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2019 चुनाव : 5 राज्यों की ‘B-टीम’ तैयार, BJP के लिए होगी मददगार?

महाराष्ट्र,गुजरात, उत्तर प्रदेश समेत 5 राज्यों में एक नए मोर्चे का उभार किसे फायदा या नुकसान पहुंचा सकता है

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सवा साल बचा है और ठिठुरती हुई पहली जनवरी के साथ 2019 आ जाएगा. 2019 आएगा ठिठुरता हुआ लेकिन राजनीतिक गर्मी बेतहाशा बढ़ जाएगी. सियासत में वक्त रहते जोड़-तोड़ हो जाए. सांठ-गांठ हो जाए, एक-दूसरे के हाथ की उंगलियों में उंगलियां फंस जाएं तो रास्ता आसान हो जाता है. या आसान होता लगता जरूर है. इस राह पर सरपट दुड़की लगाने में सांस न फूले, इसके लिए तमाम राज्यों में, तमाम पार्टियों में, तमाम नेताओं में दौड़-भाग, सेटिंग-वेटिंग, एंट्री-एग्जिट शुरू हो चुका हैं.

कुछ नए दल बन रहे हैं, कुछ पल रहे हैं, कुछ बदल रहे हैं. कुछ जल भी रहे हैं. इसका क्या निकलेगा नतीजा? ये नई चुनावी B टीमें, बीजेपी की नाव को स्पीड बोट में बदल देंगी या उसमें छेद करेंगी? समझते हैं देश के 5 सूबों की ऐसी ही दिलचस्प रस्साकशी को जो 2019 के चुनावी मैदान में निर्णायक साबित हो सकती है.

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उत्तर प्रदेश

यूपी की राजनीति में समाजवादी ड्रामा हर रोज नए रंग बिखेरता है. इस ड्रामे का एक किरदार ऐसा है जिस पर सियासत में दिलचस्पी रखने वाले हर शख्स की निगाहें होनी चाहिए. शिवपाल सिंह यादव. वो मुलायम के भाई हैं और अखिलेश के चाचा. लेकिन, साइकिल की खींचतान में रिश्तों के हैंडल पर पकड़ ढीली होने लगी है. साइकिल की सीट पर अखिलेश हैं, डंडे पर पिता मुलायम और जिस 'कैरियर' पर बैठ कर शिवपाल का करियर बचा हुआ था, अखिलेश उसे उखाड़ देना चाहते हैं. इतनी हील-हुज्जत पर भी शिवपाल पार्टी में बने रहेंगे, ऐसा लगता नहीं.

शिवपाल सिंह यादव

शिवपाल कई मौकों पर अपना अलग मोर्चा बनाने की बात कह चुके हैं. अब लखनऊ के सियासी गलियारों में इस बात की हलचल है कि शिवपाल एनडीए गठबंधन वाली जेडीयू में शामिल हो सकते हैं. कहा-सुनी ही है कि शिवपाल को बीजेपी में सीधे तौर पर शामिल करने पर एकमत नहीं है.

महाराष्ट्र,गुजरात, उत्तर प्रदेश समेत 5 राज्यों में एक नए मोर्चे का उभार किसे फायदा या नुकसान पहुंचा सकता है
समाजवादी पार्टी नेता शिवपाल सिंह यादव
(फोटो: Twitter)
वहीं, जेडीयू में शिवपाल के शामिल होने पर जहां यूपी में पार्टी को एक स्थापित नेता मिल जाएगा वहीं बीजेपी को अपना एक अहम सहयोगी. फिलहाल, इस बात का कोई ऐलान नहीं है कि शिवपाल कहां जा रहे हैं. लेकिन, इतना तय है कि वो जहां भी जाएंगे, समाजवादी पार्टी की जड़ों में मट्ठा डालने का काम करने से चूकेंगे नहीं.

इस 'बी-टीम' वाली पॉलिटिक्स पर पॉलिटिकल कमेंटेटर धर्मेंद्र झोरे का मानना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में 350 सीट जीतने का लक्ष्य हासिल करने के लिए बीजेपी इस रणनीति पर काम कर रही है. धर्मेंद्र कहते हैं कि जिन राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का प्रभाव है, उस प्रभाव को कम करने के लिए बीजेपी को लगता है कि ये रणनीति कारगर साबित होगी.

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी-शिवसेना का सियासी रिश्ता, 'बूझो तो जानें' की पहेली बना मालूम होता है. दोनों साथ हैं भी, नहीं भी. कभी उद्धव रूठ जाते हैं तो कभी 'सामना' से आमने-सामने के मूड में आ जाते हैं. ऐसे में केंद्र और राज्य में सत्ताधारी बीजेपी को इसका समाधान तो ढूंढना ही था. ताकि, नए दोस्तों के साथ गलबहियां डाल कर पुरानों को धीरे-धीरे ठिकाने लगा दिया जाए

नारायण राणे, महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष

ये समाधान बीजेपी को शायद नारायण राणे में दिख रहा है, राज्य के पूर्व सीएम और कोंकण क्षेत्र समेत कई इलाकों में अच्छी राजनीतिक पैठ वाले राणे ने हाल ही में कांग्रेस छोड़ी है. किसी दौर में वो शिवसेना में भी नंबर दो का रूतबा रखते थे.

महाराष्ट्र,गुजरात, उत्तर प्रदेश समेत 5 राज्यों में एक नए मोर्चे का उभार किसे फायदा या नुकसान पहुंचा सकता है
नारायण राणे
(फोटो: Twitter/@MeNarayanaRao)

ऐसे में राणे का नई पार्टी, महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष (एमएसपी) बनाना और उसे एनडीए में शामिल करने का ऐलान करना हर लिहाज से बीजेपी को फायदा पहुंचाने जा रहा है.

