महाराष्ट्र (Maharashtra) के संभाजी नगर (पहले औरंगाबाद) से लगभग 60 किलोमीटर दूर गंगापुर गांव के बाहर लगे एक साइनबोर्ड पर लिखा है, "जब तक मराठों को आरक्षण नहीं मिलता, तब तक नेताओंं के गांव में आने पर रोक है. हमें आरक्षण दें और फिर आप आ सकते हैं."
2018 में गंगापुर गांव सुर्खियों में रहा था, जब सकल मराठा समाज संगठन से जुड़े स्थानीय निवासी काकासाहेब शिंदे की 25 जुलाई, 2018 को गोदावरी नदी में कूदकर सुसाइड से मौत हो गई थी.
गंगापुर गांव के बाहर लगा बोर्ड मराठवाड़ा क्षेत्र के कई गांवों के बाहर देखा जा सकता है, जहां इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा मराठा आरक्षण है.
मराठा आरक्षण को लेकर पूरा समुदाय पहले के मुकाबले ज्यादा एकजुट और अपनी मांगों को लेकर मजबूती से खड़ा है. मराठा समुदाय लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले 'महायुति' गठबंधन के भाग्य का फैसला कर सकता है.
इस पूरे आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं समाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल (Manoj Jarange Pati).
इस साल जनवरी में राज्य सरकार द्वारा 10% आरक्षण की घोषणा की गई थी, फिर भी आंदोलन क्यों जारी है? यह सब कहां से शुरू हुआ? क्या मराठा सरकार से नाराज हैं? और क्या इस आंदोलन का असर आने वाले चुनावों पर पड़ेगा?
अंतरवाली सरती: आंदोलन का केंद्र
4000 की आबादी वाला महाराष्ट्र के जालना जिले का अंतरवाली सरती गांव मराठा आंदोलन का केंद्र है.
पिछले 8 महीनों से मराठा आरक्षण के मुद्दे पर राज्य और केंद्र सरकारें निशाने पर हैं. पिछले साल अगस्त से जरांगे पाटिल कई बार भूख हड़ताल कर चुके हैं. उन्होंने इस मुद्दे को लेकर कई मराठा संगठनों को एकजुट किया है. इसके साथ ही वो अपनी मांगों को पूरा करने के लिए सीएम एकनाथ शिंदे सहित राज्य मंत्रियों और राजनेताओं को मजबूर कर चुके हैं.
जालना और मराठवाड़ा में जरांगे एक जाना-माना नाम हैं. लेकिन स्थानीय प्रशासन की एक गलती ने न केवल उन्हें राज्य में घर-घर में लोकप्रिय बनाया, बल्कि मराठा समुदाय को आरक्षण की मांग के लिए एकजुट कर दिया.
अगस्त 2023 में जरांगे पाटिल भूख हड़ताल पर बैठ गए. 1 सितंबर को अधिकारियों ने उनके खराब सेहत का हवाला देते हुए उन्हें अस्पताल ले जाने की कोशिश की, तो प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हो गई, जहां ग्रामीणों पर लाठीचार्ज किया गया, और उन्हें तितर-बितर करने के लिए पैलेट गन और आंसू गैस के गोले दागे गए.
अंतरवाली सराती गांव के लोगों को आज भी वो दिन याद है.
43 वर्षीय विजय तारख अपनी पत्नी निर्मला के साथ गंभीर रूप से घायल हो गए थे. उस दिन को याद करते हुए वो कहते हैं, "लाठीचार्ज अचानक शुरू हुआ. उन लोगों ने बूढ़े लोगों पर भी हमला किया, पैलेट और आंसू गैस के गोले भी दागे."
विजय ने कहा, "मेरे सिर पर आठ टांके लगे हैं, छर्रे लगे हैं और पैर में चोट लगी है. ऐसे में हमें अस्पताल पहुंचने में एक घंटा लग गया. गांव की स्थिति चिंताजनक थी."
झड़प में घायल हुईं उनकी पत्नी निर्मला की हालत कई महीनों तक गंभीर बनी रही.
