"नॉर्थ ईस्ट में भी बीजेपी का डंका"
"BJP की जीत के बाद कमजोर पड़ा विपक्ष"
"नॉर्थ ईस्ट में कमल... देश मोदी पर अटल"
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा (Tripura), मेघालय (Meghalaya) और नागालैंड (Nagaland) में विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद न्यूज चैनल से लेकर न्यूज वेबसाइट पर ऐसी ही कुछ हेडलाइन देखने को मिली. लेकिन क्या सच में ऐसा है?
त्रिपुरा के चुनावी रिजल्ट को देखकर शायद वाह-वाह बीजेपी कहा जा सकता है (बीजेपी ने यहां 60 में से 32 सीटें जीती हैं), नागालैंड का रिजल्ट देखकर आपके मुंह से निकले 'ओके, ठीक है' (बीजेपी ने पिछली बार की तरह 12 सीटे जीती हैं), लेकिन मेघालय विधानसभा चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि ब्रांड मोदी का जादू नहीं चला. ऐसा हम क्यों कह रहे हैं ये इस आर्टिकल में आप आगे समझेंगे.
दो चुनावों में मेघालय में बीजेपी का हाल
बीजेपी ने मेघालय में अपना पांव पसारने के लिए काफी कोशिशें की. इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि पीएम मोदी ने चुनाव से दो महीने पहले 18 दिसंबर, 2022 को अपनी यात्रा के दौरान मेघालय में लगभग 2,450 करोड़ रुपये की कई परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया.
इसके बाद 24 फरवरी को फिर से पीएम मोदी मेघालय पहुंचे और एक रोड शो में हिस्सा लिया, पश्चिमी मेघालय के तुरा में रैली की. इसके अलावा बीजेपी नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत पार्टी के कई बड़े नेताओं ने चुनावी रैलियों को संबोधित किया.
जब पीएम मोदी ने मेघालय में रोड शो किया था तब मेघालय भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अर्नेस्ट मावरी ने दावा किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेघालय यात्रा, विशेष रूप से उनका रोड शो बीजेपी के वोट शेयर को बढ़ाने में मदद करेगा. उन्होंने कहा था,
"हमें बहुत उम्मीद है कि, हमारा वोट शेयर 25-30 प्रतिशत तक बढ़ सकता है. 2018 में, हमारा वोट शेयर 9.6 प्रतिशत था. इस बार प्रधानमंत्री के राज्य के दौरे के बाद हमारा वोट शेयर बढ़ेगा."
लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ये पहला मौका था जब मेघालय विधानसभा चुनाव (Meghalaya Elections) में बीजेपी ने सभी 60 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन ये सब फिर भी बीजेपी के आगे बढ़ने में काम नहीं आया.
ईसाई बहुल मेघालय ने बीजेपी को पिछली बार की तरह इस बार भी दो सीटों पर समेट दिया. सच तो यह है कि बीजेपी के प्रदर्शन में पिछले चुनाव से कोई सुधार नहीं हुआ. उलटा बीजेपी का वोट शेयर गिर गया.
2018 में, बीजेपी ने सिर्फ 47 सीटों पर चुनाव लड़ा था और कुल 9.6% वोट शेयर हासिल कर पाई थी. वहीं इस बार बीजेपी ने सभी 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे फिर भी उसका वोट शेयर 0.3% घटकर 9.33% पर सिमट गया. मतलब पिछली बार से 13 ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी वोट शेयर और सीट दोनों ही नहीं बढ़ सके.
पिछले चुनाव की तरह इस बार भी मेघालय में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है. बहुमत के लिए 31 सीटें जीतना जरूरी है. नेशनल पीपल्स पार्टी (NPP) 26 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी है. इसके अलावा पिछले चुनाव में एनपीपी को समर्थन देने वाली पार्टी युनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (UDP) को 11 सीटों पर जीत मिली है. TMC ने पहली बार सीटों का खाता खोला और 5 सीटें जीत ली. कांग्रेस (Congress) जो पिछली बार सबसे बड़ी पार्टी थी वो 5 सीटों पर सिमट गई है. वॉइस ऑफ द पीपुल्स पार्टी (VPP) को 4 सीटें, BJP को 2 सीटें मिली, फिर एचएसपीडीपी (HSPDP) ने 1 सीटों पर जीत दर्ज की है, 2 निर्दलीय उम्मीदवार भी जीते हैं.
ईसाई बहुल मेघालय ने क्यों बीजेपी को नकारा?
बता दें कि मेघालय में करीब 70 फीसदी से ज्यादा आबादी ईसाई धर्म को मानने वाली है. मेघालय में चुनाव के दौरान दो विपक्षी पार्टियां- तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस- बीजेपी पर "ईसाई-विरोधी" और "बाहरी लोगों" का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी होने का आरोप लगाती रहीं. वहीं पड़ोसी राज्य असम में बीजेपी सरकार द्वारा धर्मांतरण के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान से बीजेपी के खिलाफ इस नैरेटिव को मजबूती भी मिली.
चुनाव से पहले, राज्य के कई प्रभावशाली चर्च निकायों ने भारत के कई हिस्सों में "ईसाई समुदाय पर बढ़ते हमले और प्रधानमंत्री की चुप्पी का मुद्दा भी उठाया था.
भले ही बीजेपी ने स्थानीय संवेदनाओं को पूरा करने के लिए गोमांस खाने जैसे कई विषयों पर अपने कट्टर रुख को कम किया लेकिन इसके बावजूद ईसाई-बहुल राज्य में अपने "हिंदुत्व" टैग को हटाने में ज्यादा कामयाब नहीं हो सकी.
बीजेपी किन सीटों पर जीत सकी?
दक्षिण शिलांग से संबोर शुल्लई और शिलांग के उत्तरी भाग में पिनथोरुमखराह सीट से अलेक्जेंडर लालू हेक. ये दोनों सीट शिलॉन्ग और उसके आसपास हैं, जहां प्रवासी मतदाताओं की एक बड़ी संख्या है. मतलब मेघालय की प्रवासी आबादी भले ही बीजेपी के साथ टिकी हो लेकिन वहां के बड़ी आबादी बीजेपी की राजनीति को अब भी तरजीह नहीं दे रही है.
BJP के रास्ते में क्षेत्रीय पार्टी रुकावट?
मेघालय में बीजेपी के रास्ते में रुकावट उसकी हिंदुत्व छवि ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय दलों की मौजूदगी भी है. सभी क्षेत्रीय दलों का जाति और क्षेत्र के आधार पर अपना वोटर बेस है. यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी, जो खासी राष्ट्रवाद का समर्थन करती है, वो इस चुनाव में 11 सीट जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. इसके अलावा वॉइस ऑफ द पीपल्स पार्टी ने 12 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से चार पर जीत हासिल की. पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट और हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को भी दो-दो सीटें मिलीं.
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