-45 विधायक हैं. इसलिए दोनों पार्टियों को बराबर सीटें मिलनी चाहिए. किसी को यह नहीं मानना ​​चाहिए कि शिंदे की पार्टी के पास अब अधिक सांसद हैं, इसलिए उन्हें विधानसभा चुनाव में अधिक सीटें मिलनी चाहिए."

    पिछले सप्ताह चुनाव नतीजे आने के तुरंत बाद अजित पवार द्वारा बुलाई गई बैठक में पार्टी के पांच विधायक नदारद थे, जबकि सोमवार को शिंदे की ओर से बुलाई गई बैठक में कई शिवसेना विधायकों ने कथित तौर पर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में "बीजेपी और एनसीपी सहयोगियों से कोई काम और समर्थन नहीं मिलने" की शिकायत की.

    इस बीच, महाराष्ट्र के सर्वोच्च नेता के तौर पर फडणवीस की छवि भी सवालों के घेरे में आ गई है.

    चुनावों में बीजेपी का स्ट्राइक रेट कांग्रेस, शिवसेना, शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार की एनसीपी से भी खराब रहा. क्षेत्रीय दलों को तोड़ने और अलग हुए गुटों, खासकर एनसीपी, के साथ हाथ मिलाने के उनके फैसले पर आरएसएस सहित कई राजनीतिक हलकों की ओर से सवाल खड़े किए जा रहे हैं.

    बीजेपी की तीखी आलोचना करते हुए आरएसएस पदाधिकारी रतन शारदा ने संगठन के मुखपत्र 'ऑर्गनाइजर' के लिए लिखे संपादकीय में अजित पवार से हाथ मिलाने के पीछे के औचित्य पर सवाल उठाया और कहा कि यह "अनावश्यक राजनीति और टाले जा सकने वाले हेरफेर का प्रमुख उदाहरण है."

    संपादकीय में लिखा गया है, "अजित पवार के नेतृत्व वाला एनसीपी गुट बीजेपी में शामिल हो गया, हालांकि बीजेपी और विभाजित शिवसेना के पास बहुमत था. शरद पवार दो-तीन साल में गायब हो जाते, क्योंकि चचेरे भाइयों के बीच आपसी लड़ाई की वजह से एनसीपी अपनी ऊर्जा खो देती. यह गलत कदम क्यों उठाया गया?"

    आगे कहा गया,

    "बीजेपी समर्थक इसलिए आहत हुए क्योंकि उन्होंने सालों तक कांग्रेस की विचारधारा के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और उन्हें सताया गया. एक ही झटके में बीजेपी ने अपनी ब्रांड वैल्यू कम कर दी. महाराष्ट्र में नंबर एक बनने के लिए सालों के संघर्ष के बाद, यह बिना किसी अंतर के एक और राजनीतिक पार्टी बन गई."

    जबकि महायुति के दल आत्ममंथन में लगे हैं, 14 जून को मुंबई में बीजेपी विधायकों और राज्य के वरिष्ठ नेताओं की बैठक होने वाली है.

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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शिवसेना को नजरअंदाज करना क्यों बड़ी बात है?

अजित पवार की एनसीपी के निराशाजनक चुनावी प्रदर्शन का हवाला देकर बीजेपी बच सकती है. पवार की पार्टी, जो पिछले साल अलग होकर एनडीए में शामिल हो गई थी, इस बार लोकसभा चुनावों में उसने जिन चार सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से सिर्फ एक सीट ही जीत पाई.

केंद्र में प्रत्येक एनडीए सरकार में कम से कम एक शिवसेना सांसद केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा रहा है. इस बार शिंदे की सेना एनडीए में सात सांसदों और 13 प्रतिशत वोट शेयर के साथ चौथी सबसे बड़ी पार्टी है. हालांकि, इससे कम चुनावी सफलता पाने वाली पार्टियों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी गई है.

  • लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने केवल पांच सांसद और 6.47 प्रतिशत वोट शेयर होने के बावजूद केंद्रीय मंत्री के रूप में शपथ ली.

  • जनता दल (सेक्युलर) के एचडी कुमारस्वामी को सिर्फ दो सांसद और 5.6 प्रतिशत वोट शेयर होने के बावजूद कैबिनेट में जगह दी गई.

  • हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी को भी सिर्फ एक सीट से चुनाव लड़ने और जीतने के बावजूद मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिली.