हालिया वक्त में बीजेपी ने अपनी पार्टी में बड़े क्षेत्रीय नेताओं को सीधे तौर पर शामिल करने की परंपरा को कम कर दिया है जिसकी पड़ताल हम आगे करेंगे. सूत्रों के मुताबिक, राणे को लेकर बीजेपी में एकमत भी नहीं था. अब राणे की नई पार्टी की एनडीए में एंट्री से किसी को शिकायत नहीं होगी. बीजेपी, राणे की पार्टी का इस्तेमाल शिवसेना-कांग्रेस के वोट काटने में करेगी.

'वोट कटिंग पॉलिटिक्स'

जानकार इसे बीजेपी की नई रणनीति के तहत 'वोट कटिंग पॉलिटिक्स' का हिस्सा मानते हैं. पॉलिटिकल कमेंटेटर शुभांगी खापरे कहती हैं

नारायण राणे की नई पार्टी से बीजेपी और राणे दोनों को फायदा है. हां, ये बात भी सही है कि वोट कटिंग पॉलिटिक्स में बीजेपी को ज्यादा फायदा मिलेगा.
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गुजरात

अब बात पीएम मोदी के गढ़ गुजरात की. अगले कुछ ही महीनों में गुजरात विधानसभा चुनाव है. सरगर्मियां तेज हैं. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी गुजरात में कई बार रैलियां कर आए हैं. शंकर सिंह वाघेला और उनकी पार्टी यहां कांग्रेस को झटका दे सकती है.

शंकर सिंह वाघेला, जन विकल्प मोर्चा

गुजरात की राजनीति में शंकर सिंह वाघेला लंबे समय से सक्रिय हैं. संघ की पृष्ठभूमि वाले वाघेला अपनी नाराजगी के लिए भी जाने जाते हैं. कभी सीएम नहीं बनाए जाने से बीजेपी से नाराजगी तो कभी सीएम उम्मीदवार नहीं बनाए जाने के कारण कांग्रेस से बगावत.

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शंकर सिंह वाघेला

बड़े जनाधार वाले शंकर सिंह वाघेला ने इसी साल कांग्रेस से तौबा कर ली थी. शुरुआत में उन्होंने राजनीति से संन्यास की बात कही लेकिन सितंबर के महीने में ही उन्होंने नए मोर्चे 'जन विकल्प' का ऐलान कर दिया.

जानकारों का मानना है कि वाघेला ने 90 के दशक में बीजेपी को कांग्रेस के खिलाफ खड़ा किया था. अब कई सालों से सत्ता-सुख भोग रही गुजरात सरकार के खिलाफ 'सत्ता विरोधी लहर' की सुगबुगाहट भी देखने को मिल रही है, ऐसे में वाघेला का 'जन विकल्प' मोर्चा', बीजेपी की बी टीम की तरह काम कर सकता है. जिसका लक्ष्य होगा कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाना.

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पश्चिम बंगाल का मुकुल रॉय फैक्टर

ममता बनर्जी के गढ़ में सेंध की तैयारी में तो बीजेपी पिछले विधानसभा चुनाव से ही जुटी है. ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक मुकुल रॉय की बीजेपी में आने की अटकलें चल रही हैं. पार्टी ने हाल ही में उन्हें 6 साल के लिए बर्खास्त किया था. वहीं मुकुल खुद को नजरअंदाज किए जाने के कारण संभावनाएं तलाश रहे थे.

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(फोटो: ANI)
9 अक्टूबर को बीजेपी के कैलाश विजयवर्गीय से मुकल रॉय ने की मुलाकात

इस दौरान बीजेपी आलाकमान के बड़े नेताओं से मुकुल रॉय की कुछ मुलाकातें हो चुकी हैं. बीजेपी में मुकुल शामिल होते हैं या नई पार्टी बनाकर किसी पुरानी पार्टी के बी टीम बनते हैं, ये सामने आने में अब ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. तृणमूल की मुखिया ममता बनर्जी को याद रखना होगा कि मुकुल रॉय वो शख्स हैं जो पार्टी की स्थापना के वक्त से साथ थे. अगर वो नाराज हैं तो, 'चुनावी बदलापुर' में कसर नहीं छोड़ेंगे.

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तमिलनाडु का कमल हासन फैक्टर

तमिलनाडु में एक अलग तरह का मोर्चा दिख रहा है. राज्य की पुरानी 'फिल्मी सुपरस्टार राजनेताओं' वाली श्रेणी में शामिल होने के लिए कमल हासन खुलकर तैयार दिख रहे हैं. चर्चा है कि वो अपनी नई पार्टी का ऐलान जल्द ही कर सकते हैं.

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एक्टर कमल हसन खुलकर जल्लीकट्टू के सपोर्ट में आ गए हैं (फोटो: PTI)
हाल ही में उन्होंने केरल के सीएम पिन्नारी विजयन और दिल्ली के सीएम केजरीवाल से मुलाकात की थी. अगर कमल हासन राजनीति में आते हैं तो साफ है कि तमिलनाडु को एक नया विकल्प मिल सकेगा, जो डीएमके और एआईएडीएमके जैसी पार्टियों से अलग होगा.

कमल हासन ये भी साफ करते आए हैं अगर वो राजनीति में आते हैं तो बीजेपी से उनका दूर-दूर तक वास्ता नही होगा.

अकेले इन 5 सूबों में कुल लोकसभा सीटों की संख्या ठहरती है- 235. इस आंकड़े को साध लेने वाला 2019 के लोकसभा चुनावों में बड़ी आसानी से पार लग जाएगा. और फिलहाल बी टीमों और गुणा-भाग के जरिए ये कवायद जोरों पर है.

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