"मेरे सिर पर 27 टांके लगे हैं. उन्होंने दो हेलमेट से मेरी नाक पर वार किया. मेरी नाक कुचल गई थी, ऑपरेशन करना पड़ा. पुरुष अधिकारी महिलाओं को पीट रहे थे. मेरी दाहिनी आंख की नस क्षतिग्रस्त हो गई है. दाहिना हाथ और पैर अभी भी ठीक से काम नहीं कर रहा है. आठ महीने हो गए हैं लेकिन मैं अभी भी ठीक से काम नहीं कर पा रही हूं.''निर्मला
एक गलती की भारी राजनीतिक कीमत
ग्रामीणों की आपबीती और झड़प की तस्वीरें और वीडियो वायरल होने के बाद राज्य के कई हिस्सों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. सैकड़ों मराठा संगठन तुरंत जरांगे पाटिल के समर्थन में आ गए.
एक हफ्ते के अंदर ही आंदोलन इतना तेज हो गया जिसकी सरकार को उम्मीद भी नहीं थी. मनोज जरांगे पाटिल ने सभी मराठों को कुनबी मराठा घोषित करने की मांग की, जो मराठा समुदाय का एक उप-संप्रदाय है जिसे ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण दिया गया है.
इसके बाद राज्य सरकार की परेशानी और बढ़ गई.
राज्य की लगभग 38% ओबीसी आबादी ने विद्रोह कर दिया. जरांगे पाटिल की मांगों को न मानने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए गांवों में बड़े पैमाने पर ओबीसी सभाएं आयोजित की गईं. राज्य मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता छग्गन भुजबल ने मराठों के खिलाफ ओबीसी समुदाय का नेतृत्व किया.
लेकिन सरकार किसी भी समुदाय को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती थी. एकनाथ शिंदे सरकार ने एक समिति गठित की. अन्य बातों के अलावा, समिति को कुनबी के रूप में पहचाने जाने के इच्छुक मराठों के दावों पर भी गौर करना था. समिति ने लगभग 45,000 मराठों के दावों को सत्यापित करने के लिए सबसे पुराने सरकारी रिकॉर्ड भी हासिल किए और उन्हें कुनबी प्रमाणपत्र जारी किए.
लेकिन जरांगे पाटिल की मुख्य मांग अभी भी अधूरी थी - 'ऋषि-सोयारे' को आरक्षण, जिसमें कुनबी मराठा के रूप में पहचाने जाने वाले सभी लोगों के रिश्तेदारों को आरक्षण देने का वादा किया गया था.
जनवरी में मराठा प्रदर्शनकारियों ने मुंबई तक मार्च किया. लेकिन जब वे शहर की सीमा पर थे, शिंदे ने जरांगे से मुलाकात की, मराठों के लिए आरक्षण की घोषणा की, और एक जीआर सौंपा, जिसमें 'ऋषि-सोयारे' को आरक्षण देने का वादा किया गया था.
20 फरवरी को राज्य सरकार ने एक विशेष विधानसभा सत्र में मराठों को 10% आरक्षण देने की घोषणा की. लेकिन 'ऋषि-सोयारे' को आरक्षण देने वाले जीआर को लागू नहीं किया गया.
32 वर्षीय ललिता तारख जो पिछले साल अगस्त से जरांगे के आंदोलन से करीब से जुड़ी हैं, वो कहती हैं, "सरकार ने लाठीचार्ज किया. अगर वे पश्चाताप करना चाहते हैं, तो उन्हें बस 'ऋषि-सोयारे' जीआर को लागू करना होगा. अगर ऐसा हुआ तो सभी मराठा अपनी शिकायतें भूल जायेंगे. चाहे कोई भी सरकार सत्ता में हो, हम उस जीआर को लागू करने वाले को आशीर्वाद देंगे."
ओबीसी के रूप में पहचाने जाने की मांग क्यों?
राज्य सरकार इससे पहले दो बार मराठों को आरक्षण देने की कोशिश कर चुकी है. लेकिन दोनों बार इसे अदालतों ने खारिज कर दिया. इसलिए, 10% आरक्षण के बावजूद, जरांगे-पाटिल ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण पाने के अपने रुख पर अड़े हुए हैं.
पूरे आंदोलन के दौरान जरांगे पाटिल और उनके समर्थक पुलिस द्वारा कथित तौर पर ग्रामीणों पर हमला करने के लिए डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को दोषी ठहरा रहे हैं. उनके और भुजबल के बीच तीखी नोकझोंक हुई है.