इसी तरह, जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोक दल (दो सांसद) और अनुप्रिया पटेल अपना दल (एक सांसद) को 3 प्रतिशत से भी कम वोट शेयर होने के बावजूद राज्य मंत्री (MoS) का पद दिया गया है.

रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के रामदास अठावले को भी चुनाव न लड़ने के बावजूद राज्य मंत्री बनाया गया है.

ऐसे में शिंदे की शिवसेना के चुनावी प्रदर्शन को देखते हुए पार्टी के प्रतापराव गणपतराव जाधव को राज्यमंत्री पद देना सही नहीं माना जा रहा है.

बता दें कि 2022 में प्रदेश की सत्ता में बीजेपी की वापसी शिंदे और उनके विद्रोह के कारण ही हुई थी. लोकसभा चुनावों में भी पार्टी का स्ट्राइक रेट एनसीपी से बेहतर रहा, जिसे शिंदे के विधायकों को दिए गए कई राज्य मंत्रिमंडल पदों की कीमत पर एनडीए में शामिल किया गया था.

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बीजेपी द्वारा एक बार फिर शिंदे की सेना को दरकिनार करने से हेडलाइन बनना तय था. हालांकि, मंत्रिमंडल विस्तार में एकनाश की शिवेसेना को शामिल किए जाने की अभी भी गुंजाइश है.

मोदी मंत्रिमंडल (2019-2024) में अरविंद सावंत को एकजुट शिवसेना के लिए केंद्र में जगह दी गई थी, लेकिन नवंबर 2019 में शिवसेना के एनडीए से अलग होने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. हालांकि, 2022 में अलग हुए गुट के बीजेपी से हाथ मिलाने के बाद भी शिंदे की सेना के किसी भी नेता को कैबिनेट में जगह नहीं दी गई.

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'सार्वजनिक रूप से नाराजगी जाहिर करना अनुचित': बीजेपी

बारणे की टिप्पणी पर बीजेपी की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई और विधायक प्रवीण दरेकर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर टिप्पणी को अनुचित बताया.

दरेकर ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि महायुति का हिस्सा रहते हुए एक-दूसरे के प्रति सार्वजनिक रूप से इस तरह की नाराजगी जाहिर करना उचित है. श्रीरंग बारणे की नाराजगी न तो पार्टी के लिए है, न ही अजित पवार के लिए और न ही शिंदे के लिए. अगर प्रतापराव जाधव की जगह बारणे मंत्री पद की शपथ ले रहे होते तो उन्हें जो मिलता उससे वे संतुष्ट हो जाते. लेकिन उनका बयान तब आया है जब उन्हें केंद्रीय मंत्री के तौर पर शपथ नहीं दिलाई गई है. यह उनका गुस्सा और नाराजगी जाहिर करने का तरीका है."

सत्तारूढ़ गठबंधन में कलह पहली बार तब सामने आई जब अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने प्रफुल्ल पटेल के लिए राज्यमंत्री का पद स्वीकार करने से इनकार कर दिया.

मीडिया से बात करते हुए प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि "इस मामले को लेकर गलतफहमी पैदा की जा रही है."

प्रफुल्ल पटेल ने कहा, "मैं पहले भी कैबिनेट का हिस्सा रहा हूं. मुझे भी स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री को स्वीकार करने में आपत्ति थी, क्योंकि मेरे लिए इसका मतलब डिमोशन होता. इसलिए हमने बीजेपी नेतृत्व को सूचित कर दिया है और उन्होंने कहा है कि बस कुछ दिन और फिर हम सुधारात्मक कदम उठाएंगे."

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेन्द्र फडणवीस ने सोमवार, 10 जून को कहा कि मंत्रिमंडल में स्थान गठबंधन के भीतर तय कुछ मानदंडों के अनुसार आवंटित किए गए हैं और इन्हें किसी एक पार्टी (NCP) के लिए नहीं बदला जा सकता.

इस बीच, महाराष्ट्र से छह सांसदों ने पीएम मोदी के साथ मंत्री पद की शपथ ली- दो केंद्रीय मंत्री और चार राज्य मंत्री. इनमें से चार बीजेपी से हैं, जिनमें नितिन गडकरी भी शामिल हैं.

