1989 में "तिलक तराज़ू और तलवार..इंको मारो जूते चार" से लेकर 2007 में "हाथी नहीं गणेश है... ब्रह्मा विष्णु महेश है" तक, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने प्रमुख जातियों, खासकर ब्राह्मणों को लुभाने में एक लंबा सफर तय किया है. पार्टी ने एक बार फिर ब्राह्मणों के बीच अपनी पहुंच शुरू कर दी है और इसका नेतृत्व बीएसपी सुप्रीमो मायावती के करीबी सतीश चंद्र मिश्रा कर रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि पार्टी अपनी दलित-ब्राह्मण सामाजिक इंजीनियरिंग को पुनर्जीवित करना चाहती है जिसने 2007 में उसे बहुमत हासिल करने में मदद की थी.
हालांकि, इस बार पार्टी की रणनीति में एक महत्वपूर्ण अंतर दिख रहा है- वो है हिन्दुत्व का रंग, जिसपर किसी का ध्यान नहीं गया है. बीएसपी ने अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा उठाया है - जिसकी हिमायती अब तक सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी रही है.
23 जुलाई को अयोध्या में बीएसपी के एक कार्यक्रम में मिश्रा ने कहा, "अगर बीएसपी सत्ता में आती है तो राम मंदिर के निर्माण में तेजी लाएगी."
अयोध्या के बाद, बीएसपी अन्य प्रमुख मंदिरों वाले शहरों में भी इस तरह के सम्मेलन आयोजित करने की योजना बना रही है, जिनमें मथुरा, वाराणसी समेत चित्रकूट शामिल है. चित्रकूट में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) ने हाल ही में आगामी विधानसभा चुवानों को देखते हुए चार दिवसीय विचार-मंथन कार्यक्रम का आयोजन किया था.
बीएसपी को लगता है कि योगी आदित्यनाथ के शासन से ब्राह्मणों का मोहभंग हो गया है और वह खुद को उनके हितों की रक्षा करने वाली एक वैकल्पिक पार्टी के रूप में पेश करके इसका फायदा उठाने की कोशिश कर रही है.
ब्राह्मण, राम मंदिर और खुशी दुबे
बीएसपी ने ब्राह्मण सम्मेलन कर ब्राह्मणों के बीच अपनी पहुंच बढ़ानी शुरू कर दी है, जिसे शुक्रवार को अयोध्या में सम्मेलन का नाम बदलकर "प्रबुद्ध वर्ग" (बौद्धिक वर्ग) के लिए "विचार गोष्ठी" कर दिया गया.
अपने भाषण के दौरान, सतीश मिश्रा ने राज्य में ब्राह्मणों के कथित उत्पीड़न, राम मंदिर के निर्माण में देरी और मारे गए गैंगस्टर अमर दुबे की पत्नी खुशी दुबे की कैद समेत कई मुद्दों का जिक्र किया.
बीजेपी पर निशाना साधते हुए मिश्रा ने राम मंदिर के निर्माण में देरी पर सवाल उठाया और 2022 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने पर इसमें तेजी लाने का वादा किया. उन्होंने भगवान राम के राजनीतिकरण के लिए सत्तारूढ़ दल को भी दोषी ठहराया.
"यह बीजेपी की संकीर्णता है कि वे सोचते हैं कि भगवान राम उनके हैं. वो सभी के हैं. हमें दया आती है जब लोग भगवान राम को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं."सतीश चंद्र मिश्रा, महासचिव, बीएसपी
साथ ही दावा किया कि बीजेपी की 'उत्पीड़न नीति' के कारण ब्राह्मण समाज का पार्टी से मोह भंग हो गया है, मिश्रा ने कहा कि ब्राह्मण समाज के लोग बीएसपी के सपोर्ट में रैली करेंगे और 2007 की तरह बीएसपी की 'नैया' पार लगाएंगे. मिश्रा ने अयोध्या में स्थानीय मीडिया से बात करते हुए कहा, "ब्राह्मण समुदाय उत्पीड़ित, प्रताड़ित और दरकिनार महसूस कर रहा है. जब ब्राह्मण समर्थन देते हैं, तो सभी समुदाय उसके पीछे संगठित हो जाते हैं. "
साथ ही चुनाव में गठबंधन के मुद्दे पर बोलते हुए मिश्रा ने कहा, "यूपी में बीएसपी अकेले लड़ेगी और किसी के साथ गठबंधन में नहीं आएगी. हम राज्य के 'सर्व समाज' (सभी समुदायों) के लोगों के साथ गठबंधन में रहेंगे. हमने 2007 में भी 'सर्व समाज' के साथ गठबंधन किया है. , हमने सर्व समाज के साथ एक भाईचारे का गठबंधन बनाया, और पूरे ब्राह्मण समुदाय ने गठबंधन में योगदान दिया, जिसने पूर्ण बहुमत के साथ बीएसपी सरकार बनाने में मदद की.”