राज्य सरकार ने मराठा आंदोलन को मिलने वाली फंडिंग और राजनीतिक समर्थन की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया है. दूसरी तरफ जरांगे पाटिल ने फिर से विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया, लेकिन चुनाव लड़ने से दूरी बना ली.
मराठा किस ओर जा रहे हैं?
मराठवाड़ा में आठ लोकसभा सीटें हैं - नांदेड़, बीड, जालना, लातूर, औरंगाबाद, हिंगोली, उस्मानाबाद और परभणी.
2019 में सेना-बीजेपी गठबंधन को औसत मतदान प्रतिशत 47.8% रहा था. 2009 से 2024 के बीच बीजेपी इस क्षेत्र में अपनी सीटें 2 से बढ़ाकर 5 करने में कामयाब रही है.
2019 में हर सीट पर बीजेपी-सेना बनाम कांग्रेस-एनसीपी के बीच सीधी लड़ाई थी. लेकिन अबकी बार मराठा बनाम ओबीसी का मुद्दा हावी रहने और दो प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियों में टूट की वजह से वोट बंट सकते हैं.
आठ सीटों में से:
तीन सीटों- नांदेड़, जालना और लातूर में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है
दो सीटों- औरंगाबाद और हिंगोली में शिवसेना बनाम शिवसेना (यूबीटी) की वजह से वोट बंटेंगे
बीड में बीजेपी और एनसीपी (शरद पवार) के बीच मुकाबला है, वहीं उस्मानाबाद में एनसीपी (अजित पवार) और सेना (यूबीटी) के बीच मुकाबला है
परभणी सीट पर एनडीए की सहयोगी राष्ट्रीय समाज पक्ष चुनाव लड़ रहा है
मराठा समुदाय कैसे स्थिति बदल सकता है, इसे 2019 औरंगाबाद लोकसभा चुनाव के नतीजों से समझा जा सकता है. औरंगाबाद के मराठा निर्दलीय उम्मीदवार हर्षवर्धन जाधव के साथ थे, जिन्हें 2.83 लाख वोट मिले, जिसके परिणामस्वरूप चार बार के सांसद चंद्रकांत खैरे की 4,000 वोटों से हार हुई और AIMIM के इम्तियाज जलील की पहली बार जीत हुई.
उद्धव ठाकरे से लेकर पीएम मोदी तक हर पार्टी इस बार चुनाव प्रचार के लिए मराठवाड़ा पहुंची है.
दरअसल, पीएम मोदी का परभणी में राष्ट्रीय समाज पक्ष (RSP) के उम्मीदवार के लिए प्रचार करना इस बात का संकेत था कि बीजेपी और महायुति मराठा समुदाय के भीतर बीजेपी विरोधी लहर से निपटने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है.
ललिता कहती हैं, "सरकार ने सोचा कि वह मराठों को मूर्ख बना सकती है. उन्होंने सोचा कि मराठा चुप रहेंगे. लेकिन अब वे देखेंगे कि हम क्या करने में सक्षम हैं. जब हम मुंबई पहुंचे तो उन्होंने हमें बड़े सपने दिखाए लेकिन इस चुनाव में हम दिखाएंगे कि सपने क्या होते हैं. वे समझ जाएंगे कि मराठा क्या कर सकते हैं."
अंतरवाली सराती के अधिकांश मतदाता भी ललिता की तरह ही सरकार द्वारा 'छला हुआ' महसूस कर रहे हैं.
अंतरवाली सराती की पूर्व उपसरपंच मीराबाई तारख ने कहा कि समुदाय किसी भी ऐसे नेता या पार्टी के साथ खड़ा नहीं होगा जो आरक्षण की उनकी मांग में उनके साथ खड़ा नहीं हुआ.
मीराबाई की कहती हैं, "हम जानते हैं कि किसे वोट देना है और हम यह भी जानते हैं कि किसे वोट नहीं देना है. हमें परेशान करने वाले को हम वोट नहीं देंगे, चाहे वह किसी भी पार्टी का हो. हम उन लोगों के साथ खड़े रहेंगे जो हमारी मदद करेंगे. और हम अपने लिए आरक्षण लेकर रहेंगे.''
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)