महायुति में असंतोष

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले महायुति में टकराव की स्थिति बनती दिख रही है. इस साल आम चुनाव मुख्यतः प्रदेश के मुद्दों पर लड़े गए, जैसे दो क्षेत्रीय दलों के टूटने से उपजा गुस्सा, कृषि संकट और मराठा आरक्षण.

साफ तौर पर ये मुद्दे मतदाताओं पर दबाव बनाये रखेंगे क्योंकि राज्य में विधानसभा चुनावों में अब ज्यादा समय नहीं बचा है.

शिवसेना और एनसीपी के भीतर अशांति और असंतोष के संकेत साफ हैं. नतीजों के बाद से, ये दोनों पार्टियां विधानसभा चुनावों में ज्यादा सीटों की अपनी मांग सार्वजनिक रूप से उठा रही हैं.

लोकसभा चुनाव के नतीजों से कुछ दिन पहले विधानसभा चुनाव में 80 सीटों की मांग करने के बाद, एनसीपी नेता छगन भुजबल ने सोमवार को कहा की प्रदेश के चुनाव में एनसीपी और शिवसेना दोनों को बराबर सीटें मिलनी चाहिए.

एक रैली को संबोधित करते हुए भुजबल ने कहा, "बीजेपी हमारे बड़े भाई की तरह है. हमने उनसे कहा है कि एकनाथ शिंदे की तरह हमारे पास भी 40-45 विधायक हैं. इसलिए दोनों पार्टियों को बराबर सीटें मिलनी चाहिए. किसी को यह नहीं मानना ​​चाहिए कि शिंदे की पार्टी के पास अब अधिक सांसद हैं, इसलिए उन्हें विधानसभा चुनाव में अधिक सीटें मिलनी चाहिए."

पिछले सप्ताह चुनाव नतीजे आने के तुरंत बाद अजित पवार द्वारा बुलाई गई बैठक में पार्टी के पांच विधायक नदारद थे, जबकि सोमवार को शिंदे की ओर से बुलाई गई बैठक में कई शिवसेना विधायकों ने कथित तौर पर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में "बीजेपी और एनसीपी सहयोगियों से कोई काम और समर्थन नहीं मिलने" की शिकायत की.

इस बीच, महाराष्ट्र के सर्वोच्च नेता के तौर पर फडणवीस की छवि भी सवालों के घेरे में आ गई है.

चुनावों में बीजेपी का स्ट्राइक रेट कांग्रेस, शिवसेना, शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार की एनसीपी से भी खराब रहा. क्षेत्रीय दलों को तोड़ने और अलग हुए गुटों, खासकर एनसीपी, के साथ हाथ मिलाने के उनके फैसले पर आरएसएस सहित कई राजनीतिक हलकों की ओर से सवाल खड़े किए जा रहे हैं.

बीजेपी की तीखी आलोचना करते हुए आरएसएस पदाधिकारी रतन शारदा ने संगठन के मुखपत्र 'ऑर्गनाइजर' के लिए लिखे संपादकीय में अजित पवार से हाथ मिलाने के पीछे के औचित्य पर सवाल उठाया और कहा कि यह "अनावश्यक राजनीति और टाले जा सकने वाले हेरफेर का प्रमुख उदाहरण है."

संपादकीय में लिखा गया है, "अजित पवार के नेतृत्व वाला एनसीपी गुट बीजेपी में शामिल हो गया, हालांकि बीजेपी और विभाजित शिवसेना के पास बहुमत था. शरद पवार दो-तीन साल में गायब हो जाते, क्योंकि चचेरे भाइयों के बीच आपसी लड़ाई की वजह से एनसीपी अपनी ऊर्जा खो देती. यह गलत कदम क्यों उठाया गया?"

आगे कहा गया,

"बीजेपी समर्थक इसलिए आहत हुए क्योंकि उन्होंने सालों तक कांग्रेस की विचारधारा के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और उन्हें सताया गया. एक ही झटके में बीजेपी ने अपनी ब्रांड वैल्यू कम कर दी. महाराष्ट्र में नंबर एक बनने के लिए सालों के संघर्ष के बाद, यह बिना किसी अंतर के एक और राजनीतिक पार्टी बन गई."

जबकि महायुति के दल आत्ममंथन में लगे हैं, 14 जून को मुंबई में बीजेपी विधायकों और राज्य के वरिष्ठ नेताओं की बैठक होने वाली है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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