विदेश राज्यमंत्री जनाब एमजे अकबर ने अपने बचाव के लिए 97 वकील तैनात किए हैं. लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि अकबर ने अपना पद नहीं छोड़ने की जो दलीलें दी हैं, उन पर ठहाका लगाया जाए या सिर पीटा जाए.
अकबर पर लगे तमाम आरोप उन दिनों के हैं, जब वो एशियन एज अखबार चलाते थे और उसके एडिटर भी थे. उन पर एक-दो नहीं, अब तक करीब एक दर्जन महिलाओं ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं, वो भी छोटे-छोटे डिटेल के साथ. जब पहला आरोप लगा, तो वो नाइजीरिया दौरे पर निकल गए थे. जब लौटे, तब तक एक दर्जन महिलाएं उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायतें लेकर सामने आ चुकी हैं.
इस्तीफा नहीं देने की दलीलें बेदम
सबको यही लग रहा था कि अकबर लौटकर अपने पद से इस्तीफा देंगे. अगर खुद नहीं देंगे, तो पीएम नरेंद्र मोदी उनसे इस्तीफा ले लेंगे. लेकिन उन्होंने पद छोड़ने से साफ मना कर दिया और ऐसा बयान दिया, जो कुतर्कों से भरा है.
आइए उनके बयान को तर्कों की कसौटी पर कसकर देखते हैं...
अकबर कहते हैं:
मेरे खिलाफ लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप बेबुनियाद हैं, क्योंकि उसके सबूत नहीं हैं?
मेरा तर्क:
अकबर साहिब, आप किस तरह के सबूत चाहते हैं? क्या आप वीडियो के अलावा कोई सबूत नहीं मानेंगे? अरे ऐसे मामलों में तो अदालतें भी गवाहों और मौका-ए-वारदात के हालात के सबूतों के आधार पर फैसला करती हैं. आपके खिलाफ तो करीब 12 महिलाओं ने आरोप लगाए हैं. मतलब गवाह और हालात के सबूत तो आपके खिलाफ दिख रहे हैं.
अकबर कहते हैं:
मेरे खिलाफ लगे आरोप कपटपूर्ण और मनगढ़ंत हैं. मैं पहले जवाब नहीं दे पाया, क्योंकि सरकारी दौरे पर विदेश में था.
मेरा तर्क:
अकबर महाशय, ये सामान्य आरोप नहीं है, यौन उत्पीड़न का मामला है. जब आप विदेश दौरे पर जाने वाले थे, तभी आरोप सामने आने शुरू हो गए थे और इतने गंभीर आरोप का जवाब देने के लिए आपको विदेश यात्रा छोड़कर लौटना चाहिए था.
अकबर कहते हैं:
कुछ लोग वायरल फीवर की तरह आरोप लगा रहे हैं? मेरे वकील कानूनी कदम उठाएंगे.
मेरा तर्क:
हर आरोपों में वकील के जरिए ही कानूनी कदम उठाए जाते हैं. लेकिन अगर आरोप गंभीर होते हैं, तो अदालत से दोषमुक्त होने तक आरोपी को सार्वजनिक पद में नहीं रहना चाहिए. आप एडिटर रह चुके हैं, इसलिए जानते होंगे कि आप जिस पद पर हैं, उससे जांच पर असर पड़ सकता है. वरिष्ठ पत्रकार होने के नाते आप जानते होंगे कि निष्पक्ष जांच के लिए मंत्री पद से हटना जरूरी है.
अकबर कहते हैं:
प्रिया रमानी की स्टोरी गलत है, बेबुनियाद है. शुतापा पॉल कह रही हैं कि मैंने उन पर कभी हाथ भी नहीं लगाया, शुमा राहा भी यही कह रही हैं. अंजू भारती बकवास दावा कर रही हैं कि मैं स्विमिंग पूल में पार्टी कर रहा था. मैं तैरना ही नहीं जानता.
मेरा तर्क:
अकबर साहब, आपकी ये दलील बचकाना है कि तैरना नहीं जानता, इसलिए स्विमिंग पूल में पार्टी नहीं हो सकती. स्विमिंग पूल पार्टी तो हमेशा पूल के किनारे ही होती, पानी के अंदर नहीं. इसके अलावा ऐसी पार्टियां जहां होती हैं, वहां स्विमिंग पूल की गहराई सिर्फ इतनी होती है कि 5 फुट 5 इंच कद वाला व्यक्ति भी आराम से पानी के अंदर खड़ा हो सके. दूसरा, शारीरिक उत्पीड़न के अलावा मानसिक उत्पीड़न भी बड़ा अपराध है.
अकबर का कुतर्क:
गजाला वहाब का आरोप है कि 21 साल पहले दफ्तर में उनका यौन उत्पीड़न हुआ. ये मेरे सार्वजनिक जीवन में आने के 16 साल पहले की बात है, तब मैं मीडिया में था. सिर्फ एशियन एज में मैंने उनके साथ काम किया है. जिस वक्त के बारे में वो आरोप लगा रही हैं, तब मैं प्लाईवुड और ग्लास के छोटे से चेम्बर में बैठता था. बाकी लोग 2 फुट दूर बैठते थे. ये असंभव है कि उत्पीड़न के बारे में किसी को पता न चले?
मेरा तर्क:
श्रीमान अकबर जी, गजाला वहाब भी एशियन ऐज के दिनों की ही बात कर रही हैं. वो भी यही बता रही हैं कि आपकी हरकतों के बारे में दफ्तर में कई लोगों को पता था और कई लोगों को उन्होंने खुद बताया था. आप कह रहे हैं कि वर्किंग डे में ऐसा मुमकिन नहीं है, जबकि आप पर लगे सारे आरोपों में लड़कियां यही कह रही हैं कि वर्किंग डे के दौरान ही उनके साथ बदसलूकी हुई.
इसके अलावा न्यूयॉर्क की रिपोर्टर मैजली दे कैंप के आरोपों के बारे में आप क्या कहेंगे? उनका कहना है कि जब वो 18 साल की थीं, तब आपने उन्हें जबरन किस किया था.
अकबर कहते हैं:
आम चुनाव के पहले तूफान क्यों खड़ा किया गया, क्या इसमें कोई एजेंडा है? मेरी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की साजिश है.
मेरी दलील:
अकबर साहिब, अपनी बदनामी को आम चुनाव से जोड़ने का क्या मतलब? क्या आप इस सरकार में सबसे ज्यादा जनाधार वाले मंत्री हैं? क्या आम चुनाव आपके नाम और काम पर लड़ा जाने वाला है? सब जानते हैं कि आप राजनीतिक तौर पर इतने वजनदार नहीं हैं कि इमेज खराब करने के लिए ऐसी साजिश करनी पड़े कि करीब 12 महिलाएं एक जैसे आरोप लगाएं, वो भी मौका-ए-वारदात की जानकारी के साथ.
और आखिर में
आपके पास इस्तीफा देना ही एकमात्र विकल्प है. पत्रकार के तौर पर आप अक्सर वकालत करते रहे हैं कि सार्वजनिक पदों पर रहने वालों लोगों को बेदाग साबित होने तक पद छोड़ देना चाहिए. आपकी इस दलील में भी कोई दम नहीं है कि इतनी महिलाएं बिना सबूत के सिर्फ आपके खिलाफ साजिश की वजह से इतने गंभीर आरोप लगा रही हैं.
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