लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी ने कई रिकॉर्ड तोड़े थे. इसमें सबसे शानदार रिकॉर्ड ये था कि बीजेपी को पिछले आम चुनाव के मुकाबले 2014 में 12 प्रतिशत ज्यादा मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ था. इन चुनावों में बीजेपी को सबसे अच्छा कन्वर्जन रेशियो मिला (मतदान प्रतिशत के मुकाबले जीती गईं सीटें) जिसके चलते पार्टी लोकसभा में अपने दम पर बहुमत में आ गई.
ऐसा पहली बार हुआ था कि बीजेपी ने 30% से ज्यादा वोटों पर कब्जा किया.
समान जनसांख्यिकीय वाले दो राज्यों, उत्तर प्रदेश और बिहार, ने बीजेपी की इस शानदार सफलता में सबसे अच्छा योगदान दिया था.
राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में बीजेपी का वोट प्रतिशत 2009 के लोकसभा चुनावों के लगभग 18% के मुकाबले 2014 में 42.3% तक पहुंच गया. इस तरह पार्टी ने इस प्रदेश में 24% का पॉजिटिव वोट स्विंग हासिल करने में सफलता प्राप्त की. बिहार में भी पार्टी को 2014 के लोकसभा चुनावों में पिछले आम चुनावों के मुकाबल 15% ज्यादा वोट मिले थे.
पार्टी का खिसका जनाधार
- बीजेपी ने 2014 में पिछले आम चुनावों के मुकाबले 12% ज्यादा मतदाताओं का विश्वास हासिल करते हुए 30% वोट शेयर पर कब्जा जमाया था.
- बीजेपी की इस सफलता में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों का महत्वपूर्ण योगदान था. 2015 के बिहार चुनावों में बीजेपी के वोट शेयर में लगभग 5% की कमी आई और यह 25% से भी नीचे रह गया.
- वोट शेयर में ये गिरावट व्यापक सामाजिक गठबंधन बनाने की कोशिश में लगी बीजेपी के लिए एक जोरदार झटका है.
- बिहार में बीजेपी को अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में असफलता का सामना करना पड़ा जिससे पता चलता है कि बीजेपी अभी भी ऊंची जातियों और शहरी मध्यवर्ग की पार्टी बनी हुई है.
फिर पुराने औसत पर लौटी पार्टी?
इन राज्यों में बीजेपी को यह सफलता अपने बढ़े हुए सामाजिक आधार के कारण मिली थी. पार्टी को अपने परंपरागत व्यापारी और ऊंची जातियों के वोटों के अलावा दलितों और पिछड़ी जातियों से भी पर्याप्त समर्थन मिला था.
उदाहरण के तौर पर, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज के आंकड़ों के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने बिहार में अति-पिछड़ा वर्ग के अधिकांश वोटों पर कब्जा जमाया था.
वहीं, उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने एक तिहाई से अधिक दलित वोटों पर कब्जा जमाते हुए शानदार सफलता हासिल की थी. राष्ट्रीय स्तर पर भी बीजेपी ने अन्य पिछड़े वर्गों में अच्छी पैठ बनाई थी.
तब और अब
लेकिन, ये आंकड़े 2014 के हैं और बिहार चुनाव में बीजेपी को मिले वोट शेयर को देखें तो ऐसा लगता है कि दो साल से भी कम समय में बीजेपी के प्रदर्शन में नाटकीय ढंग से बदलाव आया है. हालिया बिहार विधानसभा चुनावों में बीजेपी के वोटर शेयर में लगभग 5 प्रतिशत की कमी आई है. ये खिसककर 25% से भी नीचे आ गया.
बिहार चुनावों में हारने से ज्यादा बीजेपी को यहां अपने खिसकते जनाधार की चिंता करनी चाहिए. ये शायद बीजेपी के व्यापक सामाजिक गठबंधन में टूट का शुरुआती संकेत है जिसके निर्माण के लिए पार्टी प्रयासरत रही है.
यह बात जेहन में रखनी होगी कि पिछले दो दशकों में राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के वोट शेयर में लगभग 20% की बढ़ोतरी हुई है. अयोध्या आंदोलन के चलते पार्टी ने 1991 में पहली बार 20% मतों का आंकड़ा पार किया था. साल 1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 25.59% वोटों पर कब्जा जमाया था. इसके बाद लगातार लोकसभा चुनावों में बीजेपी के मत प्रतिशत में कमी आई और आखिरकार 2014 के आम चुनावों में इसने जबर्दस्त बढ़ोतरी दर्ज की.
विपक्ष की एकता का सूचकांक?
क्या बिहार में बीजेपी के वोट शेयर में कमी पार्टी के पिछली स्थिति में आने का संकेत है?
हालांकि बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजों का व्यापक विश्लेषण जाति और समुदाय आधारित आंकड़े जारी होने के बाद ही किया जा सकेगा. लेकिन, एक बात तो तय है कि बीजेपी के जनाधार में यह कमी सिर्फ विपक्ष की एकता के कारण ही नहीं हुई है.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि विपक्ष की एकता ने बीजेपी के जनाधार में भी पैठ बनाकर बीजेपी की राह मुश्किल की. लेकिन ऐसा क्यों कि बीजेपी के वोट शेयर में गठबंधन के अपने साथियों के मुकाबले कहीं ज्यादा कमी देखने को मिली?
एनडीए के वोट शेयर में जहां लगभग 4% की कमी देखने को मिली, वहीं बीजेपी का वोट शेयर करीब 5% तक घट गया. ये तब हुआ है जब निर्दलीय उम्मीदवारों और छोटी पार्टियों ने लगभग 22 प्रतिशत मतों पर कब्जा जमाया.
गांवों में कमजोर हुई पकड़
बीजेपी के लिए बड़ी चिंता बिहार के ग्रामीण इलाकों में खिसका जनाधार है. संयोग से 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने देश के ग्रामीण इलाकों की 52 प्रतिशत सीटों पर कब्जा किया था. सीएसडीएस के डाटा के मुताबिक, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बीजेपी को शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा वोट मिले थे.
बिहार चुनावों में बीजेपी ने जहां अधिकांश ग्रामीण सीटें गवाईं वहीं कई शहरी इलाकों में अच्छा प्रदर्शन किया. इससे पता चलता है कि बीजेपी फिर से वही पुरानी पार्टी बनती जा रही है जिसे ऊंची जातियों और शहरी मध्यम वर्ग का समर्थन हासिल था.
सिर्फ एक चुनाव के आधार पर किसी भी तरह के नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी. लेकिन बिहार विधानसभा चुनावों से एक बात तो पता चलती ही है कि कट्टर हिंदुत्व की अपील बहुत सीमित है. बीजेपी को 30 प्रतिशत से ज्यादा वोट शेयर पाने में विकास के वादे ने ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
जैसे ही लोगों को इस वादे में शंका हुई, बिहार में पार्टी के वोट शेयर में बड़ी गिरावट देखने को मिली और यह पहले वाली स्थिति में पहुंच गई है.
(लेखक बिजनस स्टैंडर्ड के लिए लिखते हैं)
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