कौन हैं खुशी दुबे?
17 वर्षीय खुशी दुबे, कुख्यात गैंगस्टर अमर दुबे की पत्नी हैं, दोनों की शादी 29 जून 2020 के कानपुर के बिकरू गांव में ड्यूटी के दौरान 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के तीन दिन पहले हुई थी. अमर दुबे गैंगस्टर विकास दुबे का करीबी सहयोगी था.
खुशी को वैवाहिक जीवन के तीन दिन बाद ही यानी 3 जुलाई को हिरासत में ले लिया गया था. 8 जुलाई को खुशी के पति अमर दुबे को पुलिस ने मुठभेढ़ में मार गिराया था. उसी दिन खुशी दुबे को भी आधिकारिक तौर पर गिरफ्तार कर लिया गया. तब से वह जेल में है. खुशी को अभी तक अदालत से कोई राहत नहीं मिली है. जबकि कई लोगों का मानना है कि 2 जुलाई को हुई मुठभेड़ के बाद अमर से संबंध होने के कारण खुशी को फंसाया गया है.
तो वहीं खुशी दुबे के मामले को लेकर बीएसपी नेता सतीश मिश्रा ने कहा कि
"ख़ुशी दुबे का मामला बहुत संवेदनशील है. शादी के बमुश्किल एक दिन बाद 16 वर्षीय लड़की को हत्या सहित गंभीर धाराओं के तहत जेल में डाल दिया गया था. अगर वो कोई कानूनी मदद चाहती हैं, तो हम अपनी क्षमता के अनुसार उनकी हर संभव मदद करेंगे."सतीश चंद्र मिश्रा, महासचिव, बीएसपी
खुशी के वकील शिवकांत दीक्षित का दावा है कि वह उनकी कानूनी लड़ाई को लेकर राजनीति में नहीं आएंगे, लेकिन जो भी मदद करने को तैयार है उसका स्वागत करते हैं.
"मुझे सतीश चंद्र मिश्रा का फोन आया और उन्होंने मामले के बारे में जानकारी मांगी. खुशी ने बहुत कुछ झेला है और अगर कोई मदद करने को तैयार है, तो हम उस व्यक्ति का स्वागत करेंगे. लेकिन मैंने कहा है कि हम इस मामले का राजनीतिकरण नहीं करना चाहते हैं."शिवकांत दीक्षित, वकील, खुशी दुबे
2007 से अब कितना बदल गए हैं हालात ?
2007 को दोहराने की बात कहना आसान है लेकिन करना मुश्किल. हालात उस समय से बहुत अलग है. तब बीएसपी अपने दम पर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर विराजमान हुई थी.
कहा जाता है कि 2007 में समाजवादी पार्टी के खिलाफ ब्राह्मण-दलित का गठबंधन बीएसपी के लिए जीत का फॉर्मूला रहा था. लेकिन अब ब्राह्मण और दलित वोटरों को एक साथ लाना आसान नहीं होगा.
2014 से बीजेपी को ब्राह्मण समेत उच्च जातियों का सपोर्ट अबाधित तरीके से मिल रहा है, जिसकी आबादी राज्य में करीब 11 फीसदी के है. अगर बीजेपी राज्य में अपनी जीत का सिलसिला जारी रखना चाहती है तो इस समर्थन को भी बनाए रखना जरूरी है.
यहां तक कि अगर ब्राह्मण बीजेपी से दूर जाने का फैसला करते हैं, तब भी बीएसपी को सपा और कांग्रेस से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा, जो उच्च जातियों, खासकर ब्राह्मणों पर बीजेपी के एकाधिकार को तोड़ने की असफल कोशिश कर रहे हैं. बीएसपी के लिए एक और समस्या यह है कि उसके मूल दलित वोट बैंक पर उसकी पकड़ कम हो रही है, जिसका मुख्य कारण इस वर्ग में बीजेपी की पैठ है. बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी 17 एससी आरक्षित सीटों पर और 2019 के चुनाव में 17 में से 15 सीटों पर जीत हासिल की थी.
बीजेपी का दबदबा मुख्य रूप से गैर जाटव दलितों के बीच रहा है
जाटवों के बीच बीएसपी के पारंपरिक आधार को भी चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी (एएसपी) के उदय से खतरा है. हालांकि एएसपी अभी तक चुनावी रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सक्षम नहीं हो पाई है, लेकिन संगठन ने पश्चिम यूपी के कई जिलों में गहरी पैठ बना ली है.
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