बिहार (Bihar) में क्षेत्रीय पार्टियों की कमी नहीं है और किसी भी पार्टी को नजरअंदाज या कम आंका भी नहीं जा सकता. ऐसी ही एक पार्टी - विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के अध्यक्ष मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) अब राज्य के महागठबंधन का हिस्सा बन गए हैं. तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने वीआईपी को आरजेडी (RJD) के कोटे से तीन सीटें दी हैं.
मुकेश सहनी की पार्टी गोपालगंज, झंझारपुर और मोतिहारी से लड़ेगी.
गोपालगंज का चुनावी समीकरण
गोपालगंज से वीआईपी का सामना जेडीयू के आलोक कुमार सुमन से होगा जो इसी सीट से मौजूदा सांसद हैं. 2019 के चुनाव में आलोक कुमार सुमन ने 55.4% वोट पाए थे और आरजेडी 27.4% वोट के साथ दूसरे पायदान पर थी. वहीं नोटा 5% वोटों के साथ तीसरे पायदान पर रहा.
वहीं 2014 में समीकरण बिलकुल अलग थे. तब बीजेपी ने 53% वोट के साथ जीत दर्ज की थी. जबकि दूसरे पायदान पर कांग्रेस और तीसरे पायदान पर जेडीयू रही थी.
झंझारपुर का चुनावी समीकरण
झंझारपुर से जेडीयू ने मौजूदा सांसद रामप्रीत मंडल को ही टिकट दिया है. 2019 में रामप्रीत मंडल ने इस सीट से 56.8% वोट पाकर बंपर जीत हासिल की थी. वहीं आरजेडी दूसरे पायदपन पर थी.
इस सीट पर भी 2014 में समीकरण अलग थे. बीजेपी ने 5% के वोट मार्जिन के साथ जीत हासिल की थी और दूसरे पायदान पर आरजेडी और तीसरे पर जेडीयू थी.
मोतिहारी का चुनावी समीकरण
बीजेपी ने मोतिहारी से इस बार भी राधा मोहन सिंह को टिकट दिया है. राधा मोहन सिंह ने साल 2009 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी के उम्मीदवार अखिलेश प्रताप सिंह को हराया था. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में राधा मोहन सिंह ने आरजेडी के उम्मीदवार बिनोद कुमार श्रीवास्तव को हराया था.
इसके बाद साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के राधा मोहन सिंह ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के उम्मीदवार आकाश प्रसाद सिंह को हराया था.
मुकेश सहनी कितने ताकतवर, RJD को क्या फायदा?
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी ने क्विंट हिंदी से विस्तार से बात की और बताया कि, "मुकेश सहनी की ऐसी हालत हो गई थी कि उन्हें कोई ले ही नहीं रहा था. ये सब उन्हीं की गलतियों की वजह से हुआ. पहले वे महागठबंधन का हिस्सा थे, वहां उनके संबंध खराब हुए. फिर एनडीए में शामिल हुए. बीजेपी ने अपने कोटे से मंत्री पद दिया लेकिन यूपी में बीजेपी के खिलाफ ही प्रचार कर आए. फिर वहां से भी बाहर हो गए."
मुकेश सहनी का महागठबंधन में शामिल होने का एकमात्र फायदा तो ये है कि आरजेडी का प्रत्याशी उनके उम्मीदवार का वोट नहीं काटेगा.
प्रवीण बागी बताते हैं, "मुकेश सहनी किसी तरह लालू प्रसाद को मनाने में कामयाब हुए हैं, दोनों के बीच जरूर कोई डील तो हुई होगी. लेकिन अब ये देखना होगा कि वे यहां कब तक टिक पाते हैं. एक और दिलचस्प चीज है. सहनी के पास कोई चुनावी चिन्ह नहीं है. अब वे निर्दलीय लड़ेंगे या आरजेडी के चुनाव चिन्ह पर ये देखने वाली बात है."
मुकेश सहनी की सियासी ताकत की बात करें तो बता दें कि वे निषाद या मल्लाह जाति से आते हैं. बिहार में लगभग 2.5 फीसदी मल्लाह जाति की आबादी है.
"मुकेश सहनी के पास समर्थन बेहद सीमित हैं. वे सांसद, विधायक दोनों का चुनाव हार चुके हैं. बीजेपी ने उन्हें एमएलसी बनाकर विधानसभा में पहुंचाया था. जब उन्हें राज्य की कैबिनेट में जगह मिली तो ज्यादा कुछ काम कर नहीं पाए."वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी
क्या RJD को इससे कोई फायदा मिलेगा? इस पर प्रवीण बागी ने कहा, "हो सकता है RJD को वोटों का फायदा हो, सहनी के समर्थक यानी मल्लाह जाति का कुछ वोट आरजेडी को ट्रांसफर हो सकता है. हालांकि मल्लाह जाति आरजेडी विरोधी रही है क्योंकि जब आरजेडी सत्ता में थी तब मल्लाह इनसे ज्यादा खुश नहीं थे. तो कैसे फायदा मिलता है ये नतीजों में ही दिखेगा."
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)